Friday, July 24, 2020

दिल बेचारा, एक अधूरी कहानी : हीरेंद्र झा






कल देर रात मैंने सुशांत सिंह राजपूत की फ़िल्म #दिलबेचारा देखी। यह फ़िल्म कल ही हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई है। ज़ाहिर है यह सुशांत की आख़िरी फ़िल्म है। अब वो बड़े पर्दे पर कभी नहीं नज़र आयेंगे। अब सवाल है कि यह फ़िल्म कैसी है? एक दर्शक के नाते फ़िल्म देखते हुए आप कई बार भावुक हो जाते हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हमें मालूम है सुशांत अब इस दुनिया में नहीं हैं। अगर वे ज़िंदा होते तो फ़िल्म हम एक अलग नज़रिए से देख पाते। स्क्रीनपले के लिहाज़ से फ़िल्म का सेटअप बिल्कुल परफेक्ट है। कहानी हम जानते थे क्योंकि यह एक हॉलीवुड फ़िल्म की रिमेक है। डायलॉग लिखने वाले को लगता है कि ज़्यादा फ़ीस नहीं दी गयी होगी। संवाद और भी अच्छे हो सकते थे। फ़िल्म के संगीत में एक आकर्षण ज़रूर है और गाने के बोल भी कहीं न कहीं आपके मन को छू लेते हैं। सिनेमेटोग्राफी यानी कैमरे का काम बहुत खूबसूरत है। जमशेदपुर से लेकर पेरिस को जिस तरह से दर्शाया गया है, अद्भुत है। अभिनय की बात करें तो सुशांत सिंह राजपूत का परफॉर्मेंस काफ़ी दमदार है। सैफ़ अली ख़ान थोड़ी देर को ही नज़र आये लेकिन, फ़िल्म का जो इकलौता संदेश है वो उन्हीं के संवाद से जाना जा सकता है। डायरेक्शन की बात नहीं करूंगा। उनके लिए बस 'सेरी' ही कह सकता हूँ। कुछ कमियां भी हैं, उनकी बात जानकार लोग करेंगे। बचपन से हम सब यही तो सुनते आए हैं- 'एक था राजा, एक थी रानी.. दोनों मर गए ख़त्म कहानी।' लेकिन, मरने से पहले जी लेने की बात इशारे में ही सही #दिलबेचारा ने बेहद ही ख़ूबसूरती से बताने की कोशिश की है। कई मामले में यह एक अधूरी सी प्रेम कहानी है। ठीक वैसे ही जैसे सुशांत सिंह राजपूत का सफ़र अधूरा ही रह गया। उनके चाहने वालों के लिए यह फ़िल्म एक सौगात की तरह है। 

मेरी रेटिंग 5 में से 3 स्टार। अलविदा सुशांत सिंह राजपूत!


Saturday, July 04, 2020

काफ़्का के बारे में

लौटना

चालीस की उम्र में फांज काफ़्का; जिनकी शादी नहीं हुई थी और न ही कोई संतान थी; एक बार बर्लिन के एक पार्क में टहल रहे थे। वहाँ उन्हें एक बच्ची मिली जो अपनी प्यारी गुड़िया के खो जाने पर रो रही थी। बच्ची के साथ काफ़्का ने ने भी उस गुड़िया को खोजने की कोशिश की, लेकिन वह बेकार हुई। काफ़्का ने कहा कि अगले दिन हम दोनों यहीं मिलेंगे और गुड़िया को फिर से खोजेंगे।

अगले दिन जब बहुत खोजने पर भी गुड़िया उन्हें नहीं मिली तो काफ़्का ने बच्ची को एक चिट्ठी थमाई जो उस गुड़िया ने "लिखी" थी। उसमें लिखा था, "प्लीज तुम मत रोना, मैं एक ऐसी ट्रिप पर निकली हूँ जिसमें मुझे इस दुनिया को देखना है। मैं अपने रोमांचकारी अनुभवों के बारे में तुम्हें लिखती रहूँगी।"

इस तरह एक कहानी शुरू हो गई जो काफ़्का की ज़िंदगी के अंत तक लिखी जाती रही।

अपनी मुलाकातों के दौरान काफ़्का रोमांचक संवादों से भरी हुई उन चिट्ठियों को बहुत ध्यान से पढ़ते जो अब बच्ची को भी खूब भाने लगी थीं।

आख़िर एक दिन काफ़्का ने लगभग वैसी ही गुड़िया लाकर उसे दिया जैसी कि बच्ची ने खुद खरीदी थी। वह गुड़िया जो अपनी "ट्रिप" के बाद बर्लिन लौट आयी थी। "यह कहीं से भी मेरी अपनी गुड़िया जैसी नहीं लगती है", बच्ची ने कहा। 

काफ़्का ने उसके हाथ में एक और चिट्ठी पकड़ाई जिसमें लिखा था, "मेरी यात्राओं ने मुझे बदल दिया है। मैं अब पहले जैसी नहीं रही।" छोटी बच्ची ने नई गुड़िया को सीने से लगा लिया और ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर ले आई।

एक साल बाद काफ़्का की मृत्यु हो गयी।

कई साल बाद जब बच्ची बड़ी हो गयी तो उसे गुड़िया के अंदर रखी हुई एक चिट्ठी मिली। एक छोटी-सी चिट्ठी, जिसपर काफ़्का के हस्ताक्षर थे और लिखा था, "वैसी हर चीज जिसे तुम प्यार करते हो शायद कभी खो जाएगी, लेकिन अंत में वही प्यार दूसरे रूप में लौटकर तुम्हारे पास आ जाएगा।"

(काफ़्का के जन्मदिन पर प्रस्तुत एक पोस्ट का Pankaj Bose द्वारा किया गया अनुवाद)

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...