Tuesday, May 07, 2019

मैं ही आने वाला कल!!

मैं पायल, मैं झूमर, मैं महबूबा का काजल
मैं पागल, मैं बादल, मैं प्यासों का गंगाजल ..
मैं अम्बर, मैं सागर, मैं ही अम्मा का आँचल..
मैं हूँ बल, मैं ही दल , मैं ही किसान का बैल और हल ..
मैं ही गीत, मैं ही प्रीत, मैं ही रेशम से लिखी गज़ल..
मैं हूँ पल, मैं हूँ फल , मैं ही आने वाला कल!!- हीरेंद्र

(7 मई 2012)

Monday, May 06, 2019

दु:ख का रंग

दुःख को अगर अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कौन सा रंग चुनेगा?  काला? काला दुःख का नहीं, विश्वास का रंग है. माँ जैसे अपने बेटे के माथे पर काला टीका लगाकर निश्चिंत हो जाती है कि अब मेरे मुन्ने को कुछ नहीं होगा. मतदान के बाद अंगुलियों पर काला निशान भी तो एक भरोसे का ही नाम है. तो फिर दु:ख का रंग कैसा होता होगा? मैंने देखा है एक सुहागन का सफेद दुःख, हरे पत्ते का पीला दुःख, किसी के दामन पर दु:ख के लाल छींटे, गुलाबी दु:ख ही नहीं इंद्रधनुष को भी देख कोई किसी की याद में दु:खी हो सकता है! जैसे हर रंग के सुख.. वैसे ही हर रंग के दु:ख..दु:ख का अपना कोई रंग नहीं.. दु:ख को अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कोरे कागज के रंग चुनेगा, सूनी आंखों का रंग चुनेगा.. रूक गई सांसों का रंग चुनेगा.. बुझे चिराग का रंग चुनेगा.. जलती चिता का रंग चुनेगा.. किसी के इंतज़ार का रंग चुनेगा.. इस सिलसिले का कोई अंतहीन रंग चुनेगा.. #हीरेंद्रकीडायरी

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...