छिछोरे.. यह फिल्म हर माँ बाप को अपने बच्चों के साथ और हर महबूब को अपने आशिक के साथ देखनी चाहिये.. वे लोग जो सपने देखते हैं, ये उनकी फिल्म है.. यह जीतने वालों ही नहीं हारने वालों की फिल्म भी है.. यह दोस्ती, भरोसे और संकल्प की कहानी है.. मस्ती में डूबे नौजवानों की कहानी है. डायरेक्टर नितेश तिवारी ने दंगल के बाद भारतीय सिनेमा को एक और खूबसूरत फिल्म की सौगात दी है.. और अंत में ज़िंदगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज खुद ज़िंदगी ही है इस मैसेज के साथ यह फिल्म हमें ऑक्सीजन भी दे जाती है.. मेरी रेटिंग पांच में से साढ़े चार स्टार..देख आईयेगा... शुक्रिया!
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Sunday, September 08, 2019
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विदा 2021
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...

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"हम हैं बच्चे आज के बच्चे हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे हम जानते हैं झूठ और सच हम जानते हैं गुड टच, बैड टच मम्मी, पापा जब...
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रेप की ख़बरें तब से भयावह लगने लगी है, जबसे रेप का मतलब समझ में आया. मेरी एक दोस्त ने मुझे बताया था कि एक बार जब वो चौदह साल की थी तो उसके...
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भोपाल के डा. बशीर बद्र उर्दू के एक ऐसे शायर हैं जिनकी सहज भाषा और गहरी सोच उन्हें गजल प्रेमियों के बीच एक ऐसे स्थान पर ले गई है जिसकी बराबरी...
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