मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Tuesday, September 15, 2020
अनमोल आँसू
Sunday, September 13, 2020
अंतिम प्रणाम रघुवंश प्रसाद सिंह
जीवन का पहला टीवी इंटरव्यू मैंने रघुवंश प्रसाद सिंह का किया था.. तब वो मनमोहन सिंह सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री हुआ करते थे.. साल 2006, मैं दूरदर्शन के लिए ट्रेड फेयर कवर कर रहा था.. मंत्री जी किसी को बाइट नहीं दे रहे थे.. मैं धक्का-मुक्की खाते हुए मंच पर चढ़ गया और कहा- 'अंकल आपकी बाइट चाहिये..' वो हँसने लगे.. बोले-' पहली बार आये हो क्या?' मैंने कहा- जी ... और फिर उन्होंने बड़े प्यार से मुझसे बातचीत की। अब कोई भी उनका इंटरव्यू नहीं कर पायेगा। उन्हें अंतिम प्रणाम।
निधन से बस कुछ घंटे पहले ही उन्होंने लालू प्रसाद यादव को चिट्ठी लिख कर पार्टी से अलग होने की बात बता दी थी। उससे पहले वो बीते 32 साल से लालू प्रसाद के साथ हर पल और मुद्दे पर खड़े रहे थे। लालू पर दुनिया भर के आरोप ल लेकिन, रघुवंश बाबू उनके साथ रहकर भी बेदाग रहे। पूरी ज़िंदगी वो जनता से जुड़े सवाल मजबूती से उठाते रहे हैं। उनके निधन के बाद राजनीति के एक युग का अंत भी हो गया।
Monday, August 31, 2020
विदा प्रणब मुखर्जी, एक बच्चे की नज़र से
Saturday, August 29, 2020
हीरेंद्र की डायरी: अतीत और भविष्य नहीं बल्कि वर्तमान के प्रति सजगता ज़रूरी
Thursday, August 27, 2020
राजदीप सरदेसाई और रिया चक्रबर्ती की बातचीत
Wednesday, August 26, 2020
एक प्रेमी की डायरी का पंद्रहवाँ पन्ना : हीरेंद्र झा
Sunday, August 02, 2020
राखी पर पढ़िए एक भाई की पाती : हीरेंद्र झा
हैप्पी फ्रेंडशिप डे : हीरेंद्र झा
अतीत की स्मृतियों में जब भी कभी भटक रहा होता हूँ तो मैंने यही अनुभव किया है कि दोस्ती और मोहब्बत हाथों में हाथ लिए चलती हैं। यारा-दिलदारा जैसे जुमले यूँ ही तो नहीं बनते न? मेरी सभी प्रेमिकायें मेरी अच्छी दोस्त भी रही हैं। यह बात हमारी पीढ़ी को 'कुछ कुछ होता है' के राहुल और अंजली ने बताई थी कि प्यार दोस्ती है। अगस्त का पहला रविवार हम दोस्ती के दिन के रूप में ही मनाते हैं। जीवन में कम से कम एक दोस्त तो ऐसा होना ही चाहिए जिससे आप सब कुछ साझा कर सकें। दोस्ती हमारे जीवन का सबसे खूबसूरत रिश्ता होता है। जो बात हम अपने माता-पिता-भाई से नहीं कह पाते वो हम अपने बंधु से कह जाते हैं। कुछ लोग दोस्ती को एक अलग ही नरमी और नमी दे जाते हैं। इन्हीं से जीवन सुगंधित और समृद्ध बनता है। कुछ की खुशबू सदा साथ रहती है तो कुछ स्मृति की गलियों को महकाती रहती हैं।
Friday, July 24, 2020
दिल बेचारा, एक अधूरी कहानी : हीरेंद्र झा
कल देर रात मैंने सुशांत सिंह राजपूत की फ़िल्म #दिलबेचारा देखी। यह फ़िल्म कल ही हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई है। ज़ाहिर है यह सुशांत की आख़िरी फ़िल्म है। अब वो बड़े पर्दे पर कभी नहीं नज़र आयेंगे। अब सवाल है कि यह फ़िल्म कैसी है? एक दर्शक के नाते फ़िल्म देखते हुए आप कई बार भावुक हो जाते हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हमें मालूम है सुशांत अब इस दुनिया में नहीं हैं। अगर वे ज़िंदा होते तो फ़िल्म हम एक अलग नज़रिए से देख पाते। स्क्रीनपले के लिहाज़ से फ़िल्म का सेटअप बिल्कुल परफेक्ट है। कहानी हम जानते थे क्योंकि यह एक हॉलीवुड फ़िल्म की रिमेक है। डायलॉग लिखने वाले को लगता है कि ज़्यादा फ़ीस नहीं दी गयी होगी। संवाद और भी अच्छे हो सकते थे। फ़िल्म के संगीत में एक आकर्षण ज़रूर है और गाने के बोल भी कहीं न कहीं आपके मन को छू लेते हैं। सिनेमेटोग्राफी यानी कैमरे का काम बहुत खूबसूरत है। जमशेदपुर से लेकर पेरिस को जिस तरह से दर्शाया गया है, अद्भुत है। अभिनय की बात करें तो सुशांत सिंह राजपूत का परफॉर्मेंस काफ़ी दमदार है। सैफ़ अली ख़ान थोड़ी देर को ही नज़र आये लेकिन, फ़िल्म का जो इकलौता संदेश है वो उन्हीं के संवाद से जाना जा सकता है। डायरेक्शन की बात नहीं करूंगा। उनके लिए बस 'सेरी' ही कह सकता हूँ। कुछ कमियां भी हैं, उनकी बात जानकार लोग करेंगे। बचपन से हम सब यही तो सुनते आए हैं- 'एक था राजा, एक थी रानी.. दोनों मर गए ख़त्म कहानी।' लेकिन, मरने से पहले जी लेने की बात इशारे में ही सही #दिलबेचारा ने बेहद ही ख़ूबसूरती से बताने की कोशिश की है। कई मामले में यह एक अधूरी सी प्रेम कहानी है। ठीक वैसे ही जैसे सुशांत सिंह राजपूत का सफ़र अधूरा ही रह गया। उनके चाहने वालों के लिए यह फ़िल्म एक सौगात की तरह है।
Saturday, July 04, 2020
काफ़्का के बारे में
Monday, June 15, 2020
फेसबुक पर ज्ञान की बारिश, बेशर्मों ने कहा तैरना चाहिए था
Sunday, May 31, 2020
Tuesday, April 28, 2020
#एकप्रेमीकीडायरी #हीरेंद्र
Monday, April 27, 2020
एक प्रेमी की डायरी 😊 #हीरेंद्र
Sunday, April 12, 2020
जलियांवाला बाग नरसंहार की कहानी, इन तस्वीरों की ज़ुबानी #JallianwalaBaghmassacre
आज वैशाखी है. पंजाब और हरियाणा में इस पर्व की ख़ासी धूम रहती है. नयी फ़सल की आमद का यह जश्न हर साल इसी तारीख यानी 13 अप्रैल को ही मनाया जाता है. लेकिन, यह तारीख इतिहास में भी अपनी एक अलग भयावहता के लिए अंकित है. जलियांवाला बाग नरसंहार के बारे में किसने नहीं सुना. आज से 101 साल पहले इसी दिन सारी दुनिया ने अंग्रेज़ों का एक क्रूर और अमानवीय चेहरा देखा था.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था, जिसके बाद मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और उसका परिणाम 13 अप्रैल 1919 के नरसंहार के रूप में दिखा.
देश के अधिकांश शहरों में 30 मार्च और 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया. हालांकि इस हड़ताल का सबसे ज़्यादा असर पंजाब में देखने को मिला. 13 अप्रैल को लगभग शाम के साढ़े चार बज रहे थे, जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद क़रीब 25 से 30 हज़ार लोगों पर गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया. वो भी बिना किसी पूर्व चेतावनी के. ये गोलीबारी क़रीब दस मिनट तक बिना सेकंड रुके होती रही. जनरल डायर के आदेश के बाद सैनिकों ने क़रीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं. गोलियां चलाते-चलाते चलाने वाले थक चुके थे और 379 ज़िंदा लोग लाश बन चुके थे. (अनाधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि क़रीब एक हज़ार लोगों की मौत हुई थी और दो हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए थे).
क्या आप जानते हैं 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। साल 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।
Tuesday, March 31, 2020
Monday, March 30, 2020
कोरोना डायरी #CoronaDiary
यह लिखने में भले आसान हो पर इस पर अमल करना उतना सहज नहीं। हर इंसान का अपना अनुभव और दृश्टिकोण होता है. जिसमें तपकर हम किसी चीज़ के प्रति अपना एक नजरिया बनाते हैं. यह नजरिया उधार का तो बिलकुल भी नहीं हो सकता। कबीर ने कहा या बुद्ध ने कहा यही सोचकर कोई बात नहीं मान लेनी चाहिए। जब तक हम स्वयं उस अनुभूति से साक्षात्कार न कर लें दुनिया भर के दर्शन और साहित्य बेमानी हैं.
आप आँखें बंद करके खुद को टटोलिये कि आप इस जीवन से क्या चाहते हैं? अगर आप देख पायें तो आप खुशकिस्मत हैं क्योंकि दस में से नौ लोगों को तो यह बिलकुल भी नहीं मालूम होता कि वो इस जीवन से क्या चाहते हैं. इन दोनों तरह के लोगों को अलग-अलग तरीके से चीज़ों को समझना होगा। पहले वे लोग जो देख पा रहे हैं कि उन्हें इस जीवन से क्या चाहिए, वो बस उन्हीं पर अपना ध्यान केंद्रित रखें. क्योंकि जीवन बहुत ही विराट है- यहाँ थोड़ा-थोड़ा सब कुछ पा लेना भी आसान नहीं। और थोड़ा-थोड़ा पाकर भी आप बेचैन ही रहेंगे। जो भी पाना हो वो सम्पूर्णता के साथ पाना, तभी आप आनंदित हो सकते हैं. अगर आप स्पष्ट हैं कि आप को जीवन से क्या चाहिए तो आप यह समझ लें कि आपको बस उसी पर केंद्रित रहना है. व्यर्थ के प्रयासों में समय न गंवा दें. मान लीजिये कि आपको एक महाकाव्य रचना है तो बस आपका पूरा ध्यान इसी बिंदु पर होना चाहिए। सोते-जागते आप अपने महाकाव्य को साकार होते दिखे। अगर आपको अपने मन में महाकाव्य के पन्ने नज़र आने लगे तो समझो आपने महाकाव्य रच दिया। यह और भी बातों के लिए उतना ही सटीक है.
दूसरी बात कि आपको अभी भी नहीं मालूम कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए। तो बेहतर है खुद के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त गुज़ारे। अपने आप को समझें। ह्रदय की गहराइयों में उत्तर कर खुद को देखें कि ऐसी कौन सी बात है जो आपको मिल जाए तो आप खुश हो जाएंगे। अगर आप ईमानदारी से खुद का मूल्यांकन करें तो इस बात की कोई भी वजह नहीं कि आप निरुत्तर रहे.
और जब एक बार आप समझ गए कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए तब आगे का रास्ता स्वतः ही निर्मित होना शुरू हो जाता है. इस शोध के लिए यह 21 दिनों का लॉकडाउन बहुत ही कारगर है. यह मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ. जीवन में एक से ज़्यादा बार ऐसा हुआ है कि मैंने आत्महत्या करने का सोचा है. लेकिन, नहीं अब मैं समझ गया हूँ कि मरने से पहले ज़िंदगी एक बार जी ही लेनी चाहिए। इति शुभम!
हीरेंद्र झा
Thursday, March 26, 2020
#CoronaDiary #Day2
बहरहाल, आज दिन में ओशो के कुछ वीडियो सुने। ग्रेजुएशन के दौरान मैंने ओशो को खूब पढ़ा है और उसका मुझे लाभ भी हुआ. लेकिन, अरसे से ओशो और उनकी बातें भूला सा था एक बार फिर उन लम्हों को जी रहा हूँ. मैंने अनुभव किया है कि संन्यास मेरा मूल स्वभाव है. इसलिए भी इस राह पर जाने से थोड़ा बचता हूँ. क्योंकि यह बहुत ही आसान है मेरे लिए. और अगर मैं इस राह पर बढ़ चला तो मुझसे जो लोग जुड़े हुए हैं उन्हें परेशानी हो सकती है. इसलिए कहीं न कहीं मन में यह रहता है कि इस संसार में एक संन्यासी की तरह क्यों न रहा जाए? मैं कुछ लिखता भी हूँ तो कई बार उस लिखे में मुझे वो दर्शन और पद्धति महसूस होती है.
जो मेरी अगले 7 दिन की दिनचर्या रहने वाली है. उसकी बात करूँ तो मैंने तय किया है कि अगले 7 दिनों तक मैं लगातार ध्यान की अवस्था में रहूँगा। यानी मेरा पूरा ध्यान मेरी साँस पर टिका होगा। उसके आने और जाने पर. भीतर गहरे तक साँस लूँगा। ज़्यादा से ज़्यादा प्राणवायु मेरे भीतर जाए इसका ख़्याल रखूंगा। साँस के अलावा मैं अगले सात दिनों तक भोजन को लेकर ज़्यादा नहीं सोचने वाला। जितने कम में काम चल जाए बस उतना ही भोजन करूँगा। जीवन के लिए जितना ज़रूरी हो सिर्फ उतना खाऊंगा। जो भी करूँगा एकाग्रचित्त होकर करूँगा। एकाग्रता के लिए सबसे सहज और हितकर मार्ग यही है कि आप अपने साँसों पर ध्यान बनाकर रखें। इसके अलावा कुछ और काम करने पड़े जैसे नहाना, भोजन आदि तो वह भी पूरी एकाग्रता के साथ किया जाए.
इन तीनों बातों के अलावा चौथी बात जिसका मुझे ध्यान रखना है, वो है -मौन. मेरी कोशिश रहेगी कि मैं 24 घटे मन, वचन और विचार से मौन रहूं। कोई आफत ही आ जाए तो दो, चार शब्द बोलकर या कागज़ पर लिख कर काम चल जाए तो यह कर लूँ. यह कठिन है पर इसका अपना ही आनंद है. सिर्फ बोलना ही बंद नहीं करना है बल्कि देखना और सुनना भी न्यूनतम कर देना। ज़्यादातर वक़्त मेरे आँखों पर इस दौरान पट्टी बंधा होगा और मैं पूरी तरह से सिर्फ ध्यान में रहने का प्रयास करूँगा। आखिरी बात यह समय मैं किसी मजबूरी में नहीं करूँगा, बल्कि पूरे आनंद भाव से करने वाला हूँ. मुझे कुछ याद नहीं कि कोरोना की वजह से पूरे देश में बंद की स्तिथि है. मैं घर से बाहर नहीं निकल सकता। कि मैं सबसे दूर यहाँ मुंबई में अकेले हूँ. मुझे बस इतना याद है कि मैं सुख और आनंद में हूँ और इस समय को एक अवसर की तरह देख रहा हूँ. फिर जीवन में मुझे यह सात दिनों का विशेष ध्यान करने का अवसर न मिले तो क्यों न इस समय का लाभ उठा लूँ. कुछ बहुत ज़रूरी कोई फोन आ गया (काम के सिलसिले में) तो उस तरह के फोन मैं ज़रूर उठाऊंगा और कुछ लिखना हुआ तो वो भी करूँगा। लेकिन, अगर ऐसा न हुआ तो वो और भी अच्छा। अपने अनुभव मैं आप सबको ब्लॉग पर बताता रहूँगा।
- हीरेंद्र झा
Wednesday, March 25, 2020
#CoronaDiary Day1
घर-परिवार से दूर अकेले मुंबई में अपने एक छोटे से कमरे में हूँ. मैं बिना लाग-लपेट के यह कहना चाहता हूँ कि यह एक बड़ी मुश्किल समय है. मैंने अपने पूरे जीवन में ऐसा समय नहीं देखा। घर-परिवार और अपनों के साथ 21 तो क्या मैं सौ दिन भी बिना किसी परेशानी के घर पर रह सकता हूँ. पर ऐसे अकेले यह मेरे लिए भी एक रहस्य ही होगा जो मैं 21 दिनों तक बचा रह गया.
देश के अलग-अलग हिस्सों से कुछ तस्वीरें आ रही हैं, जिनमें इक्का-दुक्का लोग सड़क पर मास्क पहने घुमते दिख रहे हैं. ज़रूरी सेवा देने वाले जैसे पुलिस, डॉक्टर्स, बैंकर्स और पत्रकार आदि वैसे भी घरों से निकल रहे हैं. यहाँ एक बात मैं जोड़ना चाहूँगा कि मुंबई में मैं जिस सोसायटी में रह रहा हूँ, यहाँ मेन गेट पर ताला लगा दिया गया है और आपातकालीन स्तिथि में ही किसी को बाहर निकलने की इज़ाज़त है. यह नियम बना दिया गया है कि सुबह आठ बजे से लेकर नौ बजे तक मेन गेट खोला जाएगा और आप इसी दौरान अपने खाने-पीने की ज़रूरी चीज़ें लेकर आ सकते हैं. शुक्र है कम से कम यह एक अच्छी बात है.
बहरहाल, खाने-पीने का मैंने कुछ यह सोचा है कि चूड़ा, चना, मूंगफली, चावल-दाल जो सहज और आसानी से बन जाए, उसी में किसी तरह यह दिन बीता देना है. ज़्यादा खाने-पीने के चक्कर में नहीं रहना है. एक वक़्त भी पेट भर कर खा लिया तो अगले दिन तक छुट्टी। तो भोजन को लेकर मैं बहुत ज़्यादा चिंतित नहीं हूँ. मेरी चिंता थोड़ी अलग है.
मन में यह ज़रूर आता है कि जीवन में ऐसा कभी कठिन समय आये तो इंसान को अपने परिवार के साथ होना चाहिए। एकजुट होकर एक दूसरे को सहारा देते हुए हम इस तरह के हालातों से निकल सकते हैं. मेरे साथ वर्तमान में ऐसे हालात हैं कि बुजुर्ग माता-पिता धनबाद में है. उनका पूरा समय घर पर ही बीतता है. मेरी एक दीदी अपने परिवार के साथ वहां है, जो उनका ख़्याल रख रही हैं. बाबूजी रोज़ बिना नागा एक बार कॉल ज़रूर कर लेते हैं और मेरी आवाज़ सुनकर बुलंद हो जाते हैं. पत्नी है जो अपने मायके यानी लखनऊ में रहती है. आठ साल की प्यारी बिटिया ख़ुशी भी अपनी मम्मी के साथ वहीं रह रही है. मेरे साथ संयोग कुछ ऐसा रहा कि कभी बिटिया के साथ रहने का मौका मुझे नहीं मिला है. वो नानी के घर ही जन्मीं और वहीं देखते-देखते आठ बरस की हो गयी हमारी लाड़ो। उसे फोन पर बात करना पसंद नहीं इसलिए मेरी उससे न के बराबर बातचीत होती है. बीते एक साल में हम चार बार मिले हैं और कुल मिलाकर आठ दस दिन हमने साथ बिताये होंगे। पत्नी का रूटीन कुछ इस तरह का है कि उसके पास बिल्कुल भी फुर्सत नहीं। स्टेट बैंक की नौकरी के बाद जो वक़्त उसे मिलता है उसपर उसकी बीमार माँ और प्यारी बिटिया का अधिकार है. उसकी मम्मी यानी मेरी सास का लीवर काफी हद तक डैमेज हो चुका है और उनकी हालत काफी गंभीर रहती है. कई बार उन्हें इलाज के लिए लखनऊ से लेकर दिल्ली भागना होता है. ऐसे में हम दोनों पति-पत्नी के बीच कई बार सप्ताह भर भी बात नहीं हो पाती। मैं उसे बहुत मिस भी करता हूँ. पर शायद यही नियति है और किसी तरह यहाँ मुंबई में जीने की कोशिश कर रहा हूँ.
सामान्य दिनों में काम में उलझ कर दिन बीत जाया करता है पर ऐसे लॉक डाउन के समय में मेरी बेचैनी का बढ़ना वाजिब ही है. दिन भर घर पर अकेले क्या और कैसे किया जाए, आसान नहीं। न किसी अपने से कोई संवाद ही है और न ही एक पारस्परिक सहयोग वाली बातचीत कि जिसके सहारे आप अपना समय काट सकें। थक-हार कर मेरे पास यही विकल्प है कि - कितने पढूं, फ़िल्में देखूँ और लिखूँ। लिखकर बेचैनी मेरी थोड़ी कम होती रही है.
तो मैंने सोचा क्यों न इस लॉक डाउन में रोज़ अपने ब्लॉग पर #CoronaDiary लिखूं। इसी बहाने अगर मैं ज़िंदा बचा रहा तो आज से दस-बीस साल बाद भी यह समय याद रह जाएगा। तो इस कड़ी में यह दूसरी पोस्ट है. कल भी मैंने कोरोनो पर कुछ लिखा है और आज भूमिका बांधते हुए आप सभी को अपनी मानसिक और व्यावहारिक स्थिति बता दी है.
आज यू tube पर अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा की फिल्म 'छोटी सी बात' फिर से देखी। बेहद मासूम सी फिल्म है. उसके बाद संदीप माहेश्वरी के कुछ वीडियो सुनते हुए बर्तन भी धोये। और अब सोचा सोने से पहले यह पोस्ट लिख ही दूँ. वैसे अभी रात के सिर्फ दस ही बजे हैं. कल भी तीन बजे के बाद ही सोया था और आज भी देर होगी ही. देखते हैं यह दिन अपने आखिरी घंटे में कैसा रहता है. अब रफ़ी के गीत सुन रहा हूँ. पूरी प्लानिंग कर ली है कि कल से मेरा रूटीन क्या रहने वाला है. वो सब कल लिखता हूँ. अगर आप यह पोस्ट पढ़ पा रहे हैं तो यही कहूंगा कि घर पर ही रहे, बाहर न निकले. अपना ख़्याल रखें। हाथ धोते रहे. और यह सब किसलिए? देश ही नहीं मानवता के लिए भी. जी! शुक्रिया।
आपका हीरेंद्र
Tuesday, March 24, 2020
#कोरोनाडायरी #Corona #Covid19

हकीकत तो यही है कि मुंबई में हूँ और अकेले हूँ। दुनिया भर की ख़बरों पर नज़र है। कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यही हालात रहे तो स्तिथि बेहद खतरनाक भी हो सकती है। ऐसा कुछ न हो इसके लिए सिर्फ प्रार्थनायें ही की जा सकती हैं। अपने देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा इतना लचर है कि इस तरह की आपदा के लिए हम बिल्कुल भी तैयार नहीं। फिलहाल जितना हो सके अपने-अपने घरों पर रहिये और हाथ धोते रहिये इस निर्देश का पालन यथासंभव देशवासी कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी कोरोना को लेकर भावुकता, जागरूकता, सतर्कता और अफ़वाहों का मिलाजुला मॉडल दिख रहा है। ज़्यादातर लोग आशावादी हैं और एक दूसरे को ख़्याल रखने के लिए कह रहे हैं। तमाम बॉलीवुड स्टार्स और सेलिब्रिटी लगातार लाइव आकर जनता को जागरूक करने का काम कर रहे हैं।
अपने घर पर बैठा मैं सबको चुपचाप देख-सुन रहा हूँ। आप सबकी तरह मैं भी अपने परिजनों को लेकर फ़िक्रमंद हूँ और लगातार सबसे बातचीत हो जा रही है। फोन पर माँ-बाबूजी रोज़ बिना नागा हाल-चाल ले लेते हैं। कुछ दोस्त रिश्तेदारों से कई बार लंबी बातचीत भी हो रही है। आख़िर इतनी फुर्सत आसानी से हमारे हिस्से आता भी तो नहीं।
जब से लॉक-डाउन और कर्फ्यू की ख़बरें आनी शुरू हुई, उससे पहले से ही लोग अपने-अपने घरों में राशन आदि ज़रूरत का सामान जमा करने लगे। उन्होंने जैसे मान ही लिया था कि दुनिया जैसे ख़त्म हो रही है और वो जितना हो सकता है उतना भर कर रख लें। ऐसे देशभक्तों को क्या ही कहा जाए? लेकिन, दूसरी तरफ ऐसे लोग भी दिखे जो आम लोगों को ज़रूरत का सभी सामान उपलब्ध कराने के प्रयास में भी जुट गए हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरबिंद केजरीवाल के आह्वान पर कई लोगों ने यह जिम्मेदारी ली है कि उनके इलाके में कोई भूखा नहीं रहेगा। यह एक अच्छी पहल है। आज महाराष्ट्र से 12 मरीजों के ठीक होने की ख़बर भी आयी है, यह भी एक सुखद समाचार है।
गौरतलब है कि कोरोना वायरस बुजुर्गों और उन लोगों के लिए ज़्यादा खतरनाक है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है। ऐसे में इन लोगों का ध्यान रखने के लिए हम सबको अपना-अपना बचाव करना होगा।
इंसान बहुत जल्दी में है। भागते-भागते आज वो उस मुकाम पर है जहाँ उसने अपने लिए एक ऐसी दुनिया रच ली है जहाँ खड़े होकर आधुनिकता इतराया करती है। लेकिन, इन सबके बीच हम भूल गए हैं कि इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ इंसान ही नहीं दूसरे जीव-जंतु भी रहते हैं। प्रकृति एक दिन सबकुछ अपने हिसाब से कर लेती है। उसे संतुलन बनाना आता है। इस बार भागती जा रही मनुष्यता को उसने ठहर कर सोचने पर मजबूर कर दिया है। कि एक पल रुक कर हम सोचें कि क्या हमें हमारे किये की सज़ा मिल रही है?
क्या इस संकट से उबरने के बाद यह दुनिया थोड़ी बदल जायेगी? क्या हम सब एक इंसान के रूप में थोड़े बेहतर हो सकेंगे? अगर इसका जवाब हाँ है तो इसकी शुरुआत अभी से करनी होगी। और वो आप अपना ख़्याल रख कर घर बैठे-बैठे ही कर सकते हैं।
#कोरोनाडायरी1 #Corona #Covid19 #India #Humanity #Lockdown
Saturday, March 21, 2020
वो ख़ुदा को आवाज़ लगाती रही #हीरेंद्र
हर बात वो मुझसे छिपाती रही
सुबह आती रही शाम जाती रही
उलझनें ऐसे में क्या सुलझती भला
उसकी आँखें ही जब उलझाती रही
मेरा गीत क़ैद रहा मेरे कंठ में
और ज़िंदगी मुझे गुनगुनाती रही
हम मिलेंगे ज़रूर ये वादा देकर
मेरे सब्र को वो आजमाती रही
हम इंतज़ार में उसके बैठे रहे
वो ख़ुदा को आवाज़ लगाती रही। #हीरेंद्र
Wednesday, March 18, 2020
#कोरोना के साइड इफेक्ट्स
बहरहाल, इस दौरान मैंने यह अनुभव किया कि 'स्पर्श' मानव जाति की एक बड़ी थाती है, एक बड़ी आश्वस्ति है।
किसी को गले से लगाकर, किसी की हथेली थामकर, किसी की पीठ थपथपाकर, किसी के सिर या कांधे पर हाथ रखते हुए ही मनुष्यता ने इस दुनिया को बचाया हुआ है।
आइये ब्रह्मांड से यह प्रार्थना करें कि हर तरफ शुभ संदेश फैले। इस पोस्ट के साथ मेरी तरफ से आभासी ही सही पर एक जादू की झप्पी स्वीकार करें। आज बस इतना ही। शेष मिलने पर 💐#हीरेंद्र
Saturday, March 14, 2020
पत्रकारिता आपको एक बेहतर इंसान बनाती है: सर्वप्रिया सांगवान
विदा 2021
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...

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"हम हैं बच्चे आज के बच्चे हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे हम जानते हैं झूठ और सच हम जानते हैं गुड टच, बैड टच मम्मी, पापा जब...
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रेप की ख़बरें तब से भयावह लगने लगी है, जबसे रेप का मतलब समझ में आया. मेरी एक दोस्त ने मुझे बताया था कि एक बार जब वो चौदह साल की थी तो उसके...
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भोपाल के डा. बशीर बद्र उर्दू के एक ऐसे शायर हैं जिनकी सहज भाषा और गहरी सोच उन्हें गजल प्रेमियों के बीच एक ऐसे स्थान पर ले गई है जिसकी बराबरी...