Sunday, April 29, 2018

नेता जी

छोटी सी एक कहानी

वे बहुत सुखी लोग हैं..बाढ़ राहत का जायजा लेकर और आसमान में हेलिकॉप्टर बाजी करके अभी अभी लौटे हैं..चैनल बदल-बदल के अपनी शक्ल टीवी पर देखकर आनंदित हो रहे हैं..आज वे चाय नहीं लेंगे, लाशें देख कर आए हैं सो शराब ही ठीक है! आज उन्हें अकेले नींद नहीं आएगी इसलिए सुन्दर सा इंतजाम करने का इशारा वो पहुँचते ही कर चुके थे..अब उन्हें बस कल सुबह की अखबार का इंतज़ार है..रिपोर्टर ने वादा किया था - इस बार बड़ी फोटो आएगी आपकी! #हीरेंद्र

One liner

इस हिस्से में पढ़ियेगा मेरी लिखी कुछ चुनिंदा वन लाइनर.. #हीरेंद्र

*तुम्हारा carbon dioxide मेरा oxygen बन जाए तेरे इतने करीब आना चाहता हूँ 😘 #chemistry of love

* नहीं अकेले नहीं हूं, दीवार पर एक छिपकली भी है! 

* अरे पगली जब मैं तेरे होंठों को चूम सकता हूं तो तेरा जूठा क्यों नहीं खा सकता!

* दीवार पर टंगी एक तस्वीर इन दिनों खूब उलाहने देती है, आखिरकार स्टेशन जाकर एक टिकट कटवा ही ली.

* घर बार छोड़ कर बेटा शहर में टिका है कि एक नया घर बनाएगा, घर से घर तक की इस यात्रा में पाना कम और खोना ज्यादा है! 

* आज चाँद कान की तरह दिख रहा है, लगता है वो सुनने के मूड में है! 

* फेसबुक पर कुछ साथ हमेशा प्रवचन मोड में रहते हैं, कभी मिलने का अवसर आया तो आधा किलो बूंदी के लड्डू और गेंदे फूल का माला लेकर जाऊँगा! 

* भूखे मरने से अच्छा है, थप्पर खाकर मर जाना #एक मच्छर की ख्वाहिश 

* बड़ा वही है जो जानता है कि कोई छोटा नहीं!

* जब मैंने खुद को स्वीकार कर लिया है..तो तुम मुझे स्वीकार करो या न करो इस बोझ से मैं मुक्त हो गया हूं।

* चैन से सोने के लिए कई बार नींद तक का सौदा करना पड़ता है...

*आवाजों के इस जंगल के बीच खड़े होकर जब स्वरों की मंशा पहचानना कठिन हो जाए तब समझ लेना चाहिए कि अब मुश्किल घड़ी आने वाली है!!!

* धृतराष्ट्र के राजा बनने पर कोई आपत्ति नहीं। लेकिन, एक राजा को धृतराष्ट्र नहीं होना चाहिए।

* वो 'शेर' है... सर्कस में काम करता है!

Thursday, April 26, 2018

दृश्य 1, 2 और तीन... निष्कर्ष आप निकालिये!

दृश्य 1

ऑटो रूकती है. लड़की ऑटो से उतर कर मोबाइल से किसी को फ़ोन मिला देती है. लड़का जेब से बटुआ निकालता है. ऑटो वाले को किराया देता है!!

दृश्य 2

वेटर हाथ में बिल लिए टेबल की तरफ बढ़ रहा है. लड़की ने उड़ती नज़र से उसे देखा और वाशरूम से आती हूँ कह कर चली गयी. लड़के ने जेब से बटुआ निकाला और बिल दिया।

दृश्य 3

रिक्शा रुकता है. दो लड़कियां नीचे उतरती हैं...कितना हुआ भैया?? बीस रुपये...कंचन सुन..मेरे पास है दस रुपये चेंज...तू अपना दे दे!! हाँ ये ले...

निष्कर्ष आप निकालिये. मैंने तो जैसा देखा, बता दिया!! #हीरेंद्र

Wednesday, April 25, 2018

एक प्रेमी की डायरी- हीरेंद्र झा


इस हिस्से में पढ़िये एक प्रेमी की डायरी के खोये हुए कुछ पन्नों में दर्ज़ दिलों को छू लेने वाले कुछ किस्से..


#एकप्रेमीकीडायरी 1


इन दिनों मुंबई का मौसम शाम के वक्त बेहद खुशनुमा हो जाता है.. ग़ज़ब की रोमांटिसिज्म है हवा में! कुछ बसंत का भी असर होगा ही.. और कुछ समंदर किनारे की रूमानियत. ओशो ने एक जगह कहा है कि इंसान के पास जब कुछ कहने को नहीं होता तब वह मौसम की बातें करने लगता है! पता नहीं क्यों पर उनकी इस बात से आज अहसमत हूँ ..बहुत कुछ है कहने को.. ठीक इस वक्त इस मौसम में यह भी अनुभव कर रहा हूँ कि काश मैं एक रेडियो होता और वो अपने सीने से लगाये मुझे सुन रही होती! 


#एकप्रेमीकीडायरी 2

कितनी भीड़ थी उस दिन इंडिया गेट पर। किसी तरह हमें थोड़ी सी जगह मिल पायी थी भूरे होते घास पर। तुम्हारे मना करने के बाद भी अपना रुमाल बिछा दिया था तुम्हारे बैठने को। जब तुम बैठी तो मन ही मन सरोजिनी नगर मार्केट के उस बूढ़े को शुक्रिया कहा जिसने ज़बरदस्ती मुझे 50 रुपये के 5 रुमाल बेच दिए थे। उस दिन ऑटो के बजाय 615 नम्बर की बस पकड़ कर घर गया था। अच्छा छोड़ो। मैं घास पर और तुम रुमाल पर थी। पास-पास होकर भी दूर। बार-बार चाय और चिप्स वाला हमें डिस्टर्ब कर रहा था। लेकिन, हम भी पक्के आशिक़ थे। सब झेलते हुए बैठे रहे। तुम मेरी नॉनसेन्स सी बातों पर भी किस अदा से मुस्कुरा लेती थी। तुम्हारी इस हुनर का तो मैं आज भी कायल हूँ। कितनी देर बैठे रहे थे हम। फोन आने पर जब तुमने अपनी मम्मी को बताया कि लाइब्रेरी में हूँ तो पहली बार लगा कि इश्क़ में झूठ भी बोलना पड़ता है। वो आदत तुम्हारी आज तक नहीं गयी। नहीं तो तुम इतनी आसानी से नहीं कहती कि जाओ अब हमारे बीच कुछ भी नहीं बचा। 



#एकप्रेमीकीडायरी 3


उसकी ये आदत बहुत पुरानी थी कि जाते हुए वो कभी पीछे पलटकर नहीं देखती थी. लेकिन, मेरी आदत ऐसी कि जाते हुए जब तक वो नज़र से ओझल न हो जाये मैं उसे एकटक देखता रहता! आखिरी बार वो जब मुझसे मिली थी तो अपना शादी का कार्ड लेकर आई थी. उसके साथ उसकी एक सहेली भी थी. उसने मेरा हाथ पकड़ कर जोर देते हुए कहा कि तुम्हें आना है मेरी शादी में! मैंने हौले से कहा था कि जरूर आऊँगा.. मैं गया भी. लेकिन, पूरे कार्यक्रम के दौरान मैंने खुद को उसकी नज़र से बचाकर रखा. फिर चुपके से खाने के बाद वहाँ से निकल गया. कई दिनों बाद उसका एक मैसेज मिला मैं जानती थी कि तुम नहीं आओगे मेरी शादी में..मैंने बस यही लिखा कि गुलाबी शेरवानी में तुम्हारा दुल्हा बहुत डैशिंग लग रहा था. बधाई! उसके बाद मैंने उसके किसी सवाल का जवाब नहीं दिया. बारह साल बाद वो फेसबुक पर मिली. ज़ाहिर है कुछ बातें भी हुई.. वो मेरे सैकड़ों फेसबुक पोस्ट्स पढ़ चुकी थी.. इस बीच मैंने अनुभव किया कि अब वो बदल गई है.. जाते हुए कभी मुड़कर पीछे न देखने वाली वो लड़की अब पलटकर देखना चाहती है?? 


#एकप्रेमीकीडायरी 4


साँझ चुपके से आकर बगल में बैठ गई. मेरे कानों पर उसने अपनी ऊंगलियां कुछ यूं फेरी कि दूर से आ रही मंदिर की घंटियों का नाद मेरे चारों तरफ गूंजने लगा! मेरी पलकें मूंद गई और सांसों में धूप और अगरबत्ती की महक भरने लगी. सजल होते नैनों ने पंचामृत की कमी पूरी की. मेरे होंठ फूलों की तरह खिल उठे. और हाँ यह साँझ विदा लेने से पहले तेरी याद का प्रसाद मेरी झोली में डालकर गयी!

#एकप्रेमीकीडायरी 5


हँसते हुए वो अक्सर अपना मुँह ढक लिया करती. कुछ दिनों के बाद वो फिर जब ऐसा करने की कोशिश करती तो मैं उसका हाथ पकड़ लिया करता, ताकि वो अपनी हँसी को न ढक सके! धीरे-धीरे उसकी ये आदत जाती रही..अब वो खुलकर, ठहाके लगाकर, बेपरवाह होकर हँसती है..आज फिर जब मैंने उसे हँसते हुए देखा तो लगा कि जैसे कई साल से कच्चा -पक्का लिखने वाला मैं आज सच में एक जीवंत कविता रच पाया हूँ! 

#एकप्रेमीकीडायरी 6

मन्दिर गया था। भगवान की मूरत काफी देर तक देखता रहा। फिर ये विचार आया मन में कि तमाम लोग तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवी, वामपंथी साथी जो मुझसे जुड़े हैं वे मूर्ति पूजा का विरोध क्यों करते हैं? किसी ने मुझे कभी इसका ठोस जवाब नहीं दिया। बस ये ज़िद किये बैठे हैं कि विरोध करना है। मैंने बहुत सोचा कि सदियों से हम देवी,देवताओं की मूर्ति को पूजते आ रहे हैं, कोई तो रहस्य होगा ही इसमें। ये बेवजह तो नहीं हो सकता। मैंने अनुभव किया कि बचपन से हम जितने चेहरे देखते हैं, वो उम्र के साथ-साथ बदलते जाते हैं। जब मैं छोटा था तो मेरी माँ जैसी दिखती थी, आज वैसी नहीं दिखती। बाबूजी भी बूढ़े हो चले हैं। मेरा ख़ुद का चेहरा काफी बदल गया। आस पास के दोस्तों का भी। कुछ चेहरे तो इतने बदल गए कि मुखौटे भी उनके सामने ओरिजिनल लगते हैं। लेकिन, जैसी छवि इन देवी-देवताओं की बचपन में देखी वे आज भी वैसे ही दीखते हैं। मेरे दादाजी ने भी माँ दुर्गा का यही रूप देखा होगा, मेरी आने वाली पीढ़ियां भी उनका यही रूप देखेगी। यानि की तमाम बदलते हुए चेहरों के बीच ये मूर्तियां नहीं बदली। ये एक सी बनी रहीं। इसलिए ये एक तरीके का आस्था है कि आपके पास सब बदल जाएगा पर भगवान नहीं बदलेंगे। ये हमेशा आपको वैसे ही मिलेंगे। ख़ामोशी से आपको सुनते हुए, आपमें एक अदृश्य ऊर्जा भरते हुए। बहुत कुछ मन में झरने सा बह रहा है, सोचा कुछ बूंदें आप पर भी छिड़क दूँ। बहुत प्यार। बस इतना ही।

#एकप्रेमीकीडायरी 7

बहुत देर तक कागज़ पर एक नाम लिखकर उसे एकटक देखता रहा. अचानक वो नाम धीरे-धीरे हवा में ऊपर उठने लगा. मैं भी उसके साथ-साथ उड़ चला.. कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं. बस इतना अहसास है कि स्याह अँधेरे आसमान में हम उड़े चले जा रहे थे. एक नाम जुगनू की तरह जगमगाता मुझे रास्ता दिखा रहा था. कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं. बस इतना अहसास है कि वो नाम मेरी साँसों में एक ताज़गी, एक सुगंध भर रहा था. मैं बेसुध था. मैंने उसे छूने की बहुत कोशिश की. वो मेरी नज़र के सामने ज़रूर था लेकिन, मेरी पहुँच से बहुत दूर. तभी खिड़की से आती हवा ने कागज़ के पन्ने को फड़फड़ा कर पलट दिया. एक शून्य लिए कोरा कागज़ मेरे सामने था. जिस पर सिर्फ एक नाम लिखकर मैं फिर से उड़ सकता था.

और अंत में.. 


रात नींद देर से आती है इनदिनों..एक ख्वाब मेरे बगल में लेट मुझे निहारता रहता है! कुछ पूछना चाहूँ तो करवट बदल लेता है...मौन हो जाऊं तो थपकी देकर मुझे सुलाने की कोशिश करता है.. तब ज़हन की शाखों पर कुछ फूल खिल आते हैं..कमरे में खुशबू फ़ैल जाती है! नींद आ जाती है! 

(कल रात लिखी डायरी में से) अपना ख्याल रखिएगा..

चलते चलते 

कई साल बाद मालूम हुआ कि वो लिखने लगी है...मैंने ढूंढ कर उसकी कुछ रचनाएं पढ़ीं..लगा जैसे कि मेरी डायरी कोई गुम हुई हो कभी..अब मिल गयी है। #हीरेंद्र




Tuesday, April 24, 2018

हीरेंद्र की गुगली यानी मस्ती का डोज़!

इस हिस्से में पढ़िये कुछ ऐसी ही दिलचस्प गुगली. क्योंकि आखिरी पंक्ति में आप जान पायेंगे कि आखिर बात किसकी हो रही थी! 

#गुगली 1

पिछले सात साल से वो साये की तरह मेरे साथ रहा.. मैं भी उसके बिना एक पल नहीं टिक सकता था इस दुनिया में! सच कहूँ तो जब भी मुझे जितने रुपयों की ज़रूरत हुई उसने बिना किसी सवाल के मुझे   खर्चे के लिए दिए... आज जब मैंने उसे गौर से देखा तो पाया कि अब वो फटेहाल हो गया है.. उसमें वो पहले सी चमक नहीं रही... अब ये मुझे पुराना और बदसूरत लगने लगा है.. अब इस साथी से विदा लेने का समय आ गया है.. हाँ, अब इसे बदलने का समय आ गया है.. #बैंक जाकर नए एटीएम कार्ड के लिए फॉर्म भर आया हूँ... दस दिनों में नया कार्ड आ जाएगा!



  

#गुगली 2


कभी भी बोल उठती हो तुम..आते-जाते, सिसकते-मुस्काते, सोते-जागते, रास्तों पर, घर में या बीच सफर में...कभी-कभी ऐसे कांपने लगती हो जैसे कोई भूचाल सा आ गया हो..कभी-कभी शोर में तुम्हे सुन नहीं पाता, कभी-कभी अनसुना कर देता हूँ तो कभी अनदेखा भी..कभी ख़ामोशी से कोई सन्देश ले आती हो...कभी खुशी तो कभी परेशानी भी दे जाती हो! तुम्हारा होना अब आदत है मेरी...और हाँ, जब उसका नाम तेरे गाल पर पढ़ता हूँ तो तेरी मिलकियत सुहाने लगती है...ऐसे ही मेरी ज़िन्दगी में संवाद, संगीत और समर्पण के रंग भरते रहना...मेरे मोबाइल तुम्हे ढेर सारा प्यार :) 


#गुगली 3


आज वो बहुत दिनों बाद मेरे घर आई थी। भला आती भी कैसे सरपंचों ने उसे चरित्रहीन बताकर उस पर पाबंदी लगा रखी थी। मुझे हमेशा से लगता था कि वो गंगा की तरह पवित्र है पर मैं उसके लिए कुछ न कर सका! आज जब वो आई तो हम एक दूसरे को काफी देर तक तकते रहे। नए कपड़ों में वो कुछ ज़्यादा ही लुभा रही थी। चलो माना कि दो मिनट वाली बात झूठी है पर गर्म होकर तैयार होने में उसे ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। मैंने भी बातों में ज़्यादा वक़्त जाया न किया। अपने होंठ उसके दहकते होंठों पर रख दिए। एक भूखा प्रेमी और करता भी क्या? #Welcome Maggie. अब दुबारा पढ़िए। हम मैगी की ही बात कर रहे थे :)


(यह तब लिखी थी जब बैन होने के बाद मैगी फिर से मार्किट में आई थी)




#गुगली 4


कई दिनों से उसके उदास चेहरे की झाईयां मुझे खटक रही थीं.. रोज़ सोचता लेकिन, किसी न किसी वजह से मेरा ध्यान कहीं और रम जाता. रात को सोते समय वो अपनी सुस्त रफ्तार से फिर मुझे उलाहना देता और मैं उसे अनदेखा कर सो जाता! सुबह की अफरा-तफरी में फिर वो तन्हा डोलता रहता और हम भी उसे भूले रहते! पर आज संडे ने ये मौका दिया कि उसकी उदासी दूर कर सकूँ! कपड़े से हौले हौले उसके बाजुओं को दुलराया, सहलाया..जमी धूल की परतें हटाईं, उसके चेहरे से झाईंयां मिटाईं..फिर गीले कपड़े से उसे चमकाया..तब जाकर फिर वो मुस्कुराया! अब वो मदमस्त होकर नाच रहा है. मुझे शीतलता प्रदान कर रहा है.. जी, मैं अपने पंखें की बात कर रहा हूँ. #हीरेंद्र

Sunday, April 22, 2018

अच्छे लोग

वे बहुत अच्छे लोग हैं..उनके घर का मुखिया सुबह सवेरे टहल कर आता..चाय के साथ अखबार निपटाता और फिर चमकते-इठलाते दफ्तर को निकल जाता..बच्चे कॉलेज चले जाते और बच्चों की माँ लग जाती घर को करीने से सजाने, संवारने में..सुबह जो सबको टिफिन में बांधा था, उसी से पेट भर कर कभी फोन तो कभी टीवी देखते शाम का इंतज़ार...साहब दफ्तर में हर घंटे पर एक सिगरेट पीते ..और आठ सिगरेट फूँक कर घर लौट आते..बच्चे भी कॉलेज से लौटकर म्यूजिक क्लास और स्विमिंग के लिए निकल जाते...देर शाम सब इकट्ठे होकर कुछ वक्त साथ बैठते..खाते- गाते- सो जाते! उनकी अपनी एक अलग दुनिया है..उन्हें किसी अमिताभ, सचिन, मोदी, दामिनी या गुड़िया से कोई विशेष मतलब कभी नहीं रहा..कल पता चला कि वो जुलाई के बाद कनाडा शिफ्ट हो रहे हैं..उन्हें इंडिया में अब मन नहीं लगता..आस-पास के लोग बताते हैं कि इनका कभी किसी से झगड़ा नहीं हुआ.. इनके घर से कभी किसी ने तेज आवाज़ नहीं सुनी..वे सच में बहुत अच्छे लोग हैं! (जो लिखना चाहता था, वो न लिख पाया..पर आप समझ सकें तो एक तस्वीर यह भी है )

कविता- गुड टच, बैड टच


"हम हैं बच्चे आज के बच्चे
हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे
हम जानते हैं झूठ और सच
हम जानते हैं गुड टच, बैड टच

मम्मी, पापा जब गले लगाते
इसको ही हम गुड टच कहते
बैड टच होता है वो
हमारे प्राइवेट बॉडी पार्ट्स छूता है जो

बच्चों, हमारे लिप्स, चेस्ट, कमर के नीचे...आगे या पीछे ये होते हैं हमारे प्राइवेट बॉडी पार्ट्स

कोई बैड टच करे तो शोर मचाओ
जाकर मम्मी, पापा को बतलाओ #हीरेंद्र

ये poem लिखी थी कभी मैंने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए। हो सके तो अपने बच्चों को रटवा दीजियेगा।

रेप के विरोध में सोशल मीडिया पर लगातार लोग लिख रहे हैं. यह एक अच्छी बात है. बस यह रफ़्तार और आवाज़ थमनी नहीं चाहिए. रेप को लेकर जो कुछ नए कानून की बात आई है उस सन्दर्भ में यह कहना गलत न होगा कि सोशल मीडिया के दबाव का भी कुछ न कुछ असर हुआ ही होगा .

मैंने खुद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को ट्वीट किया था कि स्वच्छता अभियान के तर्ज पर रेप के खिलाफ़ भी मुहीम शुरू कीजिये. मैं नहीं जानता हमारे लिखने, बोलने से कितना फर्क पड़ता है. लेकिन, यह ज़रूर जानता हूं कि लिखते/बोलते रहना होगा!

इस विषय पर जो मैंने पहले दो भागों में लिखा है, वो आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं..

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता- हीरेंद्र झा

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता (भाग 2) - हीरेंद्र झा







Saturday, April 21, 2018

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता (भाग 2) - हीरेंद्र झा

उस दिन मैं मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन पर था. मुझे जबलपुर की ट्रेन पकड़नी थी जो रात के 11 बजे खुलनी थी. मैं वहां 8 बजे ही पहुंच गया. ज़ाहिर है बहुत समय था मेरे पास. सोचा कुछ खा-पी लेते हैं और यही सोचकर मैं स्टेशन से बाहर निकल कर दूसरी तरफ को बढ़ गया. जो लोग मुंबई से बाहर के हैं उन्हें यह बता दूँ कि यह जो इलाका है यह अंग्रेजों ने बनाया है . ऊँची ऊँची चर्चनुमा बिल्डिंगें हैं और स्टेशन परिसर भी भव्य चर्च की किसी पुरानी इमारत सा है. रात के इस वक्त काफी अंधेरा पसरा था. हल्की हल्की रोशनी कहीं-कहीं से छिटक कर आ रही थी.  स्टेशन के ठीक राईट साइड में कई पेड़ भी लगे हैं कतारों से.

मैं जब थोड़ा आगे बढ़ा तो मैंने देखा कि पेड़ के नीचे एक लड़की खड़ी है, यही 17, 18 साल की होगी. मुझे देखकर उसने अदा से मुस्कुराने की कोशिश की. मैं थोड़ा झिझका फिर आगे बढ़ गया. दस कदम पर दूसरी लड़की मिली, वो भी मुझे देख कर स्माइल करने लगी. मैं अनदेखा कर फिर आगे बढ़ गया और इस बार तीसरी लड़की ने मुझे टोक ही दिया. ऐ चलता क्या? बगल में होटल है. एक हजार लूंगी, पूरा मज़ा दूंगी! अब तक मुझे समझ आ चुका था कि ये सब लड़कियाँ कौन हैं? मैं तीसरी लड़की के पास रुक गया. मैंने कहा- चलो. वो मेरे साथ हो ली. मुझे मालूम है कि स्टेशन के दूसरी तरफ गेट पर चाय की एक अच्छी दूकान है. मैंने कहा - चलो चाय पीते हैं पहले. उसने मुझे गौर से देखा और साथ चल पड़ी!

चाय पीते हुए मैंने उससे सवाल किया कि कब से कर रही हो ये सब? उसने कहा जब 12 साल की थी तब से. अब क्या उम्र होगी तुम्हारी? उसने कहा तुम्हें मालूम है न लड़कियों से उम्र नहीं पूछते. मैंने कहा नहीं मुझे ये नहीं मालूम. 'साला बड़ा शाना है रे' कह कर उसने मुझे गाली दी और कहा 26 साल. मैंने कहा- ओह, पूरा वनवास भुगत लिया है तुमने! 'बनवास' कह कर वो चौंकी? मैंने कहा हां अपने यहां वनवास 14 साल का ही होता है न जो तुम भुगत चुकी हो! 14 साल से इस पेशे में हो!



उसने कहा ज्यादा बात नहीं करने का. चाय खत्म कर और चल. तेरे बाद दो तीन को और निपटाने हैं! मैंने कहा कितना कमा लेती हो? उसने कहा दो ढाई हजार रोज़. कभी कभी सूखा भी रहता है. कोई पुलिस वाला मिल गया तो चवन्नी भी नहीं मिलती. फ्री में चाहिए बहन *** को!

तुम्हारी तरह कितनी लड़कियाँ होंगी इस इलाके में? साला तू सवाल बहुत पूछता है? चल न काहे को समय खराब कर रहा है. मैंने कहा कि ढाई हजार ले लेना मुझसे. निश्चिंत रहो. जो पूछता हूं बताओ. अब वो स्थिर हो गयी. मुझे लगा कि शायद उसको कोई संदेह है. मैंने पर्स से निकाल कर उसे पूरे पैसे दे दिए. अब वो थोड़ी सहज थी. मैंने कहा चलो दो घंटे हैं मेरे पास. कुछ खा लेते हैं. फिर हम वहां से एक टैक्सी लेकर कोलाबा की तरफ निकल गए. वेश्यावृति पर, उनकी समस्याओं पर, उनकी जीवन शैली पर उस लड़की ने बहुत कुछ बताया. बताया कि स्टेशन के आस-पास डेढ़ सौ लड़कियाँ हैं जो यह काम करती है. हम जहां उतरे उस इलाके के बारे में उसने बताया कि यहां तो पच्चास हजार से लेकर पांच लाख तक की रेट की लड़कियाँ मिलती हैं. उसने चिढते हुए कहा कि हमें तो पांच सौ और हज़ार देने में भी लोगों की फट जाती है! उस 'अजनबी' लड़की से बहुत बातें हुईं और फिर मैंने उससे विदा लिया और तय समय पर स्टेशन पहुंचकर अपनी ट्रेन पकड़ ली. उसने एक बार कहा- चलोगे नहीं? मैंने कुछ नहीं कहा..लौट आया!

खैर, उस दिन मुझे में समझ आया कि अगर ये लड़कियाँ न हो तो रेप की संख्या और भी कहीं ज्यादा होगी! देश के कई इलाकों में वेश्यावृति छुप कर ही सही पर हो रही है. और वहां ग्राहक भी पहुंच ही रहे हैं! देश, विदेश से लेकर नेपाल और बंगलादेश से लड़कियाँ यहां लायी जा रही हैं और इस धंधे में झोंकी जा रही हैं!

कहीं न कहीं सेक्स के प्रति जो पागलपन है उसने ही इन चकलाघरों को आबाद बनाकर रखा है. पता नहीं आप इन बातों को कैसे लेंगे पर मेरी राय तो यही है कि जो कमबख्त रेप करता है वो कम से कम इन वेश्वाओं के पास ही चला जाया करे.. कम से कम किसी मासूम की ज़िन्दगी तो तबाह नहीं होगी? एक तरीका यह भी हो सकता है रेप को रोकने का. अन्यथा न लीजियेगा, लेकिन, कुछ तो उपाय तलाशने ही होंगे न?

आज जब चार महीने से लेकर चार वर्ष तक की बच्ची के साथ रेप की खबर सुनता हूं तो बहुत ही असहाय सा महसूस करता हूं. ऐसे सिरफिरों से क्या कहेंगे आप? भला चार महीने या चार वर्ष की बच्ची को देखकर भी किसी को उत्तेजना हो सकती है? या फिर ये कहीं और की ठरक इन बच्चियों पर निकाला करते हैं?

इन मासूम बच्चों को हमें मिलकर बचाना होगा. सबसे ज़रुरी बात तो यह कि बच्चे के साथ हर वक्त उसके परिवार से कोई न कोई ज़रूर रहे. मां-बाप, दीदी, दादी कोई भी..बच्ची अकेली न रहे. अब समाज और सरकार तो कुछ कर नहीं रही तो हमें ही अब अपने बच्चों की सुरक्षा करनी है. क्या पता आपके सब्जी वाले से लेकर आपका धोबी या फिर आपका देवर ही आपकी मासूम पर बुरी नज़र रख रहा हो? बहुत भयावाह दौर है? तो किसी भी सूरत में बच्ची को अकेले ना छोड़े!



तीसरी बात, आज मोबाइल और इंटरनेट ने जाहिलों को एक ऐसी दुनिया दिखा दी है जहां वो फैंटेसी में रहने लगे हैं. पोर्न वीडियो में दिख रही लड़की और औरत को वो हर आस-पास की लड़कियों में देखने लगे हैं. उनके साथ वो सब कुछ करने के लिए उत्तेजित होने लगे हैं! यह बहुत ही खतरनाक स्तिथि है. इसे समझना होगा. वो बस एक मौके की तलाश में है कि वो अपनी खुमारी कहीं बहा सके. इन दरिंदों से हमें सचेत रहना होगा! इतनी बेरोजगारी और बेचैनी है इस देश में कि एक बड़ी आबादी सेक्स में ही सुकून तलाश रही है! इस मनोविज्ञान को समझना आसान नहीं पर अब इस पर खुलकर बात करने का समय आ गया है!

(यह लेख मैं जारी रखूँगा. मैं चाहता हूँ इस पर विस्तार से लिखूं और किसी समाधान तक पहुँचने की कोशिश करूँ)  
इससे पहले इस विषय पर मैंने कुछ और भी लिखा है, वो आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता- 1


Friday, April 20, 2018

ग़ज़ल

हिंदू पढ़िए तो कभी मुसलमान पढ़िए
फेसबुक पर मचा ये कोहराम पढ़िए...

औरों को नीचा दिखाने की होड़ में
ऐसी भद्दी गालियाँ न सरेआम पढ़िए...

पहचानिये मज़हब के इन ठेकेदारों को 
किसने सर पे उठा रखा है आसमान पढ़िए..

दोष दूसरों को देना बहुत आसान है
एक बार पहले अपना गिरेबान पढ़िए...

आग में घी नहीं, ज़ख्म को मरहम दीजिए
जहाँ कहीं हो आप अमन के कलाम पढ़िए...

#हीरेंद्र

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता- हीरेंद्र झा

रेप की ख़बरें तब से भयावह लगने लगी है, जबसे रेप का मतलब समझ में आया. मेरी एक दोस्त ने मुझे बताया था कि एक बार जब वो चौदह साल की थी तो उसके एक रिश्तेदार ने जो उसकी पिता की उम्र का था उसे छत पर अकेला पाकर उसके देह को गलत तरीके से छुआ था. उसने आगे बताया कि तब उसे बिल्कुल भी अहसास नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है पर वो आज बीस साल बाद भी उन पलों को याद कर सिहर उठती है. जब एक ‘बैड टच’ का इतना गहरा असर है तो सोचिये रेप के वक्त किसी लड़की/बच्ची/महिला/ की क्या हालत होती होगी?



वो असहनीय दर्द, वो बेबसी, वो दुर्गंध, वो जबर्दस्ती...शब्दों में बयां कोई क्या कर सकेगा? और छोटी-छोटी बच्चियों से जब रेप की ख़बरें आती हैं तो रूह तक कांप जाती है. उस दरिंदे की मानसिकता का अंदाज़ा कोई कैसे लगा सकता है? एक बच्ची जिसकी आंखों की चमक और मासूमियत आपको सुकून दे रही हो उसको देखकर किसी का हवस कैसे जग जाता होगा? सेक्स के लिए ये कैसा पागलपन है?



क्या पोर्न इसका जिम्मेदार है? या परवरिश में कोई चूक हो रही है? बहुत उलझा हुआ सा है सबकुछ! एक मेरी दोस्त ने बताया कि जब वो गर्ल्स हॉस्टल में रहा करती थी तो एक रात देर तक पढ़ाई करने के बाद जब उसने ताज़ा हवा के लिए खिड़की के बाहर  देखा तो यह देखकर चौंक गयी थी कि कैसे होस्टल का वाचमैन लड़कियों के कमरों की तरफ देख कर मास्टरबेट कर रहा है! दरअसल सेक्स को लेकर यह पागलपन हर तरफ फैला है? रेप के आंकड़े बड़े ही डरावने हैं! गाँव से लेकर शहर, कश्मीर से लेकर कर्नाटक तो हरियाणा से लेकर असम शायद ही इस देश का कोई ऐसा कोना बचा हो जहां मर्दों ने अपनी हवस का नंगा नाच न किया हो? 



कितनी ही दामिनी, गुड़िया और पापा की लाडली बिटिया ऐसी भी हैं जिनके साथ हुए वहशीपने को कभी आवाज़ न मिल सकी! उनकी चुप्पियों ने भी बलात्कारियों को दूसरे और तीसरे शिकार का मौका दिया ही होगा?




सेक्स की बात करें या सेक्स की आनंद की बात करें तो दो एडल्ट लोग पारस्परिक रूप से संबंध बनाते हैं और यह एक नेचुरल क्रिया है. माना कि मैरिटल रेप जैसी बातें भी हम सुनते हैं लेकिन, एक सामान्य आदमी कभी भी अपने पार्टनर के उदास होने, मूड खराब होने के दौरान उसके साथ सेक्स नहीं करता. सेक्स सहमती से ही संभव है, चाहे वो बेमन से ही हो. ऐसे में जो मानसिक रोगी बलात्कार तक कर लेते हैं उनके धधकते हुए जिस्मानी भूख या पागलपन को समझना आसान नहीं? क्योंकि एक स्तर पर गिरने या पहुँचने के बाद ही आप रेपिस्ट हो सकते हैं! रेप के आंकड़े बताने के लिए काफी है कि अपने देश का मर्द किस हद तक गिर गया है.




एक यह भी तर्क है कि लड़की ने ही भड़कीले कपडे पहनकर और अपना क्लीवेज दिखाकर या अंग प्रदर्शन कर रेपिस्ट (मर्द नहीं लिख रहा हूँ) को उकसाया. तो फिर 4 साल की बच्ची या 70 साल की बूढी महिला का रेप क्यों होता है? अगर तर्क यह है कि परिवार से दुश्मनी निकालने के लिए उक्त लड़की का रेप हुआ तो आखिर ऐसा क्यों है कि आपकी मर्दानगी बस इन महिलाओं और लड़कियों पर ही निकलती है? अगर रेप के पीछे कोई यह तर्क दे कि वो रात को अकेली सड़क पर क्या कर रही थी तो उनसे पूछना चाहूँगा कि वो सड़क पर है, किसी जंगल में नहीं और ज़ाहिर है कोई विवशता या आवश्यकता ही होगी तभी वो बेवक्त घर से निकली है! शराब पीने से लेकर खुलकर हंसने तक के तर्क बेईमानी है! क्योंकि किसी की मर्जी के खिलाफ उसको जब गले तक नहीं लगा सकते आप तो रेप कैसे कर सकते हैं?



कानून क्या कर रहा है? पैसा और पावर जिसके पास है वो सुरक्षित हैं, रेपिस्ट अगर नाबालिग है तो उसके लिए अलग कानून! आंकड़े बताते हैं कि रेप में अगर 20 प्रतिशत केस दर्ज होते हैं तो सज़ा सिर्फ 2 प्रतिशत लोगों को ही मिल पाता है. न्याय की तो बात ही मत कीजिये, न्याय इस देश में अब इतिहास की बात है. आँखों पर पट्टी बांधे कानून की तराजू उठाये उस मूर्ति को म्युजियम में रख दीजिये! ‘सत्यमेव जयते’ लिखने वाले और मानने वाले कब के इस दुनिया को अलविदा कह चुके.



बेटियों पर दुनिया भर की पाबंदियां, बेटों को हर कुछ करने की छूट. बेटों के स्कूल से लौटने पर चूल्हे पर गर्म गर्म सिकतीं रोटियां तो बेटियाँ ठंडा भी खा लेंगी! खुद मां-बाप तक जब बेटी और बेटे में फर्क करे तो उस समाज का चेहरा ऐसा ही विकृत होगा जैसा आज आपको दिख रहा है. ज़ाहिर है अपवाद होंगे पर वो मिसाल नहीं बनते!




हाल ही में एक दिन मैं शनिवार को अपने घर के पास समंदर किनारे यूँ ही घूमने को जा रहा था. मैं ऑटो में था. अक्सा बीच का इलाका थोड़ा सुनसान सा है. तभी मेरी नज़र साथ चल रही गाड़ी पर गयी! जिसे एक जेंट्स ड्राइव कर रहा था, एक महिला उसके बगल में बैठी थी. पीछे की सीट पर दो बच्चे थे. मुश्किल से दोनों बच्चों की उम्र नौ या दस साल की रही होगी. मैं यह देखकर दंग रह गया कि दोनों बच्चे सीट के पीछे छुपकर एक दूसरे को किस कर रहे हैं, जिस तरह से उन दोनों बच्चों के होंठ एक दूसरे से मिले हुए थे यह देखकर मैं भीतर तक हिल गया! हो सकता है वो भाई-बहन हो? या फिर दोनों के पेरेंट्स आपस में दोस्त या रिश्तेदार हो, लेकिन, बड़ा सवाल है इन बच्चों को यह सीख कहां से मिली? 



बहुत सोचा तो लगा कि हो सकता है इन्होने अपने मां और बाप को सेक्स करते या कुछ यूँ करते देखा होगा, या शायद फ़िल्मों का असर हो ये? यानी ट्रेनिंग जो है, बुनियाद जो है वहीं गड़बड़ है! मुझे याद है साल 2007 में एक अंग्रेजी अखबार ने एक बड़ा सर्वे किया था जिसमें उन्होंने बताया कि दिल्ली के स्कूलों में 12 वीं पास करते-करते 90 प्रतिशत लड़कियां अपनी वर्जिनिटी (कौमार्य) खो देती हैं. हालांकि, यह रेप से इतर एक बात है लेकिन, यह आंकड़ा यह बताने के लिए काफी है कि सेक्स के लिए किस हद तक पागलपन है इस देश के डी एन ए में! जब मैं ‘आधी आबादी’ पत्रिका का सहायक संपादक था तो मैंने एक बड़ा लेख लिखा था –भारत सेक्स क्रांति की ओर.. मैं वह लेख भी खोज कर शेयर करूँगा! 



बहरहाल, परवरिश और शिक्षा में जो बिखराव/भटकाव है उस आग में ईंधन देने का काम मीडिया, सिनेमा, अश्लील साइट्स सब लगातार कर रहे हैं! इतनी भीड़ है इस देश में कि एक प्रतिशत लोग भी बलात्कारी निकल गए तो यह आंकड़ा लाखों में होगा. और एक लाख बलात्कारी जिस देश में रह रहा हो उसे आप क्या कहेंगे – बलात्कारियों का देश..है न? इसके अलावा भीड़ में, बाज़ार में, ट्रेन में, बस में, मेट्रो में, गलियों में, सड़कों पर जिसे भी जहां मौका मिल रहा है वो अपनी कुंठाओं को भोग रहा है?






(यह लेख मैं जारी रखूँगा. मैं चाहता हूँ इस पर विस्तार से लिखूं और किसी समाधान तक पहुँचने की कोशिश करूँ)  



Wednesday, April 18, 2018

गुड़गांव बना गुरूग्राम #पहली वर्षगांठ

वो गुड़गांव ही रहती थी। अक्सर उसे उसके घर तक छोड़ने जाता। उन दिनों मेट्रो वहाँ तक नहीं जाती थी तो हम आईआईटी गेट या धौला कुआँ से कैब पकड़ा करते। जब उसे छोड़ कर अकेला लौट रहा होता तो लगता एक मन जैसे वहीं छोड़ आया हूँ। फिर ये सिलसिला धीरे-धीरे कम हो गया और ख़त्म भी। लेकिन, मेरे भीतर एक गुड़गांव हमेशा ज़िंदा रहा है। सुना है कि अब वो शहर 'गुरुग्राम' के नाम से जाना जाएगा। क्या फर्क पड़ता है? जिस नाम से पुकार लो पर कुछ चीज़ें चाह कर भी नहीं बदली जा सकतीं। खैर, उसे आख़िरी बार टीवी पर ही कलाम साहब के जनाज़े के पास देखा था... उस दिन भी वो उतनी ही खूबसूरत लगी थी। वो शहर भी हमेशा खूबसूरत बना रहे। आमीन। #हीरेंद्र

" एक अधूरी प्रेम कहानी"

एक छोटी सी कहानी लिखी है..पढ़ियेगा जरूर..

* पति के ऑफिस जाते ही वो पहला काम यही करती कि अपने पुराने लेकिन हाल ही में दुबारा मिले प्रेमी को व्हाट्सअप मैसेज भेजती.
यह जानते हुए भी कि वह प्रेमी भी इस वक्त ऑफिस में होगा और अपने काम में रमा होगा.
उसका प्रेमी विनोद था तो बहुत संजीदा लेकिन लड़कियों के मामले में बहुत डिमाडिंग था. गांव में पत्नी को छोड़ शहर में अच्छे दिनों के इंतज़ार में लगा रहता. खूब मेहनत करता. पत्नी से जब भी बात होती तो प्यार, महोब्बत के बजाय दिनचर्या की जरूरत और पैसों की किल्लत के अलावा कुछ और बात होती नहीं..
ऐसे में उसे अपनी पुरानी प्रेमिका लेकिन हाल ही में दुबारा मिल गई प्रीति में थोड़ा सूकून मिलने लगा.
दोनों जब भी मौका मिलता.. बोलते -बतियाते.. फोन पर ही एक दूसरे के गले लगते.. चूम लेते.. वगैरह, वगैरह!
लगभग एक साल में इन दोनों का रिश्ता इतना गहरा हो गया कि दोनों अब शादी करने के सपने देखने लगे..
लेकिन, एक मुश्किल थी.. विनोद जहाँ एक बेटी का बाप था तो वहीं प्रीति दो बेटों की माँ थी.
दोनों अपने बच्चों से बेहद प्यार करते थे. अब मुश्किल यही थी कि पति और पत्नी से तो दोनों अलग हो भी जाये लेकिन, बच्चों से?
इस बीच विनोद की किताब छपकर आ गई.. और देखते ही देखते जिन अच्छे दिनों का उसे इंतज़ार था वो बांहे फैलाये उसके सामने खड़ा था.
विनोद ने कुछ सोचकर अपनी पत्नी को गांव से शहर बुलवा लिया. बेटी भी आ गई. इस नये और सुखद बदलाव ने विनोद को ताजगी से भर दिया.. वह मन लगाकर काम करने लगा.. काम के बाद उसका ज्यादा से ज्यादा वक्त पत्नी वसुंधरा और बेटी अाराध्या के साथ गुजरने लगा..
उधर प्रीति की हालत ऐसी कि उसे कुछ सूझे नहीं..वो बेचैन रहने लगी.. सोचती कि उसके और विनोद के बीच में अब वसुंधरा आ गई है.. इधर विनोद को शायद ही प्रीति का ख्याल आता..
इस बीच उसकी दूसरी किताब भी छपकर आ गई.. यह किताब भी बहुत पॉपुलर हुई.. एक दिन प्रीति के हाथों तक भी वो किताब पहुंच ही गई.. प्रीति ने जब उस किताब का नाम पढ़ा तो यूं लगा जैसे उसे उसके सवाल का जवाब मिल गया हो..
विनोद की इस दूसरी किताब का नाम था : " एक अधूरी प्रेम कहानी" #हीरेंद्र

Friday, April 13, 2018

अगर 'Cook' भी होता तो मैं एक अच्छा 'Cook' होता, जानिये पंकज त्रिपाठी के ये 5 दिलचस्प जवाब

हीरेंद्र झा, मुंबई। आज नेशनल फ़िल्म अवार्ड की घोषणा हुई है। तमाम अवार्ड्स के बीच राजकुमार राव और पंकज त्रिपाठी की फ़िल्म 'न्यूटन' को बेस्ट फ़िल्म का अवार्ड दिया गया जबकि अभिनेता पंकज त्रिपाठी को भी स्पेशल मेंशन अवार्ड मिला है!

हाल के वर्षों में पंकज त्रिपाठी ने अपने सहज अभिनय से सबका ध्यान खींचा है। 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर', 'निल बट्टे सन्नाटा', 'अनारकली ऑफ़ आरा' 'मुन्ना माइकल' और 'न्यूटन' जैसी फ़िल्मों में अपनी एक अलग छाप छोड़ने वाले पंकज त्रिपाठी ने पिछले दिनों जागरण डॉट कॉम से एक लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उस बातचीत के कुछ चुनिन्दा अंश।



'गांव का आदमी हूं'

पंकज त्रिपाठी मुंबई में रहते हैं। लेकिन, उन्हें जब भी मौका मिलता है वो अपने गांव ज़रूर जाते हैं। पंकज को अपने गांव (गोपालगंज,बिहार) से बेहद लगाव है। वो कहते हैं- "अगर कोई पेड़ अपने रूट से न जुड़ा रहे तो कैसे सर्वाइव करेगा? हमारे गांव, खेत-खलिहान, रिश्ते-नाते, गाय-बकरियां, नदियां इनसे हमें ताकत मिलती है।" उनके मुताबिक- आज उनमें जो भी संघर्ष करने की क्षमता है वो उनके गांव की ही देन है। वो कहते हैं -"मैं कहीं भी रहूं, मैं अपने गांव से जुड़ा रहता हूं क्योंकि मैं गांव का आदमी हूं।"

एक्टिंग का कोई शॉर्ट-टर्म कोर्स नहीं होता

गौरतलब है कि पंकज नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा, दिल्ली से भी लम्बे वक़्त तक जुड़े रहे। पंकज बताते हैं कि-"आम तौर पर आज ऐसा हो गया है कि कोई भी सोचता है तीन महीने और छह महीने का वो कोई कोर्स कर लेगा और एक्टर बन जाएगा तो ऐसा नहीं है। मैंने दस साल एक्टिंग को दिए हैं। लेकिन, आज की पीढ़ी के पास धीरज नहीं है।" वो आगे कहते हैं - "जैसा कि मैंने कहा कि मैं गांव में रहा हूं। मैंने खेती की है। हम बीज डालते, खाद-पानी डालते, उसकी देखभाल करते तब जाकर फ़सल काटने की आदत रही है हमारी। इतना धीरज आज की जेनेरेशन में नहीं है। वो सब-कुछ इंस्टेंट चाहते हैं! उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि एक्टिंग का कोई शॉर्ट-टर्म कोर्स नहीं होता।"

बतौर एक्टर एक संतुलन जरुरी है

किस तरह के किरदार ज्यादा लुभाते हैं? इसके जवाब में पंकज कहते हैं कि एक एक्टर को हर तरह की फ़िल्में करनी चाहिए। बकौल पंकज- "मैं समझता हूं कि बतौर एक्टर एक संतुलन ज़रूरी है। अगर आप कमर्शियल फ़िल्मों में नज़र आ रहे हैं तो कुछ छोटी और महत्वपूर्ण फ़िल्मों से भी आपको जुड़े रहना होगा। दोनों का दर्शक अलग है। आप बड़ी फ़िल्में करते हैं साथ ही छोटी फ़िल्मों में भी नज़र आएं तो इनसे उन छोटी फ़िल्मों को भी ज्यादा दर्शक मिलेंगे। यह सिनेमा के लिए एक अच्छी बात होगी!"

पॉपुलर होना और यादगार होने में फ़र्क है

कामयाबी को किस तरह से देखते हैं? इस बाबत पंकज कहते हैं कि- "आज का दौर कॉपी, पेस्ट, शेयर और सेल्फ़ी का दौर है। इसमें कोई ठहरकर जांच-पड़ताल नहीं करता। गुणवत्ता को परखने का समय किसी के पास नहीं होता। ऐसे में हो सकता है आप पेज थ्री पर छपने लग जाएं, पॉपुलर भी हो जाएं। लेकिन, उसमें स्थायित्व नहीं होगा। वो क्षणिक होगा। पॉपुलर होने और यादगार बन जाने में फ़र्क होता है और ऐसा तब तक संभव नहीं जब तक आप फ़ेक लाइफ़ जी रहे हैं। पंकज के मुताबिक अगर किसी में ट्रुथफुलनेस नहीं है तो फिर बाकी चीजों का कोई मायना नहीं!

मैं एक कुक भी होता तो एक अच्छा कुक होता

अगर आप एक्टर नहीं होते तो क्या होते? इस सवाल के जवाब में पंकज कहते हैं कि- " मैं एक कुक होता। क्योंकि मैंने होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। मैं किसी फाइव स्टार होटल में कहीं इंडियन रेसिपी बना रहा होता।" आगे वो कहते हैं- "लेकिन, एक बात ज़रूर है कि अगर मैं कुक भी होता तो एक अच्छा कुक होता! कुक ही क्यों अगर मैं कहीं क्लर्क भी होता तो एक अच्छा क्लर्क होता! क्योंकि एक सिंसेरिटी (निष्ठा) मुझमें हमेशा से रही है कि जीवन में जो करना अच्छे से करना, मन से करना।"


By Hirendra J


यह बातचीत दैनिक जागरण के समाचार वेबसाइट जागरण डॉट कॉम से साभार ली गयी है! जागरण डॉट कॉम के लिए राज शेखर से यह बातचीत मैंने ही की है- हीरेंद्र झा 
यह रहा लिंक:

https://www.jagran.com/entertainment/bollywood-pankaj-tripathi-latest-interview-after-special-mention-in-newton-in-national-award-16442347.html

Wednesday, April 11, 2018

'बाइक' वाला लड़का

एक छोटी सी कहानी लिखी है..पढ़ियेगा जरूर..
एक बाइक पर एक लड़का अपनी गर्लफ्रेंड को पीछे बिठाये चला जा रहा है. अब इस दृश्य के जितने एहसास हो सकते हैं वो सोचकर आपको गुदगदी आ रही होगी तो बता दूँ कि सामने रेड सिग्नल हो गया. लड़के ने बाइक रोक दी. बगल में एक कार भी आकर रूक गई. ज़ाहिर है ग्रीन सिग्नल का इंतज़ार कर रहे थे सब. ट्रैफिक सिग्नल पर नज़र गई तो देखा 77 सेंकेंड अब भी लगेगा लाल को हरा होने में. उधर ट्रैफिक की गिनती चालू थी तो इधर कार में बैठे लोफड़ों की भी.. 32,34,36
कार में बैठे एक लफंगे ने कहा कि सौ टका टंच माल है..तभी दूसरे ने कहा ऐ हमारे साथ चलती क्या? बाइक से नहीं कार में घूमायेंगे?
अब बाइक चला रहे लड़के से रहा न गया. गुस्से में वो बाइक से उतरने लगा.. गर्लफ्रेंड से कहा उतरो जरा.. अभी सालों की तोड़ता हूँ!
पीछे बैठी लड़की ने कहा छोड़ो न यार.. अब लड़ाई वड़ाई मत करो.. चलो..
लड़का मान गया.. बत्ती हरी होते ही वह तेजी से वहां से निकला. लेकिन, थोड़ी दूर जाने के बाद एक ऑटो वाले की उसके बाइक से टक्कर हो गई. टक्कर ज्यादा जोर की नहीं थी.. बस बुजुर्ग ऑटो वाले का अगला पहिया उसके बाइक से छू गया.. लड़के को फिर गुस्सा आ गया.. उसने अपनी गर्लफ्रेंड से कहा उतरो जरा.. अभी साले को तोड़ता हूँ!
पीछे बैठी लड़की ने कहा छोड़ो न यार.. अब लड़ाई वड़ाई मत करो.. चलो..
लेकिन, लड़के ने एक न सुनी.. और लगा मां बहन की गालियां बकते हुए बूढ़े रिक्शा चालक पर हाथ साफ करने!
उसकी गर्लफ्रेंड ने बहुत मुश्किल से दोनों को अलग किया..
रिक्शेवाले ने लड़की को हाथ जोड़कर कहा : बेटी मैंने जानबूझकर टक्कर नहीं मारी.. गलती हो गई.
लड़की ने बड़े प्यार से रिक्शे वाले से कहा... कि अंकल आप मुझे छेड़ लेते तो ये लड़का आपसे कुछ नहीं कहता.. लेकिन, आपने बड़ी गलती कर दी जो इसके बाइक को टक्कर मार दी..
यह कह कर वो लड़की तेजी से वहां से निकल गई #हीरेंद्र

Tuesday, April 10, 2018

‘मुझे गीत लिखने में मज़ा नहीं आता’, जानिये गीतकार राज शेखर के कुछ दिलचस्प जवाब


हीरेंद्र झा, मुंबई। गीतकार राज शेखर ने बहुत ही कम समय में अपनी एक मजबूत पहचान बना ली है। ‘तनु वेड्स मनु’, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’, ‘करीब करीब सिंगल’ और हाल ही में आई ‘हिचकी’ जैसी फ़िल्मों में गीत लिख चुके राज शेखर जागरण डॉट कॉम के ऑफिस आये और उन्होंने कई विषयों पर खुलकर अपनी बात रखी।
पैसे की कमी की वजह से दो फ़िल्मों में अभिनय कर चुके राज शेखर ने बहुत जल्दी समझ लिया था कि अभिनय उनके बस की बात नहीं है। सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, कबीर और अमीर खुसरो को अपना आदर्श मानने वाले राज शेखर इन दिनों एक फ़िल्म की कहानी भी लिख रहे हैं। प्रस्तुत हैं उनसे बात चीत के कुछ चुनिंदा अंश-

‘बिहार भी बचा रहे’
राज शेखर बिहार के मधेपुरा जिले से आते हैं और अपने जड़ों के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि “कोई भी कलाकार अपनी माटी से कटकर नहीं रह सकता और मैं अपने दोस्तों के बीच इस बात के लिए बदनाम हूं कि मैं पांच दिनों के लिए गांव जाता हूं और बीस दिनों के बाद आता हूं। मुझे बहुत मन लगता है वहां।’’
वो आगे कहते हैं- “मुझे तो नहीं पता लेकिन, लोगों का कहना है कि मेरे गानों में बहुत ज्यादा गांव के शब्द होते हैं! तो मेरे भीतर बिहार बचा हुआ है और बिहार बचा हुआ है तो हम बचे हुए हैं! एक और बात मैं जोड़ता चलूं कि हमारे अंदर तो बिहार बचा ही है और हम ये भी चाहेंगे कि बिहार भी बचा रहे। क्योंकि राजनीतिक रूप से जिस तरह से चीज़ें वहां चल रही हैं वो परेशान करती हैं।’’
मेरी कमियों के साथ कीजिये मुझे स्वीकार
उच्चारण में आंचलिक प्रभाव के बारे में पूछने पर वो बताते हैं कि- “एक समय तक हिचकिचाते थे बहुत, हम गलत तो नहीं बोल रहे हैं। अभी भी कोशिश में लगे हुए हैं कि ‘कोशिश’ को ‘कोशिश’ बोले लेकिन कई बार ‘कोसिस’ निकल जाता है। एक समय तक हम ट्राय कर सकते हैं इस चीज़ के लिए लेकिन, एक समय के बाद दम घुटने लगता है। वो ठीक नहीं लगता। क्योंकि अगर आप खुद को एक्ससेप्ट कर लेंगे तो चीज़ें आसान हो जाती हैं’
वो आगे कहते हैं- ‘‘इन गलतियों के साथ क्या आप मुझे स्वीकार कर सकते हो? अगर कर सकते हो तो कर लो? और शुक्र है मुझे इन गलतियों के बावजूद कई लोगों का प्यार और मोहब्बत मिला। ‘मजनू का टीला’ जो कविताओं की एक संगीतमय प्रस्तुति है। उसके शुरू होने से पहले मैं ज़रूर कहता हूं कि बिहार से हूं और बीस साल से इसी कोशिश में हूं कि उच्चारण सही हो, नुक्ते सही जगह पे लगाऊं, हम अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं और जरा आप भी अपनी तरफ से एडजस्ट कीजियेगा। डिस्क्लेमर मैं दे देता हूं और मैं व्याकरण में नहीं पड़ना चाहता लेकिन, मैं कहना चाहूंगा कि अगर आप के बात में बात हो तो बात बन जाती है!”
साथ ही राज शेखर यह कहना भी नहीं भूलते कि- “इस मामले में मीडिया से भी बहुत उम्मीदें हैं क्योंकि कई बार शब्दों को लेकर दुविधा होती है तो हम अखबार देखते हैं कि मानक क्या है? इसलिए शब्दों की शुद्धता की दिशा में मीडिया की जिम्मेदारी ज्यादा है।”
अपनी सीमा से बाहर जाकर लिखना 
इस बारे में बात करते राज शेखर कहते हैं कि- “हिचकी के लिए गाने लिखते हुए मैंने अपनी सीमाओं को तोड़ा। फ़िल्म में मेरे दो गाने थे और दोनों बिल्कुल अलग मूड के थे। हिचकी में मैंने जो अपने लिए एक सीमा खींच रखी थी कि मैं ये शरारत वाला गाना नहीं लिख सकता हूं ‘मैडम जी गो इजी, सब वाय फाय हम थ्री जी’ ये सामान्य तौर पर मैं नहीं लिख सकता। लेकिन, उन बच्चों के मनोविज्ञान को, उनकी शब्दकोष को समझना, जिनकी अपनी एक दुनिया है, जो अपनी कहानी बुनते रहते हैं और उनके टोन में गाना लिखना वो मैं इस गाने में कर पाया।
अब मुझे लगा कि मैं यह भी लिख सकता हूं। बीच में मैं घबरा गया था लेकिन, 50-60 ड्राफ्ट लिखने के बाद ये फाइनल हुआ। जबकि ‘खोल दे पर’ एक बार में फाइनल हो गया। हालांकि, ‘थ्री जी वाय-फाय’ मनीष का आईडिया था लेकिन, मैं अपनी बाउंड्री तोड़ सका। ऐसा है कि आप आधी रात को भी बोले कुछ रोमांटिक लिखना है तो मैं लिख दूंगा। अब जैसे आइटम नंबर है वो लिखने में मुझे आज भी पसीने छूट जाते हैं। शैलेन्द्र असल मायने में गीतकार थे। कैसे एक गीतकार अपनी व्यक्तिगत परिधि से निकल कर लिखता है वो उनको देखकर समझा जा सकता है। शैलेन्द्र नास्तिक थे लेकिन, एक फ़िल्म में उन्होंने लिखा “सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है’ या फिर जावेद अख्तर का ‘मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में है’ या ‘ओ पालनहारे...’ तो ये किरदार की वजह से ही आप लिख सकते हैं और इसलिए एक गीतकार हमेशा अपनी सीमाएं तोड़ता रहता है!

भीतर के कवि और गीतकार में रहता है द्वन्द्व
राज शेखर इस बारे में बात करते हुए कहते हैं कि- “मेरी एक ही कोशिश रहती है कि गाने में कम से एक लाइन ऐसी हो जहां मैं बोल सकूं की यार यहां पर मैं प्रेजेंट था। क्योंकि तमाम दबाव होते हैं आपके पास। कैरेक्टर का दबाव, म्युज़िक का दबाव, डायरेक्टर का दबाव, बाज़ार का दबाव, तमाम दबावों के बीच में एक गीतकार का उपस्थित होना ज़रूरी है! क्योंकि कविता से अलग विधा है गीत। क्योंकि आप एक खास किरदार के लिए लिख रहे हैं। आप राज शेखर बनकर लिखेंगे तो बेईमानी होगी। आप अगर मनु शर्मा या तनुजा त्रिवेदी के लिए लिख रहे हैं तो वहां पे आपको तनुजा के किरदार में जाकर लिखना होगा। आपके भीतर के गीतकार और आपके भीतर के कवि के बीच एक द्वन्द्व चलता रहता है, मेरी अपनी कोशिश रहती है कि कम से कम एक लाइन में मैं मौजूद दिखूं।’’
राज शेखर आगे कहते हैं- “हर आदमी अपने मन में कविता लिखता है। पर हर आदमी आपके या हमारे शब्दकोष से शब्द लेकर कविता नहीं लिखता। कुछ की कविताओं में रवि, खरीफ, गेंहू या बाजरे की बात होती है तो कुछ की कवितायें पसीने में भींगे हुए होते हैं। एक किसान की कविता उसके खेत में जाकर देखिये। लेकिन, जब मैं गीत लिख रहा हूं और अगर मैं उसमें कवि राज शेखर को ठेलूंगा तो वो उस निर्माता, निर्देशक, उस किरदार जिसके लिए लिख रहा हूं उन सबके साथ बेईमानी होगी। क्राफ्ट में आप खुद होने चाहिए और कथ्य में आपको किरदार के साथ होना चाहिए।”
‘दिल तो सबका टूटता है’
कवि या गीतकार बनने के लिए दिल का टूटना एक तरह से ज़रूरी माना गया है? आप क्या कहते हैं? इसका जवाब देते हुए राज शेखर बताते हैं कि ‘दिल किसका नहीं टूटता? अब ‘जाने दे....’ (करीब करीब सिंगल का गीत) की बात करें तो एक वक़्त के बाद आपको ‘लेट गो’ करना पड़ता है। वो हमारे बुजर्गों ने कहा है न- ‘वो अफसाना जिसे अंज़ाम तक ले जाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।’ कई बार अजनबी हो जाना भी अच्छा होता है। और अगर हम उस अनुभव को, उन संवेदनाओं को याद करके उन पलों को फिर से जी सकें, कुछ रच सकें तो दिल टूटना भी वरदान सा हो जाता है।’’


‘मुझे गीत लिखने में मज़ा नहीं आता’
वो कहते हैं कि- “एक बात हमने हाल में एक्सप्लोर किया है कि मुझे लिखने में मज़ा नहीं आता। वो वक़्त बीत गया जब मैं मजे के लिए लिखता था। अब ये मेरा काम है। जैसे किसान का काम है, जैसे एक पत्रकार का काम है, जैसे कोई बैंकर को छूट नहीं मिलती, एक मजदूर नहीं कह सकता की आज मुझे सड़क साफ़ करने में मज़ा नहीं आ रहा क्योंकि आज मेरा मूड खराब है। तो उसी तरह से गीत लिखना अब मेरा काम है और तमाम बंदिशों के बावजूद मुझे गीत लिखना ही है।’’
वो आगे कहते हैं “एक तरह से आप क्रिएटिव क्लर्क की तरह हो जाते हैं। उसी गीत में मेरी कोशिश रहती है कि मैं एक बार दिख जाऊं! जैसे ‘सजन रे झूठ मत बोलो’ में एक जगह दिखते हैं शैलेन्द्र जब वो लिखते हैं – ‘तुम्हारे महल चौबारे यहीं रह जायेंगे सारे, अकड़ किस बात की प्यारे, ये सिर फिर भी झुकाना है..सजन रे झूठ मत बोलो।’’
By Hirendra J
यह बातचीत दैनिक जागरण के समाचार वेबसाइट जागरण डॉट कॉम से साभार ली गयी है! जागरण डॉट कॉम के लिए राज शेखर से यह बातचीत मैंने ही की है- हीरेंद्र झा 

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...