Sunday, March 31, 2019

रविवारनामा 2

आज कमीज में बटन लगाते हुए माँ की बहुत याद आई. वो चश्मा पहने सुई में धागा डालती माँ कितनी क्यूट लगती थी. अब कभी किसी शर्ट का बटन टूट जाये तो वो महीनों यूं ही पड़ा रहता है. कई बार तो मैं जान बूझकर भी उसे टाले रहता हूँ कि किसी इतवार के दिन जब अकेले होऊंगा तब लगा लूँगा बटन.. कि इसी बहाने फिर से जी लूँगा अपने हिस्से का बचपन #रविवारनामा #हीरेंद्र

Saturday, March 30, 2019

रविवारनामा

रविवार. ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत पल कभी इसी के हिस्से आते रहे हैं! बचपन में इस दिन का एक अलग ही जादू हुआ करता. ये भी गजब था कि हम रविवार को रोज से पहले ही जग जाया करते. नींद अपने आप टूट जाती,जबकि हम कुछ घंटे और सो सकते थे. आज भी छुट्टी के दिन सुबह जल्दी ही आँख खुल जाती है. लेकिन, वो आकर्षण अब कहाँ?

टीवी पर जब रंगोली के सुरीले गीत बजने लगते तो इस बात की तसल्ली हो जाती कि आज मोगली भी आयेगा! रामायण, महाभारत, श्री कृष्णा और चंद्रकांता के दिन थे वो.. अर्जुन जब तीर चलाते और एक तीर से ही सैकड़ों तीर निकलकर दुष्टों का संहार करता तो हम एकटक देखा करते. कभी तीर आग उगलता तो कभी साँप बनकर हवा में उड़ने लगता. कभी कभी तो वो त्रिशुल भी बन जाया करता. अद्भुत था सब!

इतवार तब किस्से और कहानियों का दिन हुआ करता. खाने और खेलने का दिन. धूप-बारिश, सर्दी-गर्मी से बेपरवाह पड़ोसियों की नाक में दम किये रहते. क्रिकेट खेलते, साइकिल चलाते, सीटी बजाते.. चीखते-चिल्लाते उधम मचाते!

तब आज की तरह न तो कमरे की साफ सफाई की चिंता थी और न ही कपड़े धोने की फिक्र. ले देकर बस एक रविवार था.. और सब रविवारमय! स्कूल और होमवर्क की टेंशन भी हम अपने आस-पास नहीं फटकने देते थे..

मस्ती से भरपूर था इतवार, थकन से चूर था इतवार. कि पूरे सप्ताह हमें रहता था इस दिन का इंतज़ार...

ये भी सच है कि आज भी आता है ये रविवार. लेकिन, अब ये संडे है. अब ये सिर्फ एक ब्रेक है.. अंग्रेज़ी में ब्रेक का एक मतलब तोड़ना भी होता है. अकेले रहने वाले इस दिन थोड़ा टूटते भी होंगे? #रविवारनामा #हीरेंद्र

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...