आयुष्मान खुराना की फिल्म 'ड्रीम गर्ल' हँसते-हँसाते हुए समाज का एक ऐसा बेबस चेहरा दिखा जाती है जो हमें डराती भी है और सोचने पर भी मजबूर कर देती है.. कहानी बताती है कि आज के दौर में हर आदमी इतना अकेला है कि उसे किसी अनदेखे, अनजाने से भी इस कदर प्यार हो सकता है जिसके लिये वो अपना धर्म तक बदल ले..कलाई की नस काट ले.. स्त्री पुरूष का भेद भूलकर प्रेम संबंधों के एक नये रंग को उघाड़ने के लिये बेचैन हो जाये! क्यों? क्योंकि फोन के उस पार एक आवाज है.. एक ऐसी आवाज जो उसे ये भरोसा दे रही है कि वो उसके साथ है.. वो आवाज जो उसे ये तसल्ली दे रही है कि हाँ कोई है जो तुम्हें सुन रहा/रही है.. कोई है जिससे तुम सब कह सकते हो? इसी नाटकीय त्रासदी पर बनी यह फिल्म कहीं कहीं बोर भी करती है, लेकिन कुल मिलाकर देखने लायक बन पड़ी है.. आयुष्मान खुराना हर बार की तरह आपका दिल जीत लेंगे..ऐसा कहा जा सकता है कि आयुष्मान इस फिल्म के हीरो ही नहीं बल्कि हीरोइन भी हैं.. मेरी फेवरेट अभिनेत्री नुशरत भरूचा के हाथ कुछ ख़ास है नहीं इस फिल्म में.. राइटर-डायरेक्टर राज शांडिल्य ने फिल्म लिखी तो अच्छी है पर मुझे ऐसा लगा कि कहीं-कहीं डायरेक्शन में वो थोड़े कमजोर रह गये.. हालांकि, डॉयलॉग कमाल के हैं..मेरे हिसाब से एक मनोरंजक फिल्म.. मेरी रेटिंग साढ़े तीन स्टार.. थैंक्यू.. #हीरेंद्र
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Friday, September 13, 2019
Sunday, September 08, 2019
छिछोरे #रिव्यू
छिछोरे.. यह फिल्म हर माँ बाप को अपने बच्चों के साथ और हर महबूब को अपने आशिक के साथ देखनी चाहिये.. वे लोग जो सपने देखते हैं, ये उनकी फिल्म है.. यह जीतने वालों ही नहीं हारने वालों की फिल्म भी है.. यह दोस्ती, भरोसे और संकल्प की कहानी है.. मस्ती में डूबे नौजवानों की कहानी है. डायरेक्टर नितेश तिवारी ने दंगल के बाद भारतीय सिनेमा को एक और खूबसूरत फिल्म की सौगात दी है.. और अंत में ज़िंदगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज खुद ज़िंदगी ही है इस मैसेज के साथ यह फिल्म हमें ऑक्सीजन भी दे जाती है.. मेरी रेटिंग पांच में से साढ़े चार स्टार..देख आईयेगा... शुक्रिया!
Thursday, August 15, 2019
#MissionMangal Review
'मिशन मंगल' एक बेहतरीन और इंस्पायरिंग फ़िल्म है.. पहले ही प्रयास में भारत के मंगल ग्रह पर पहुंचने की कहानी के साथ यह फ़िल्म कई अन्य विषयों को भी बखूबी ढंग से दिखाती है.. जैसे कि जवान हो रही पीढ़ी के साथ माता-पिता का व्यवहार कैसा हो या फिर किसी तलाकशुदा औरत को मकान मिलने में कितनी परेशानी होती है..वगैरह.. वगैरह.. इस तरह की कई छोटी-छोटी बातें फ़िल्म में इस तरह से पिरो दी गई हैं कि वो आपको हँसाती भी हैं, रुलाती भी हैं और ठहरकर सोचने पर भी मजबूर करती हैं! डॉयलॉग जबर्दस्त है..कुल मिलाकर एक मनोरंजक फ़िल्म..पूरे परिवार के साथ देख आइये.. मेरी रेटिंग 5 में से 5 स्टार.. शुक्रिया.. #हीरेंद्र
Monday, July 29, 2019
ये सब कोई नहीं बताएगा, पढ़ लीजिये। फायदे में रहेंगे! #हीरेंद्र
१. अगर आपका कैमरा चोरी हो जाए तो परेशान न हों. आप Stolencamrafinder.com पर जायें। जहाँ आप अपने कैमरे से खींची हुई कोई तस्वीर अपलोड कर दें (हर फोटो का एक एम्बेड नंबर होता है). जब कोई आपके कैमरे से खींची गयी तस्वीर इंटरनेट या सोशल मीडिया पर कहीं शेयर करता है तो इसकी सूचना आपको मिल जायेगी। फिर आप चोर का लोकेशन थोड़ी कोशिश करके पा सकते हैं.
२. Duolingo.com पर जाकर आप कोई भी दूसरी भाषा आसानी से सीख सकते हैं. हाँ अभ्यास करते रहना होगा।
३. आपकी नींद पूरी नहीं हुई है. चलिए कोई बात नहीं। अब ये कीजिये कि मन में सोच लीजिये की आप बहुत ही गहरी नींद से जागे हैं और तरोताज़ा महसूस कर रहे हैं. सिर्फ ऐसा करके ही आप दिन भर बेहतर महसूस कर सकते हैं. यकीन नहीं, चलिए कभी आज़मा कर देखिये। हाँ, इस दौरान ये भूल से भी मत सोचियेगा कि आपकी नींद पूरी नहीं हुई है.
४. मान लीजिये आपने किसी गाड़ी को टक्कर मार दी. अब टक्कर मार तो दी लेकिन, उस वक़्त सॉरी नहीं बोलियेगा। आपका सॉरी बोलना कोर्ट में आपके खिलाफ जा सकता है. ज़ाहिर है सॉरी बोलकर आप अपनी गलती मान रहे हैं.
5. तारीख के हिसाब से पैसे बचाइए। जैसे एक तारीख को एक रूपया। दो तारीख को दो रूपया , उसी तरह 30 तारीख को 30 रूपया। ऐसा आप एक साल तक रोज़ करें। यह बचत बहुत आसान है. जानते हैं एक साल के बाद आपके पास कितने रुपये होंगे। लगभग 5 हज़ार सात सौ रुपये। तो कब से शुरू कर रहे हैं ये बचत?
६- अगर आप हवाई यात्रा करते हैं तो 6 से 8 सप्ताह पहले टिकट बुक करें। टिकट आप मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को ही बुक करें। यात्रा का दिन भी मंगल, बुध या गुरुवार हो. इस दिन टिकट सबसे सस्ता होता है. रविवार को उड़ना तो छोड़िये टिकट बुक करना ही महंगा पड़ता है. क्योंकि ज़्यादातर लोग रविवार को ही फुर्सत में होते हैं टिकट बनाने के लिए.
Saturday, July 27, 2019
घड़ी को गुदगुदी लगाता हूँ- हीरेंद्र
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ -दुष्यंत कुमार
अब मेरी तुकबन्दी देखिये

मैं आसमाँ तारों से सजाता हूँ
मन में एक रौशनी उतरती है
जब तुझको गले लगाता हूँ
शाम में रंग भरने लगता है
जब तेरा नाम गुनगुनाता हूँ
मिलन का है मज़ा जुदाई में
आज जाने दे कल आता हूँ
मेरी लाइफ तुझी से रौशन है
जो भी मिलता उसे बताता हूँ
कभी तो वक़्त मुस्कुराएगा
घड़ी को गुदगुदी लगाता हूँ

'अभागा सावन' - हीरेंद्र
सुना है कि इस मौसम में कभी वो बेलपत्रों पर ॐ नमः शिवाय का मंत्र भी लिखा करता तो कभी किसी की हथेली में लगी मेहँदी में ढूंढता था अपना लिखा नाम. जिन हरी काँच की चूड़ियों ने कभी उसका मन खनकाया था वो अब टूटकर उसके कलेजे में कहीं धँस सी गई है. अब उसके लिए सावन का मतलब सिर्फ बारिश होने का एक मौसम भर है.
अब उसके मन में कोई मोर नहीं नाचता. सावन के झूलों का तो पता नहीं लेकिन, अब वो झूलता रहता है अतीत के उन अँधेरों में जहाँ अब उसे कोयल की कूक भी झूठी लगती है. इतना अभागा ये सावन कभी न था. क्योंकि एक कवि ने अब सावन पर लिखना बंद कर दिया है. #अभागासावन #हीरेंद्र
Friday, July 26, 2019
एक छोटी सी कविता
आते हैं रात में भी दिन के ही ख़्वाब मुझको
काँटे भी चल के आये देने गुलाब मुझको
आँखों में बच गया है थोड़ा सा अब भी पानी
नहीं चाहिए जी छोड़ो कोई हिसाब मुझको
जल रहा हूँ मैं तभी से क्या बताऊँ ये किसी से
कोई कह के हाँ गया था इक दिन तेज़ाब मुझको
बस यही है एक ख़्वाहिश न चाहूँ इससे ज़्यादा
गुज़रुं जिधर से दुनिया करे आदाब मुझको #हीरेंद्र
Friday, July 19, 2019
नागों के बारे में कुछ दिलचस्प बातें! #हीरेंद्र
हीरेंद्र झा, मुंबई
Friday, July 12, 2019
Movie Review: Super 30
हाल के पांच, सात वर्षों में मुझे ध्यान नहीं पड़ता कि किसी फिल्म ने इस कदर छुआ हो.. रितिक रौशन दिल जीत लेते हैं. ये फिल्म हमें बार बार इमोशनल कर जाती है, एक बेहतर इंसान बनाती है..दूसरों के बारे में सोचना सिखाती है.. एक उम्मीद देती है..एक भरोसा जगाती है..
ये फिल्म आप अपने परिवार के साथ देख सकते हैं और मैं गारंटी के साथ यह कह सकता हूँ कि आप निराश नहीं होंगे.. ठीक है.. थैंक्यू

Friday, June 28, 2019
एक छोटी सी कविता
वो आये तो खुशी आई
जैसे मिलने ज़िंदगी आई
इश्क के अंगूर खट्टे थे
दोस्ती से चाशनी आई
जवानी में रहे हैरान बहुत
गई उम्र तो आशिकी आई
रंग सारे देख लिए उसने
बालों में तब सफेदी आई
जब भी सफर में थकने लगा
ख्यालों में फिर बेटी आई #हीरेंद्र
Tuesday, June 25, 2019
कबीर सिंह मूवी
कबीर सिंह फिल्म में कबीर का किरदार निभाने वाले शाहिद कपूर जहाँ और जब मन आये मूतने लगता है.. मैं इस फिल्म को 'गुड' या 'बेड' के खांचे में रख कर नहीं देखता.. लेकिन, यह फिल्म जरूर देखी जानी चाहिये.. और देखने के बाद इस फिल्म से उपजे भावों पर मूत करके आगे बढ़ जाना चाहिए.. कबीर सिंह हीरो नहीं है.. लेकिन, कबीर सिंह इस समाज का एक घिनौना सच है.. कबीर सिंह जिसे प्यार समझता है दरअसल वो उसकी सनक है.. जिसमें वो खुद के सिवा किसी और को नहीं देखना चाहता!! #हीरेंद्र
Saturday, June 22, 2019
दार्जिलिंग #एक यादगार यात्रा
'घूम' जहाँ हम रुके थे वहां कई बौद्ध मठ हैं.
टॉय ट्रेन यहाँ की लाइफलाइन है. किराया महंगा है लेकिन इस ट्रेन में सफर करते हुए पहाड़ियों से गुजरना स्वर्गलोग के सैर करने की तरह है.
मिरिक के चाय बागान बेहद मनमोहक हैं. वहां के पारंपरिक परिधान में हम सब खूब जंच रहे थे.
दार्जिलिंग का माल रोड भी रौनक से भरा रहा.
गेस्ट हाउस से निकलते समय हमें वहां पारम्परिक तरीके से स्टॉल पहनकर सम्मान किया गया.
वहां से लौटते हुए हम नेपाल भी छू आये.
कुल मिलाकर ख़ुशी, शालिनी और एक करीबी दोस्त संग यादगार रही हमारी यात्रा।
Tuesday, May 07, 2019
मैं ही आने वाला कल!!
मैं पायल, मैं झूमर, मैं महबूबा का काजल
मैं पागल, मैं बादल, मैं प्यासों का गंगाजल ..
मैं अम्बर, मैं सागर, मैं ही अम्मा का आँचल..
मैं हूँ बल, मैं ही दल , मैं ही किसान का बैल और हल ..
मैं ही गीत, मैं ही प्रीत, मैं ही रेशम से लिखी गज़ल..
मैं हूँ पल, मैं हूँ फल , मैं ही आने वाला कल!!- हीरेंद्र
(7 मई 2012)
Monday, May 06, 2019
दु:ख का रंग
दुःख को अगर अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कौन सा रंग चुनेगा? काला? काला दुःख का नहीं, विश्वास का रंग है. माँ जैसे अपने बेटे के माथे पर काला टीका लगाकर निश्चिंत हो जाती है कि अब मेरे मुन्ने को कुछ नहीं होगा. मतदान के बाद अंगुलियों पर काला निशान भी तो एक भरोसे का ही नाम है. तो फिर दु:ख का रंग कैसा होता होगा? मैंने देखा है एक सुहागन का सफेद दुःख, हरे पत्ते का पीला दुःख, किसी के दामन पर दु:ख के लाल छींटे, गुलाबी दु:ख ही नहीं इंद्रधनुष को भी देख कोई किसी की याद में दु:खी हो सकता है! जैसे हर रंग के सुख.. वैसे ही हर रंग के दु:ख..दु:ख का अपना कोई रंग नहीं.. दु:ख को अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कोरे कागज के रंग चुनेगा, सूनी आंखों का रंग चुनेगा.. रूक गई सांसों का रंग चुनेगा.. बुझे चिराग का रंग चुनेगा.. जलती चिता का रंग चुनेगा.. किसी के इंतज़ार का रंग चुनेगा.. इस सिलसिले का कोई अंतहीन रंग चुनेगा.. #हीरेंद्रकीडायरी
Thursday, April 04, 2019
बैठकर कविता मत लिखना
जिस तरफ कोई न दिखे उस तरफ तुम चलना..
जो सफर को निकलो तो कोई नक्शा साथ मत रखना..
रात को जो जागते हो तो इसमें कोई बात नहीं
लेकिन, ये ध्यान रहे कि दिन में कभी मत सोना..
पूछे जो कोई हाल तो कह देना कि सब अच्छा है..
अपना दर्द कभी किसी से भूलकर भी मत कहना..
चालाकियां करेंगे सभी तुमको इस्तेमाल करते हुए
उनसे दूर भले हो जाना बोझ दिल पर मगर मत रखना..
शाम को ज़ाहिर है तुम्हें उसकी याद आयेगी..
उसको फोन कर लेना, बैठकर कविता मत लिखना :) #हीरेंद्र
Wednesday, April 03, 2019
एक प्रेमी की डायरी
हम दोनों तब बेमतलब सी बातों पर देर तक हँसा करते थे.. फोन उठाने में एक पल की भी देरी होती तो बेचैनी बढ़ जाती.. कोई मैसेज आ जाता तो अपने आप हम मुस्कुरा देते. जो मिलते तो देर तक अपने बदन में उसकी खुश्बू महसूस करते..जो न मिल पाते तो शामें उदास हो जातीं.. और भी बहुत कुछ मीठा मीठा हुआ करता. वे नादानियों के दिन थे.. वे मोहब्बत के दिन थे.. तब हमें एक चाय और एक कोल्ड कॉफी से ज्यादा की दरकार नहीं हुआ करती थी.. सच कितने प्यारे दिन थे वे.. हमारे दिन थे वे! उन्हीं दिनों को ताउम्र जी सकें इसी आस में हमने एक यात्रा शुरू की.. यात्राओं की पहली शर्त यही होती है कि नादान बने रहने से काम नहीं चलने वाला.. आप होशियार होने लगते हैं.. आप कुछ और होने लगते हैं! इन सबके बीच कुछ छूटने लगता है.. कई बार हम समझ भी नहीं पाते कि क्या छूट गया है और क्या छोड़ आये हैं.. #हीरेंद्र #एकप्रेमीकीडायरी
Monday, April 01, 2019
मूर्ख दिवस का जश्न
अपनी कमियों को यूं छुपाया दुनिया ने
मूर्ख दिवस का जश्न मनाया दुनिया ने
सुबह का भूला शाम को वापस लौटा है
इस जुमले को खूब भुनाया दुनिया ने
सफर में निकलो तुम पूरी तैयारी से
गिर जाने पर किसे उठाया दुनिया ने
तेरे बाद बड़ी मुश्किल से संभला था
पूछ पूछ कर खूब रूलाया दुनिया ने
मैं भी धीरे-धीरे सबको भूल गया
और एक दिन मुझे भुलाया दुनिया ने #हीरेंद्र
Sunday, March 31, 2019
रविवारनामा 2
आज कमीज में बटन लगाते हुए माँ की बहुत याद आई. वो चश्मा पहने सुई में धागा डालती माँ कितनी क्यूट लगती थी. अब कभी किसी शर्ट का बटन टूट जाये तो वो महीनों यूं ही पड़ा रहता है. कई बार तो मैं जान बूझकर भी उसे टाले रहता हूँ कि किसी इतवार के दिन जब अकेले होऊंगा तब लगा लूँगा बटन.. कि इसी बहाने फिर से जी लूँगा अपने हिस्से का बचपन #रविवारनामा #हीरेंद्र
Saturday, March 30, 2019
रविवारनामा
रविवार. ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत पल कभी इसी के हिस्से आते रहे हैं! बचपन में इस दिन का एक अलग ही जादू हुआ करता. ये भी गजब था कि हम रविवार को रोज से पहले ही जग जाया करते. नींद अपने आप टूट जाती,जबकि हम कुछ घंटे और सो सकते थे. आज भी छुट्टी के दिन सुबह जल्दी ही आँख खुल जाती है. लेकिन, वो आकर्षण अब कहाँ?
टीवी पर जब रंगोली के सुरीले गीत बजने लगते तो इस बात की तसल्ली हो जाती कि आज मोगली भी आयेगा! रामायण, महाभारत, श्री कृष्णा और चंद्रकांता के दिन थे वो.. अर्जुन जब तीर चलाते और एक तीर से ही सैकड़ों तीर निकलकर दुष्टों का संहार करता तो हम एकटक देखा करते. कभी तीर आग उगलता तो कभी साँप बनकर हवा में उड़ने लगता. कभी कभी तो वो त्रिशुल भी बन जाया करता. अद्भुत था सब!
इतवार तब किस्से और कहानियों का दिन हुआ करता. खाने और खेलने का दिन. धूप-बारिश, सर्दी-गर्मी से बेपरवाह पड़ोसियों की नाक में दम किये रहते. क्रिकेट खेलते, साइकिल चलाते, सीटी बजाते.. चीखते-चिल्लाते उधम मचाते!
तब आज की तरह न तो कमरे की साफ सफाई की चिंता थी और न ही कपड़े धोने की फिक्र. ले देकर बस एक रविवार था.. और सब रविवारमय! स्कूल और होमवर्क की टेंशन भी हम अपने आस-पास नहीं फटकने देते थे..
मस्ती से भरपूर था इतवार, थकन से चूर था इतवार. कि पूरे सप्ताह हमें रहता था इस दिन का इंतज़ार...
ये भी सच है कि आज भी आता है ये रविवार. लेकिन, अब ये संडे है. अब ये सिर्फ एक ब्रेक है.. अंग्रेज़ी में ब्रेक का एक मतलब तोड़ना भी होता है. अकेले रहने वाले इस दिन थोड़ा टूटते भी होंगे? #रविवारनामा #हीरेंद्र
Thursday, February 21, 2019
नज़्म
मैं जिधर से भी गुज़रता हूँ...
एक नज़्म छोड़ता हुआ
आगे बढ़ता जाता हूँ ...
ताकि जब कभी तुम
मुझ तक पहुँचना चाहो
तो रास्ता न भटको...
नज़्म के निशान देख..
मुझ तक पहुंच सको!
जो न आना चाहो
तो भी कोई बात नहीं..
कम से कम
नई नज़्म लिखने की वजह तो बनी रहेगी!
मैं लिखता रहूँगा
इस आस में कि
एक दिन तुम ज़रूर आओगी....
आज इतना ही, शेष मिलने पर
- तुम्हारा ही #हीरेंद्र
Wednesday, January 16, 2019
Personality Development
*How can I improve myself within a month?*
*20 ideas -:*
1. Detoxify your speech. Reduce the use of negative words. Be polite.
2. Read everyday. Doesn’t matter what. Choose whatever interests you.
3. Promise yourself that you will never talk rudely to your parents. They never deserve it.
4. Observe people around you. Imbibe their virtues.
5. Spend some time with nature everyday.
6. Feed the stray animals. Yes, it feels good to feed the hungry.
7. No ego. No ego. No ego. Just learn, learn and learn.
8. Do not hesitate to clarify a doubt. “He who asks a question remains fool for 5 minutes. He who does not ask remains a fool forever”.
9. Whatever you do, do it with full involvement. That’s meditation.
10. Keep distance from people who give you negative vibes but never hold grudges.
11. Stop comparing yourself with others. If you won’t stop, you will never know your own potential.
12. The biggest failure in life is the failure to try. Always remember this.
13. “I cried as I had no shoes until I saw a man who had no feet”. Never complain.
14. Plan your day. It will take a few minutes but will save your days.
15. Everyday, for a few minutes, sit in silence. I mean sit with yourself. Just yourself. Magic will flow.
16. In a healthy body resides a healthy mind. Do not litter it with junk.
17. Keep your body hydrated at all times. Practice drinking 8–10 glasses of water.
18. Make a habit to eat at least one serving of raw vegetable salad on a daily basis.
19. Take care of your health. He who has health has hope and he who has hope has everything.
20. Life is short. Life is simple. Do not complicate it. Don’t forget to smile.
Keep reading this daily at least once...😊🙏🏻
Friday, January 04, 2019
एक मृतक की डायरी -2 #हीरेंद्र झा
मुझे यह समझने में बहुत समय लगा कि कुछ लोगों में E. Q (Emotional Quotient) 'भावनात्मकता' की मात्रा ज्यादा होती है तो कुछ लोगों में I. Q (Intelligence Quotient) यानी 'बुद्धिमता' का जोर ज्यादा चलता है.
ये दो रवैये वाले लोग पूरी ज़िन्दगी एक दूसरे पर एक दूसरे को ना समझने का आरोप मढ़ते हुए ताउम्र अवसाद में गुजार देते हैं. ये वास्तव में समस्या को पहचान ही नहीं पाते और समाधान तलाशा करते हैं..
नतीजा कलह, अशांति और नाकामयाबी..
जरूरत है EQ और IQ के अंतर को सहजता से स्वीकारना.. किसी को बदलना उसके डीएनए को बदलने की तरह होता है..
तो EQ या IQ को बढ़ाना और एक संतुलन बना पाना, एक परिचित बिंदु तलाश लेना.. उस रिश्ते को भी बचा लेता है!
याद रहे औरों से संबंध मधुर होंगे तभी जीवन सुखी और सफल हो सकता है..वर्ना छटपटा तो हम पिछले जनम से रहे हैं.. #एकमृतककीडायरी से #हीरेंद्र
Thursday, January 03, 2019
एक लेखक का अंत #हीरेंद्र झा
शुरू शुरू में जब दोनों मिले तो एक अलग ही तरह की खुमारी थी.
वो आज भी याद करता है कि वो कुछ भी अनर्गल लिख देता और वो लड़की उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ने लगती. तारीफ का असर कुछ ऐसा हुआ कि लड़का लिखने लगा.. लगातार लिखता रहा.. और वो लड़की भी उसे मन से पढ़ती.. मन से सुनती.. मन से सराहती..
लिखने वाले लड़के के लिए यह अहसास नया था.. और उसकी तारीफ सुनने के लिए पढ़ने लगा.. लिखने लगा..
उसने चांद तारों पर लिखा, फूल पत्तियों पर लिखा.. दिल और दरिया पर लिखा.. मिलन और जुदाई पर लिखा..
धीरे धीरे उसने दायरा बढ़ाया और फिर उसने जीवन और दुनिया पर लिखना शुरू किया..
एक लड़की को खुश करने के हुनर से वह दूसरे पाठकों को भी समझने लगा.. वो निखरता गया..
वो लिखने के पेशे से जुड़ा..अब वो क्लाइंट के हिसाब से लिखने लगा.. क्लाइंट पैसे तो दे देता पर तारीफ नहीं किया करता.. वो बेचैन रहने लगा.. वो लिखता रहा पर अब वैसी तारीफ उसकी कोई नहीं करता..
वो लड़की भी अब तक इस लेखक की तारीफ करना छोड़ चुकी थी.. दस साल में ज़ाहिर सी बात है कि लड़का अब ज्यादा बेहतर लिखने लगा.. समय ने उसे एक लेखक के रूप में स्थापित कर दिया..
लेकिन, फिर उसने एक दिन लिखना छोड़ दिया.. जो चीज उसे सबसे ज्यादा खुशी देती थी वो उससे यानी लेखन से दूर होता गया..
वो समझ ही नहीं पाया कि ऐसा क्यों हुआ.. वो बेचैन रहता.. एक दिन उसने निराशा के गहनतम क्षण में उस लड़की को उलाहना देते हुए कहा कि अब तुम मेरे लिखे की तारीफ भी नहीं करती??
लड़की ने तपाक से उत्तर दिया कि अच्छा तो तुम तारीफ पाने के लिए लिखते हो?
उसने इस तरह के जवाब की आशा नहीं की थी..
फिर वो देर तक सोचता रहा कि भला वो क्यों लिखता था.. उसे यह तय करने में कोई मुश्किल नहीं हुई कि वो तो बस उस लड़की की तारीफ सुनने के लिए ही लिखता रहा..
जब वो विस्मय भाव से उसे उसके लिखे का मतलब समझा रही होती.. तो उसे लगता कि उसका लिखना सार्थक हुआ..
लेकिन, अब वह जान गया है कि वो अनर्गल और निरर्थक ही लिखता रहा है.. अब उसने लिखना छोड़ दिया है.. अब वो पागल हो गया है!#लघुकथा #एकलेखककाअंत #हीरेंद्र
विदा 2021
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...

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"हम हैं बच्चे आज के बच्चे हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे हम जानते हैं झूठ और सच हम जानते हैं गुड टच, बैड टच मम्मी, पापा जब...
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रेप की ख़बरें तब से भयावह लगने लगी है, जबसे रेप का मतलब समझ में आया. मेरी एक दोस्त ने मुझे बताया था कि एक बार जब वो चौदह साल की थी तो उसके...
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भोपाल के डा. बशीर बद्र उर्दू के एक ऐसे शायर हैं जिनकी सहज भाषा और गहरी सोच उन्हें गजल प्रेमियों के बीच एक ऐसे स्थान पर ले गई है जिसकी बराबरी...