Sunday, April 22, 2018

कविता- गुड टच, बैड टच


"हम हैं बच्चे आज के बच्चे
हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे
हम जानते हैं झूठ और सच
हम जानते हैं गुड टच, बैड टच

मम्मी, पापा जब गले लगाते
इसको ही हम गुड टच कहते
बैड टच होता है वो
हमारे प्राइवेट बॉडी पार्ट्स छूता है जो

बच्चों, हमारे लिप्स, चेस्ट, कमर के नीचे...आगे या पीछे ये होते हैं हमारे प्राइवेट बॉडी पार्ट्स

कोई बैड टच करे तो शोर मचाओ
जाकर मम्मी, पापा को बतलाओ #हीरेंद्र

ये poem लिखी थी कभी मैंने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए। हो सके तो अपने बच्चों को रटवा दीजियेगा।

रेप के विरोध में सोशल मीडिया पर लगातार लोग लिख रहे हैं. यह एक अच्छी बात है. बस यह रफ़्तार और आवाज़ थमनी नहीं चाहिए. रेप को लेकर जो कुछ नए कानून की बात आई है उस सन्दर्भ में यह कहना गलत न होगा कि सोशल मीडिया के दबाव का भी कुछ न कुछ असर हुआ ही होगा .

मैंने खुद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को ट्वीट किया था कि स्वच्छता अभियान के तर्ज पर रेप के खिलाफ़ भी मुहीम शुरू कीजिये. मैं नहीं जानता हमारे लिखने, बोलने से कितना फर्क पड़ता है. लेकिन, यह ज़रूर जानता हूं कि लिखते/बोलते रहना होगा!

इस विषय पर जो मैंने पहले दो भागों में लिखा है, वो आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं..

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता- हीरेंद्र झा

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता (भाग 2) - हीरेंद्र झा







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