चमेली, जब वी मेट, मेरे ब्रदर की दुल्हन और रॉकस्टार जैसी फ़िल्मों के गाने लिखने वाले गीतकार इरशाद कामिल अपने सुकून भरे गीतों के लिए जाने जाते हैं लेकिन इस नाज़ुक दिल शायर के अंदर रहता है एक शख़्स जिसमें ज़माने भर के लिए ग़ुस्सा और खीझ है. एक दिन जनसत्ता में अचानक रात के डेढ़ बजे मैं अपना डबल कॉलम लिख कर घर आ रहा था. अचानक दिमाग में बात आई कि, इरशाद कामिल क्या तुमने ये सोचा था कि बड़े होकर खुशवंत सिंह बनोगे, या कुलदीप नैयर बनोगे? तो अंदर से आवाज़ आई, नहीं ये तो नहीं सोचा था. और अगली ही सुबह मैंने इस्तीफ़ा दे दिया. फिर कुछ दिन चंडीगढ़ में घुमक्कड़ी और थिएटर करने के दौरान यूं ही एक दिन लेख टंडन से मुलाकात हो गई. लेख टंडन को लेखक की ज़रूरत थी. फिर क्या था मैंने उनके सीरियल 'कहां से कहां तक' के लिए 22 दिन सेट पर बैठकर डायलॉग लिखे.मैंने पीएचडी के दौरान कविता विषय यही सोच कर चुना था कि काम की जो बारीकियां हैं, उसे सीखूं.
मैं इन दिनों अपने भीतर वह ज़मीन तैयार कर रहा था, जहां से एक लेखक का जन्म हो सके. ये भी इत्तेफ़ाक की ही बात है कि इम्तियाज़ अली से मुलाक़ात हो गई और उन्होंने मुझे 'सोचा न था' में मौक़ा दे दिया.इम्तियाज़ के साथ का जो सिलसिला चला वो अब तक चल रहा है. 'जब वी मेट' के सारे गाने लोगों को बहुत पसंद आए थे. इस फ़िल्म ने मुझे एक अलग तरह की पहचान दी थी.इसके बाद आई 'रॉकस्टार'. 'रॉकस्टार' ने असल वाले इरशाद को, जिसके लिए रोमांस उतनी सस्ती और उतनी उथली चीज़ नहीं थी, लोगों के सामने ला खड़ा किया.अब लोगों के सामने वो इरशाद आया जो सिर्फ गीतकार नहीं है, थोड़ा सा साहित्यकार, थोड़ा सा शायर भी है. जिसके अंदर दुनिया के लिए खीझ है. जो ऊपर से भले ही बहुत नरम लगता हो, मगर अंदर पूरा का पूरा जल रहा है. लोगों के सामने वो इरशाद आया है जिसके अंदर दुनिया के लिए खीझ है. जो ऊपर से भले ही बहुत नरम लगता हो, मगर अंदर पूरा का पूरा जल रहा है.व्यावसायिक होते हुए भी हम किस हद तक साफ दिल हो सकते हैं, अपनी सीमाओं को बढ़ा सकते हैं, ये रॉकस्टार ने बता दिया.
अपने आप से तो कोई शिकायत नहीं है दुनिया से ज़रूर है. मेरे अंदर बहुत कुछ ऐसा है जिसे सिनेमा निकाल नहीं पाएगा क्योंकि वो बिकता नहीं है. उसके पैसे नहीं मिल सकते. ख़ुद को ख़ुश करने के लिए कभी कविताएं लिख लेता हूं. नाटक लिखता हूं. जो कुछ मुझसे हो सका है अब तक उससे मैं बहुत ख़ुश हूं. सफ़र तो अभी जारी है.
Source: BBC
मैं इन दिनों अपने भीतर वह ज़मीन तैयार कर रहा था, जहां से एक लेखक का जन्म हो सके. ये भी इत्तेफ़ाक की ही बात है कि इम्तियाज़ अली से मुलाक़ात हो गई और उन्होंने मुझे 'सोचा न था' में मौक़ा दे दिया.इम्तियाज़ के साथ का जो सिलसिला चला वो अब तक चल रहा है. 'जब वी मेट' के सारे गाने लोगों को बहुत पसंद आए थे. इस फ़िल्म ने मुझे एक अलग तरह की पहचान दी थी.इसके बाद आई 'रॉकस्टार'. 'रॉकस्टार' ने असल वाले इरशाद को, जिसके लिए रोमांस उतनी सस्ती और उतनी उथली चीज़ नहीं थी, लोगों के सामने ला खड़ा किया.अब लोगों के सामने वो इरशाद आया जो सिर्फ गीतकार नहीं है, थोड़ा सा साहित्यकार, थोड़ा सा शायर भी है. जिसके अंदर दुनिया के लिए खीझ है. जो ऊपर से भले ही बहुत नरम लगता हो, मगर अंदर पूरा का पूरा जल रहा है. लोगों के सामने वो इरशाद आया है जिसके अंदर दुनिया के लिए खीझ है. जो ऊपर से भले ही बहुत नरम लगता हो, मगर अंदर पूरा का पूरा जल रहा है.व्यावसायिक होते हुए भी हम किस हद तक साफ दिल हो सकते हैं, अपनी सीमाओं को बढ़ा सकते हैं, ये रॉकस्टार ने बता दिया.
अपने आप से तो कोई शिकायत नहीं है दुनिया से ज़रूर है. मेरे अंदर बहुत कुछ ऐसा है जिसे सिनेमा निकाल नहीं पाएगा क्योंकि वो बिकता नहीं है. उसके पैसे नहीं मिल सकते. ख़ुद को ख़ुश करने के लिए कभी कविताएं लिख लेता हूं. नाटक लिखता हूं. जो कुछ मुझसे हो सका है अब तक उससे मैं बहुत ख़ुश हूं. सफ़र तो अभी जारी है.
Source: BBC