कभी
भी बोल उठती हो तुम..आते-जाते, सिसकते-मुस्काते, सोते-जागते, रास्तों पर,
घर में या बीच सफर में...कभी-कभी ऐसे कांपने लगती हो जैसे कोई भूचाल सा आ
गया हो..कभी-कभी शोर में तुम्हे सुन नहीं पाता, कभी-कभी अनसुना कर देता हूँ
तो कभी अनदेखा भी..कभी ख़ामोशी से कोई सन्देश ले आती हो...कभी खुशी तो कभी
परेशानी भी दे जाती हो! तुम्हारा होना अब आदत है मेरी...और हाँ, जब उसका
नाम तेरे गाल पर पढ़ता हूँ तो तेरी मिलकियत सुहाने लगती है...ऐसे,ही मेरी
ज़िन्दगी में संगीत और समर्पण के रंग भरते रहना...मेरे मोबाइल तुम्हे ढेर
सारा प्यार - हिरेन्द्र
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Thursday, September 19, 2013
एक्सक्यूज
मी! सुनकर किनारे हट गया यह सो़च कर कि पीछे वाले को उतरना है शायद..आए
दिन मेट्रो में ये घटना सामान्य है..लेकिन, आज आवाज़ कुछ जानी-पहचानी थी!!
दोनों की नज़रें एक पल को मिली और उसी एक पल में मैं छः साल पीछे चला गया!
जब उससे आखरी बार बात हुई थी...इससे पहले कि कुछ कहता उसने टोक ही दिया-
आप? कैसे हैं? खुश हूँ...तुम कहो? अच्छी हूँ! ह्म्म्म...अच्छी नहीं बहुत
अच्छी हो आज भी, मैंने छेड़ते हुए कहा..दोनों
हँसते हैं..फिर, ध्यान आया कि उसका स्टेशन जा चुका है...पर उसे अफ़सोस नहीं
था...लगभग, छः साल बाद आज मिलना हुआ ..फिर, हम लोग काफी देर तक राजीव चौक
मेट्रो स्टेशन पर बतियाते रहे...मैंने कहा कि फेसबुक पर तो तुमने मुझे
ब्लाक कर रखा है पर रेडियो पर तुम्हारा प्रोग्राम मैं रोज़ सुनता हूँ!! क्या
कहती...कहा कि आपका मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर काँटा सा चुभता है..इसलिए
ब्लाक कर रखा है| फिर, एक एक कर कई परतें खुलती गयी...मुझे याद है हमारी
आखिरी मुलाक़ात..बहुत सारी खटास थी दोनों के मन में...फिर, वक्त की आपाधापी
में हम कभी रूबरू हो न सके..रूबरू तो छोडिये, कभी गुफ्तगू भी न हो सका...आज
न मालुम क्यों दोनों ने एक दूसरे को सॉरी भी कहा...अब चलती हूँ..बहुत देर
हो रही है...मेरा नंबर होगा आपके पास शायद| नहीं तो...फिर, उसने अपना नम्बर
बताया..यह कहते हुए कि बदल न सकी , इस उम्मीद में कि कभी तुम कॉल करो
शायद ...आप से तुम पर आ गयी थी हमारी ये मुलाक़ात...क्या कहता- बस इतना ही
कह सका ...हाँ, ठीक है जाओ...अब बहुत देर हो गयी है...
Monday, July 15, 2013
" भारत निर्माण"
हम
सब अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी ईमानदारी से निभाएँ...आओ नया इंडिया बनाएँ.." वे
लोग बेशक न कर पा रहे हों " भारत निर्माण", हम ही बना लें एक नया
हिन्दुस्तान.."
एक अलग तरह का शून्य
शून्य
में उतर जाने के लिए कुछ लोग नशा करते हैं..कुछ समाधि और कुछ योग भी, कुछ
सम्भोग भी! पर, कभी काम में डूब कर देखिये..एक अलग तरह का शून्य उभरता
है..कुछ नहीं दिखता, कुछ नहीं मालुम पड़ता..आप अपनी ही एक दुनिया में होते
हैं..आप सबको मिस करता हूँ..कुछ लोगों की लेखनी नहीं पढ़ पाने का मलाल रहता
है..
Subscribe to:
Posts (Atom)
विदा 2021
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...

-
"हम हैं बच्चे आज के बच्चे हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे हम जानते हैं झूठ और सच हम जानते हैं गुड टच, बैड टच मम्मी, पापा जब...
-
रेप की ख़बरें तब से भयावह लगने लगी है, जबसे रेप का मतलब समझ में आया. मेरी एक दोस्त ने मुझे बताया था कि एक बार जब वो चौदह साल की थी तो उसके...
-
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...