Monday, August 31, 2020

विदा प्रणब मुखर्जी, एक बच्चे की नज़र से



बाबूजी के साथ एक बार कोलकाता गया था। तारीख़ मुझे अच्छे से याद है- 5 मार्च 1996। हावड़ा ब्रिज पार करते ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस मार्ग पर कोल इंडिया का मुख्यालय है। वहीं Indian National Trade Union Congress (INTUC) का कोई कार्यक्रम था। उस दौर में बाबूजी का अलग ही जलवा था। मैं मंच पर बाबूजी के साथ बैठा था। बगल में एक और सज्जन थे। मेरे गाल को प्यार से खींचते हुए उन्होंने पूछा- की नाम? मैंने कहा- हीरेंद्र झा। उन्होंने बड़े ही प्यार से लेकिन आत्मविश्वास भरते हुए कहा- झाजी का बेटा है, मन से पढ़ना, खूब पढ़ना। मुझे अच्छे से याद है कि बाद में उन्होंने किसी से मंगा कर मुझे एक पैकेट बिस्किट भी पकड़ाया। वो मेरी उनसे इकलौती मुलाकात है। आज जब प्रणव मुखर्जी के निधन की ख़बर आयी तो मैं वहीं इंटक के कार्यक्रम में पहुँच गया। मेरा मन थोड़ा सा इमोशनल हो गया। बड़े लोग, विरले लोग ऐसे ही होते हैं शायद जो एक बच्चे को भी एक ही मुलाकात में वो अहसास दे जाते हैं जो कई बार कोई विश्वविद्यालय भी नहीं दे पाता! नमन करता हूँ आपको। ईश्वर आपको अपने श्री चरणों में स्थान दें।

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...