कभी
भी बोल उठती हो तुम..आते-जाते, सिसकते-मुस्काते, सोते-जागते, रास्तों पर,
घर में या बीच सफर में...कभी-कभी ऐसे कांपने लगती हो जैसे कोई भूचाल सा आ
गया हो..कभी-कभी शोर में तुम्हे सुन नहीं पाता, कभी-कभी अनसुना कर देता हूँ
तो कभी अनदेखा भी..कभी ख़ामोशी से कोई सन्देश ले आती हो...कभी खुशी तो कभी
परेशानी भी दे जाती हो! तुम्हारा होना अब आदत है मेरी...और हाँ, जब उसका
नाम तेरे गाल पर पढ़ता हूँ तो तेरी मिलकियत सुहाने लगती है...ऐसे,ही मेरी
ज़िन्दगी में संगीत और समर्पण के रंग भरते रहना...मेरे मोबाइल तुम्हे ढेर
सारा प्यार - हिरेन्द्र
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
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विदा 2021
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