Wednesday, April 18, 2018

गुड़गांव बना गुरूग्राम #पहली वर्षगांठ

वो गुड़गांव ही रहती थी। अक्सर उसे उसके घर तक छोड़ने जाता। उन दिनों मेट्रो वहाँ तक नहीं जाती थी तो हम आईआईटी गेट या धौला कुआँ से कैब पकड़ा करते। जब उसे छोड़ कर अकेला लौट रहा होता तो लगता एक मन जैसे वहीं छोड़ आया हूँ। फिर ये सिलसिला धीरे-धीरे कम हो गया और ख़त्म भी। लेकिन, मेरे भीतर एक गुड़गांव हमेशा ज़िंदा रहा है। सुना है कि अब वो शहर 'गुरुग्राम' के नाम से जाना जाएगा। क्या फर्क पड़ता है? जिस नाम से पुकार लो पर कुछ चीज़ें चाह कर भी नहीं बदली जा सकतीं। खैर, उसे आख़िरी बार टीवी पर ही कलाम साहब के जनाज़े के पास देखा था... उस दिन भी वो उतनी ही खूबसूरत लगी थी। वो शहर भी हमेशा खूबसूरत बना रहे। आमीन। #हीरेंद्र

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विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...