मुझे याद है बचपन में हमारे मोहल्ले में एक बांसुरी वाला आया करता था। उसके पास एक डंडा हुआ करता जिस पर अलग अलग रंग और आकार के छोटे बड़े कई बांसुरी झूलते रहते थे। गर्मी की छुट्टियों में जब हम सब दोपहर का खाना पेट भर कर खाने के बाद बिस्तर पर ऊंघ रहे होते तभी कान में उसके बांसुरी की मधुर तान गूंजने लगती। मेरा मन बरबस ही उसकी तरफ खींचा चला जाता। नीम के पेड़ के नीचे बैठ वो अपनी पलकें मूंद कर भाव विभोर मुद्रा में कोई धुन बजा रहा होता। हम भी उसके साथ कहीं डूब से जाते। बाल मन जो अत्यंत ही जिज्ञासु हुआ करता है और उसे जो पसंद आ जाये वो करने के लिए लालायित हो जाता है। ऐसे में मेरा मन भी बांसुरी बजाने को करता। कोशिश भी की पर हम बेसुरे ही रहे। बहुत बाद में...जब बचपन कहीं पीछे छूट गया। और सोलहवां सावन भी आकर चला गया। बचपन के दोस्त, साथी, गली मोहल्ले भी कहीं पीछे छूट गए और हम एक अनजान शहर में नए दोस्तों और सपनों के बीच जीना सीखने की कोशिश में जुटे हुए थे। उसी मोड़ पर मैं उससे मिला। उसकी आवाज़ में वही बांसुरी के मीठे धुन सा सुकून था। उसे सुनकर मेरा मन भावविभोर हो जाता। हम ज़्यादा से ज़्यादा समय आस पास रहना चाहते थे। एक दिन दोनों कहीं बारिश में फंस गए। पहली बार बिल्कुल अकेले थे। आस पास दूर दूर तक कोई नहीं था। हम दोनों बहुत पास थे। हम दोनों मुस्कुरा रहे थे। समय मेरे पहले चुम्बन की जैसे भूमिका बना रहा था।
और....
बात यहीं ख़त्म करता हूँ।
लेकिन, इतना ज़रूर कहने दीजिये कि बचपन में बांसुरी न बजा पाने का दुःख उस दिन मिट गया था। कितना सुखद है कि मेरे होंठों की नियति बांसुरी नहीं बल्कि तुम थी। उसके बाद हम कभी बेसुरे नहीं रहे। शुक्रिया! #हीरेंद्र #एकप्रेमीकीडायरी #पहलाचुम्बन #kissday #velentinesweek
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