वे बहुत अच्छे लोग हैं..उनके घर का मुखिया सुबह सवेरे टहल कर आता..चाय के साथ अखबार निपटाता और फिर चमकते-इठलाते दफ्तर को निकल जाता..बच्चे कॉलेज चले जाते और बच्चों की माँ लग जाती घर को करीने से सजाने, संवारने में..सुबह जो सबको टिफिन में बांधा था, उसी से पेट भर कर कभी फोन तो कभी टीवी देखते शाम का इंतज़ार...साहब दफ्तर में हर घंटे पर एक सिगरेट पीते ..और आठ सिगरेट फूँक कर घर लौट आते..बच्चे भी कॉलेज से लौटकर म्यूजिक क्लास और स्विमिंग के लिए निकल जाते...देर शाम सब इकट्ठे होकर कुछ वक्त साथ बैठते..खाते- गाते- सो जाते! उनकी अपनी एक अलग दुनिया है..उन्हें किसी अमिताभ, सचिन, मोदी, दामिनी या गुड़िया से कोई विशेष मतलब कभी नहीं रहा..कल पता चला कि वो जुलाई के बाद कनाडा शिफ्ट हो रहे हैं..उन्हें इंडिया में अब मन नहीं लगता..आस-पास के लोग बताते हैं कि इनका कभी किसी से झगड़ा नहीं हुआ.. इनके घर से कभी किसी ने तेज आवाज़ नहीं सुनी..वे सच में बहुत अच्छे लोग हैं! (जो लिखना चाहता था, वो न लिख पाया..पर आप समझ सकें तो एक तस्वीर यह भी है )
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Sunday, April 22, 2018
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विदा 2021
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...

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"हम हैं बच्चे आज के बच्चे हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे हम जानते हैं झूठ और सच हम जानते हैं गुड टच, बैड टच मम्मी, पापा जब...
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रेप की ख़बरें तब से भयावह लगने लगी है, जबसे रेप का मतलब समझ में आया. मेरी एक दोस्त ने मुझे बताया था कि एक बार जब वो चौदह साल की थी तो उसके...
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भोपाल के डा. बशीर बद्र उर्दू के एक ऐसे शायर हैं जिनकी सहज भाषा और गहरी सोच उन्हें गजल प्रेमियों के बीच एक ऐसे स्थान पर ले गई है जिसकी बराबरी...
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