Mai paa saka na kabhi is khalish se chutkara
Wo mujhse jeet bhi sakta tha jaane kyo haara
Baras ke khul gaye hai aansu, nither gai hai fiza
Chamak raha hai sare-shaam dard ka taara
Kisi ki aankh se tapka tha ek amaanat hai
Meri hatheli rakha hua ye angaara
Jo par smete to ek shaakh bhi nahi pai
Khule the per to mera aasma tha saara
Wo saanp chor de dasna ye mai bhi kehta hu
Magar na chorenge log usko gar na funkaara.
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
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