इस हिस्से में पढ़िये एक प्रेमी की डायरी के खोये हुए कुछ पन्नों में दर्ज़ दिलों को छू लेने वाले कुछ किस्से..
#एकप्रेमीकीडायरी 1
इन दिनों मुंबई का मौसम शाम के वक्त बेहद खुशनुमा हो जाता है.. ग़ज़ब की रोमांटिसिज्म है हवा में! कुछ बसंत का भी असर होगा ही.. और कुछ समंदर किनारे की रूमानियत. ओशो ने एक जगह कहा है कि इंसान के पास जब कुछ कहने को नहीं होता तब वह मौसम की बातें करने लगता है! पता नहीं क्यों पर उनकी इस बात से आज अहसमत हूँ ..बहुत कुछ है कहने को.. ठीक इस वक्त इस मौसम में यह भी अनुभव कर रहा हूँ कि काश मैं एक रेडियो होता और वो अपने सीने से लगाये मुझे सुन रही होती!
#एकप्रेमीकीडायरी 2
कितनी भीड़ थी उस दिन इंडिया गेट पर। किसी तरह हमें थोड़ी सी जगह मिल पायी थी भूरे होते घास पर। तुम्हारे मना करने के बाद भी अपना रुमाल बिछा दिया था तुम्हारे बैठने को। जब तुम बैठी तो मन ही मन सरोजिनी नगर मार्केट के उस बूढ़े को शुक्रिया कहा जिसने ज़बरदस्ती मुझे 50 रुपये के 5 रुमाल बेच दिए थे। उस दिन ऑटो के बजाय 615 नम्बर की बस पकड़ कर घर गया था। अच्छा छोड़ो। मैं घास पर और तुम रुमाल पर थी। पास-पास होकर भी दूर। बार-बार चाय और चिप्स वाला हमें डिस्टर्ब कर रहा था। लेकिन, हम भी पक्के आशिक़ थे। सब झेलते हुए बैठे रहे। तुम मेरी नॉनसेन्स सी बातों पर भी किस अदा से मुस्कुरा लेती थी। तुम्हारी इस हुनर का तो मैं आज भी कायल हूँ। कितनी देर बैठे रहे थे हम। फोन आने पर जब तुमने अपनी मम्मी को बताया कि लाइब्रेरी में हूँ तो पहली बार लगा कि इश्क़ में झूठ भी बोलना पड़ता है। वो आदत तुम्हारी आज तक नहीं गयी। नहीं तो तुम इतनी आसानी से नहीं कहती कि जाओ अब हमारे बीच कुछ भी नहीं बचा।
#एकप्रेमीकीडायरी 1
इन दिनों मुंबई का मौसम शाम के वक्त बेहद खुशनुमा हो जाता है.. ग़ज़ब की रोमांटिसिज्म है हवा में! कुछ बसंत का भी असर होगा ही.. और कुछ समंदर किनारे की रूमानियत. ओशो ने एक जगह कहा है कि इंसान के पास जब कुछ कहने को नहीं होता तब वह मौसम की बातें करने लगता है! पता नहीं क्यों पर उनकी इस बात से आज अहसमत हूँ ..बहुत कुछ है कहने को.. ठीक इस वक्त इस मौसम में यह भी अनुभव कर रहा हूँ कि काश मैं एक रेडियो होता और वो अपने सीने से लगाये मुझे सुन रही होती!
#एकप्रेमीकीडायरी 2
कितनी भीड़ थी उस दिन इंडिया गेट पर। किसी तरह हमें थोड़ी सी जगह मिल पायी थी भूरे होते घास पर। तुम्हारे मना करने के बाद भी अपना रुमाल बिछा दिया था तुम्हारे बैठने को। जब तुम बैठी तो मन ही मन सरोजिनी नगर मार्केट के उस बूढ़े को शुक्रिया कहा जिसने ज़बरदस्ती मुझे 50 रुपये के 5 रुमाल बेच दिए थे। उस दिन ऑटो के बजाय 615 नम्बर की बस पकड़ कर घर गया था। अच्छा छोड़ो। मैं घास पर और तुम रुमाल पर थी। पास-पास होकर भी दूर। बार-बार चाय और चिप्स वाला हमें डिस्टर्ब कर रहा था। लेकिन, हम भी पक्के आशिक़ थे। सब झेलते हुए बैठे रहे। तुम मेरी नॉनसेन्स सी बातों पर भी किस अदा से मुस्कुरा लेती थी। तुम्हारी इस हुनर का तो मैं आज भी कायल हूँ। कितनी देर बैठे रहे थे हम। फोन आने पर जब तुमने अपनी मम्मी को बताया कि लाइब्रेरी में हूँ तो पहली बार लगा कि इश्क़ में झूठ भी बोलना पड़ता है। वो आदत तुम्हारी आज तक नहीं गयी। नहीं तो तुम इतनी आसानी से नहीं कहती कि जाओ अब हमारे बीच कुछ भी नहीं बचा।
#एकप्रेमीकीडायरी 3
उसकी ये आदत बहुत पुरानी थी कि जाते हुए वो कभी पीछे पलटकर नहीं देखती थी. लेकिन, मेरी आदत ऐसी कि जाते हुए जब तक वो नज़र से ओझल न हो जाये मैं उसे एकटक देखता रहता! आखिरी बार वो जब मुझसे मिली थी तो अपना शादी का कार्ड लेकर आई थी. उसके साथ उसकी एक सहेली भी थी. उसने मेरा हाथ पकड़ कर जोर देते हुए कहा कि तुम्हें आना है मेरी शादी में! मैंने हौले से कहा था कि जरूर आऊँगा.. मैं गया भी. लेकिन, पूरे कार्यक्रम के दौरान मैंने खुद को उसकी नज़र से बचाकर रखा. फिर चुपके से खाने के बाद वहाँ से निकल गया. कई दिनों बाद उसका एक मैसेज मिला मैं जानती थी कि तुम नहीं आओगे मेरी शादी में..मैंने बस यही लिखा कि गुलाबी शेरवानी में तुम्हारा दुल्हा बहुत डैशिंग लग रहा था. बधाई! उसके बाद मैंने उसके किसी सवाल का जवाब नहीं दिया. बारह साल बाद वो फेसबुक पर मिली. ज़ाहिर है कुछ बातें भी हुई.. वो मेरे सैकड़ों फेसबुक पोस्ट्स पढ़ चुकी थी.. इस बीच मैंने अनुभव किया कि अब वो बदल गई है.. जाते हुए कभी मुड़कर पीछे न देखने वाली वो लड़की अब पलटकर देखना चाहती है??
#एकप्रेमीकीडायरी 4
साँझ चुपके से आकर बगल में बैठ गई. मेरे कानों पर उसने अपनी ऊंगलियां कुछ यूं फेरी कि दूर से आ रही मंदिर की घंटियों का नाद मेरे चारों तरफ गूंजने लगा! मेरी पलकें मूंद गई और सांसों में धूप और अगरबत्ती की महक भरने लगी. सजल होते नैनों ने पंचामृत की कमी पूरी की. मेरे होंठ फूलों की तरह खिल उठे. और हाँ यह साँझ विदा लेने से पहले तेरी याद का प्रसाद मेरी झोली में डालकर गयी!
#एकप्रेमीकीडायरी 5
हँसते हुए वो अक्सर अपना मुँह ढक लिया करती. कुछ दिनों के बाद वो फिर जब ऐसा करने की कोशिश करती तो मैं उसका हाथ पकड़ लिया करता, ताकि वो अपनी हँसी को न ढक सके! धीरे-धीरे उसकी ये आदत जाती रही..अब वो खुलकर, ठहाके लगाकर, बेपरवाह होकर हँसती है..आज फिर जब मैंने उसे हँसते हुए देखा तो लगा कि जैसे कई साल से कच्चा -पक्का लिखने वाला मैं आज सच में एक जीवंत कविता रच पाया हूँ!
#एकप्रेमीकीडायरी 6
मन्दिर गया था। भगवान की मूरत काफी देर तक देखता रहा। फिर ये विचार आया मन में कि तमाम लोग तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवी, वामपंथी साथी जो मुझसे जुड़े हैं वे मूर्ति पूजा का विरोध क्यों करते हैं? किसी ने मुझे कभी इसका ठोस जवाब नहीं दिया। बस ये ज़िद किये बैठे हैं कि विरोध करना है। मैंने बहुत सोचा कि सदियों से हम देवी,देवताओं की मूर्ति को पूजते आ रहे हैं, कोई तो रहस्य होगा ही इसमें। ये बेवजह तो नहीं हो सकता। मैंने अनुभव किया कि बचपन से हम जितने चेहरे देखते हैं, वो उम्र के साथ-साथ बदलते जाते हैं। जब मैं छोटा था तो मेरी माँ जैसी दिखती थी, आज वैसी नहीं दिखती। बाबूजी भी बूढ़े हो चले हैं। मेरा ख़ुद का चेहरा काफी बदल गया। आस पास के दोस्तों का भी। कुछ चेहरे तो इतने बदल गए कि मुखौटे भी उनके सामने ओरिजिनल लगते हैं। लेकिन, जैसी छवि इन देवी-देवताओं की बचपन में देखी वे आज भी वैसे ही दीखते हैं। मेरे दादाजी ने भी माँ दुर्गा का यही रूप देखा होगा, मेरी आने वाली पीढ़ियां भी उनका यही रूप देखेगी। यानि की तमाम बदलते हुए चेहरों के बीच ये मूर्तियां नहीं बदली। ये एक सी बनी रहीं। इसलिए ये एक तरीके का आस्था है कि आपके पास सब बदल जाएगा पर भगवान नहीं बदलेंगे। ये हमेशा आपको वैसे ही मिलेंगे। ख़ामोशी से आपको सुनते हुए, आपमें एक अदृश्य ऊर्जा भरते हुए। बहुत कुछ मन में झरने सा बह रहा है, सोचा कुछ बूंदें आप पर भी छिड़क दूँ। बहुत प्यार। बस इतना ही।
#एकप्रेमीकीडायरी 7
बहुत देर तक कागज़ पर एक नाम लिखकर उसे एकटक देखता रहा. अचानक वो नाम धीरे-धीरे हवा में ऊपर उठने लगा. मैं भी उसके साथ-साथ उड़ चला.. कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं. बस इतना अहसास है कि स्याह अँधेरे आसमान में हम उड़े चले जा रहे थे. एक नाम जुगनू की तरह जगमगाता मुझे रास्ता दिखा रहा था. कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं. बस इतना अहसास है कि वो नाम मेरी साँसों में एक ताज़गी, एक सुगंध भर रहा था. मैं बेसुध था. मैंने उसे छूने की बहुत कोशिश की. वो मेरी नज़र के सामने ज़रूर था लेकिन, मेरी पहुँच से बहुत दूर. तभी खिड़की से आती हवा ने कागज़ के पन्ने को फड़फड़ा कर पलट दिया. एक शून्य लिए कोरा कागज़ मेरे सामने था. जिस पर सिर्फ एक नाम लिखकर मैं फिर से उड़ सकता था.
#एकप्रेमीकीडायरी 7
बहुत देर तक कागज़ पर एक नाम लिखकर उसे एकटक देखता रहा. अचानक वो नाम धीरे-धीरे हवा में ऊपर उठने लगा. मैं भी उसके साथ-साथ उड़ चला.. कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं. बस इतना अहसास है कि स्याह अँधेरे आसमान में हम उड़े चले जा रहे थे. एक नाम जुगनू की तरह जगमगाता मुझे रास्ता दिखा रहा था. कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं. बस इतना अहसास है कि वो नाम मेरी साँसों में एक ताज़गी, एक सुगंध भर रहा था. मैं बेसुध था. मैंने उसे छूने की बहुत कोशिश की. वो मेरी नज़र के सामने ज़रूर था लेकिन, मेरी पहुँच से बहुत दूर. तभी खिड़की से आती हवा ने कागज़ के पन्ने को फड़फड़ा कर पलट दिया. एक शून्य लिए कोरा कागज़ मेरे सामने था. जिस पर सिर्फ एक नाम लिखकर मैं फिर से उड़ सकता था.
और अंत में..
रात नींद देर से आती है इनदिनों..एक ख्वाब मेरे बगल में लेट मुझे निहारता रहता है! कुछ पूछना चाहूँ तो करवट बदल लेता है...मौन हो जाऊं तो थपकी देकर मुझे सुलाने की कोशिश करता है.. तब ज़हन की शाखों पर कुछ फूल खिल आते हैं..कमरे में खुशबू फ़ैल जाती है! नींद आ जाती है!
(कल रात लिखी डायरी में से) अपना ख्याल रखिएगा..
चलते चलते
कई साल बाद मालूम हुआ कि वो लिखने लगी है...मैंने ढूंढ कर उसकी कुछ रचनाएं पढ़ीं..लगा जैसे कि मेरी डायरी कोई गुम हुई हो कभी..अब मिल गयी है। #हीरेंद्र
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