Friday, March 28, 2014

अपनी रहमत के खज़ानो से अता कर मालिक...
ख्वाब औकात में रह कर नहीं देखे जाते 

Thursday, March 27, 2014

ये संसद है यहाँ भगवान का भी बस नहीं चलता

ये संसद है यहाँ भगवान का भी बस नहीं चलता
जहाँ पीतल ही पीतल हो वहाँ पारस नहीं चलता
यहाँ पर हारने वाले की जानिब कौन देखेगा
सिकन्दर का इलाक़ा है यहाँ पोरस नहीं चलता
दरिन्दे ही दरिन्दे हों तो किसको कौन देखेगा
जहाँ जंगल ही जंगल हो वहाँ सरकस नहीं चलता
हमारे शहर से गंगा नदी हो कर गुज़रती है
हमारे शहर में महुए से निकला रस नहीं चलता
कहाँ तक साथ देंगी ये उखड़ती टूटती साँसें
बिछड़ कर अपने साथी से कभी सारस नह
ीं चलता
ये मिट्टी अब मेरे साथी को क्यों जाने नहीं देती
ये मेरे साथ आया था क्यों वापस नहीं चलता...

मुन्नवर राणा जी के साथ मैं 

कबीर



सहज मिले तो दूध सम, मांगे मिले तो पानी 
कहे कबीर वो रक्त सम, जा में खींचातानी...

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...