दुःख को अगर अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कौन सा रंग चुनेगा? काला? काला दुःख का नहीं, विश्वास का रंग है. माँ जैसे अपने बेटे के माथे पर काला टीका लगाकर निश्चिंत हो जाती है कि अब मेरे मुन्ने को कुछ नहीं होगा. मतदान के बाद अंगुलियों पर काला निशान भी तो एक भरोसे का ही नाम है. तो फिर दु:ख का रंग कैसा होता होगा? मैंने देखा है एक सुहागन का सफेद दुःख, हरे पत्ते का पीला दुःख, किसी के दामन पर दु:ख के लाल छींटे, गुलाबी दु:ख ही नहीं इंद्रधनुष को भी देख कोई किसी की याद में दु:खी हो सकता है! जैसे हर रंग के सुख.. वैसे ही हर रंग के दु:ख..दु:ख का अपना कोई रंग नहीं.. दु:ख को अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कोरे कागज के रंग चुनेगा, सूनी आंखों का रंग चुनेगा.. रूक गई सांसों का रंग चुनेगा.. बुझे चिराग का रंग चुनेगा.. जलती चिता का रंग चुनेगा.. किसी के इंतज़ार का रंग चुनेगा.. इस सिलसिले का कोई अंतहीन रंग चुनेगा.. #हीरेंद्रकीडायरी
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Monday, May 06, 2019
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विदा 2021
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