जर्मनी के पस्टोर मार्टीन निमोलर की एक कविता याद आती है, जो उन्होने-"फर्स्ट दे कम " के नाम से लिखी है।
जब नाज़ी कम्यूनिस्टों के पीछे आए,
मैं खामोश रहा
क्योकि, मैं कम्यूनिस्ट नहीं था
जब उन्होंने सोशल डेमोक्रेट्स को जेल में बंद किया
मैं खामोश रहा
क्योकि, मैं सोशल डेमोक्रेट नहीं था
जब वो यूनियन के मजदूरों के पीछे आए
मैं बिलकुल नहीं बोला
क्योकि, मैं मजदूर यूनियन का सदस्य नहीं था
जब वो यहूदियों के लिए आए
मैं खामोश रहा
क्योकि, मैं यहूदी नहीं था
लेकिन,जब वो मेरे पीछे आए
तब, बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
क्योंकि मै अकेला था।
जब नाज़ी कम्यूनिस्टों के पीछे आए,
मैं खामोश रहा
क्योकि, मैं कम्यूनिस्ट नहीं था
जब उन्होंने सोशल डेमोक्रेट्स को जेल में बंद किया
मैं खामोश रहा
क्योकि, मैं सोशल डेमोक्रेट नहीं था
जब वो यूनियन के मजदूरों के पीछे आए
मैं बिलकुल नहीं बोला
क्योकि, मैं मजदूर यूनियन का सदस्य नहीं था
जब वो यहूदियों के लिए आए
मैं खामोश रहा
क्योकि, मैं यहूदी नहीं था
लेकिन,जब वो मेरे पीछे आए
तब, बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
क्योंकि मै अकेला था।
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