Saturday, August 29, 2020

हीरेंद्र की डायरी: अतीत और भविष्य नहीं बल्कि वर्तमान के प्रति सजगता ज़रूरी

लॉक डाउन में अकेले रहते हुए बहुत सी बातें मेरे मन में चलती रही हैं। आज हर तरफ जिस तरह का माहौल है, ऐसे में मुझे सब कुछ फ़र्ज़ी लगने लगा है। लगने लगा है कि ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है? यह जान गया हूँ कि जीने के लिए बहुत ज़्यादा भौतिक वस्तुओं की ज़रूरत नहीं होती। सुकून से जो मन को ठीक लगे, सहज भाव से जितना हो सके करते रहना चाहिए। पागलों की तरह किसी चीज़ के पीछे भागते रहने की बेचैनी से कुछ हासिल नहीं होता। ऐसे में आदमी कुछ पा भी ले तो नई बेचैनियां ढूंढ लेगा। इसका कोई अंत नहीं।  आनंद और गरिमा के साथ जीवन जीना इसी में असल सुख है। छोटी छोटी बातों पर जितने समझौते आज हम कर रहे हैं, इसकी कोई ज़रूरत ही नहीं है। उतना तो हम जीने वाले भी नहीं, जितना किसी चीज़ के लिए मरे जा रहे हैं। सुकून, मन की शांति यही बड़ी चीज़ है। मन में उमंग, उल्लास और उत्साह बचा रहे यही असली आनंद है। मेरे भीतर संसार की किसी वस्तु के लिए अब कोई ललक नहीं बाकी है। मेरा मन बस अब इसी में रमता जा रहा है कि मैं कैसा महसूस कर रहा हूँ। अगर मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ तो ठीक। नहीं तो वो करता हूँ जिससे अच्छा महसूस कर सकूँ। उन सभी लोगों से दूर होता जा रहा हूँ जो मुझे छोटा या बुरा महसूस कराते हैं। अपनी छोटी सी दुनिया में कुछ गिने चुने चेहरों के साथ मैं बहुत खुश हूँ। रोज़ एक घंटा काम करके भी मैं इतना कमा लेता हूँ कि महीने भर शांति से जीवनयापन कर सकूँ। इससे ज़्यादा मुझे कुछ चाहिए भी नहीं। मेरा स्वाभिमान बचा रहे, बस यही एक भाव जगता है। मैं अपने वर्तमान को लेकर बहुत ही स्पष्ट और सजग हो चला हूँ। अतीत और भविष्य से मुझे अब बहुत ज़्यादा प्रयोजन नहीं। जो है अभी और इसी पल में है। बात लंबी हो गयी है। आगे की कहानी फिर सही। आज बस इतना ही।

#हीरेंद्रकीडायरी

2 comments:

लोकेष्णा (लोपामुद्रा ) said...

बहुत सही राह पकड़ ली है सर , यही सुकून देगी

निराली निम्मी said...

Badi baat

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...