तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ -दुष्यंत कुमार
अब मेरी तुकबन्दी देखिये
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ -दुष्यंत कुमार
अब मेरी तुकबन्दी देखिये

रात तू चाँद बन निकलती है
मैं आसमाँ तारों से सजाता हूँ
मन में एक रौशनी उतरती है
जब तुझको गले लगाता हूँ
शाम में रंग भरने लगता है
जब तेरा नाम गुनगुनाता हूँ
मिलन का है मज़ा जुदाई में
आज जाने दे कल आता हूँ
मेरी लाइफ तुझी से रौशन है
जो भी मिलता उसे बताता हूँ
कभी तो वक़्त मुस्कुराएगा
घड़ी को गुदगुदी लगाता हूँ
#हीरेंद्र
मैं आसमाँ तारों से सजाता हूँ
मन में एक रौशनी उतरती है
जब तुझको गले लगाता हूँ
शाम में रंग भरने लगता है
जब तेरा नाम गुनगुनाता हूँ
मिलन का है मज़ा जुदाई में
आज जाने दे कल आता हूँ
मेरी लाइफ तुझी से रौशन है
जो भी मिलता उसे बताता हूँ
कभी तो वक़्त मुस्कुराएगा
घड़ी को गुदगुदी लगाता हूँ

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