Sunday, January 26, 2020

तुम आज बुझे बुझे से क्यों हो

शाम का अँधेरा गहरा होता
इस से पहले तुमने मुझे जलाया...
मैं लालटेन की तरह जलता रहा...
तुम जिसके लौ में अपने सारे काम
जल्दी-जल्दी निपटाती रही...
काम पूरा हुआ, रात होने को है,
अब तुम्हें सोना है शायद !!
तुमने लौ कम करके फूंक मार कर मुझे बुझा दिया..
मैं बुझ गया...
तुम सो गये..
तेरे सपने ने मुझसे पूछा था
जब तुम नींद में थे...
कि आज तुम इतने बुझे-बुझे से क्यों हो? #हीरेंद्र

Saturday, January 25, 2020

एकता कपूर और कंगना रनौत को पद्मश्री सम्मान


26 जनवरी गणतंत्र दिवस के मौके पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गयी है. इस बार 7 हस्तियों को पद्म विभूषन, 16 को पद्म भूषन और 118 को पद्म श्री से सम्मानित किया गया है. भारत सरकार ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी है. इसमें फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कलाकारों में एकता कपूर, करण जोहर, कंगना रनौत और सुरेश वाडकर को पद्मश्री पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा. वहीं क्लासिकल सिंगर छन्नूलाल मिश्रा को पद्म विभूषण से सम्मानित किया जाएगा। पद्मश्री चौथा सर्वोच्च सम्मान हैं.




पीएम नरेंद्र मोदी ने सभी पद्म पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी है . पीएम ने लिखा, ‘पद्म पुरस्कार से सम्मानित किए जाने वाले सभी लोगों को बधाईl अवॉर्ड पाने वाले लोगों ने हमारे समाज और देश के लिए योगदान दिया है.


#KanganaRanaut #EktaKapoor #Padmashree #Republicday2020

ब्रेकअप के बाद

मैंने यह अनुभव किया है कि इस दुनिया में सबसे ज़्यादा लोग 'प्रेम' में ठगे गये हैं.. संभवत: इसलिये एक प्रेमी कभी सियासत या सिस्टम को 'ठग' नहीं कहता.. उसके अपने दर्द के आगे दुनिया का हर दर्द, हर उथल-पुथल फीका लगता है. वो भीड़ से बचता है. एकांत में देर तक सूनी आँखों से अपने अतीत में झांकता रहता है. वह उस उलझे धागों को सुलझाने की कोशिश में और उलझकर रह जाता है. वह गले फाड़ कर रोना चाहता है. पर सुबक कर रह जाता है. तड़प कर रह जाता है. वो कोसना चाहता है पर अपनी पूर्व प्रेमिका को जी भर कर कोस भी नहीं पाता. वो फेसबुक पर भी घुमा- फिराकर प्रेम के अपने कटु अनुभव पर पोस्ट लिखने लगता है.. वो जानता है कि ये सब सच है, पर कोई उसकी बात को गंभीरता से नहीं लेगा..वो खुद भी यही चाहता है..वो बेबस और असहाय दिखना नहीं चाहता.. कभी-कभी मुस्कुराते हुए  सेल्फी भी शेयर करता है.. ऐसा कई बार कई दिनों या फिर महीनों तक चलता है. फिर वो धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है.. फिर वो थोड़ा सा पत्थर हो जाता है.. #हीरेंद्र

Tuesday, January 21, 2020

सविता बजाज का दर्द

सविता बजाज को जीवन ने खूब तोड़ा. तिरस्कार, धोखा सबकुछ झेलती वो डटी रहीं.. 1947 में जब देश बंटा तो सविता पेशावर से दिल्ली वाया शिमला आ गईं.. बंटवारे के समय वो महज 5 साल की थीं..यह कहते हुए उनकी पलकें आज भी भींग जाती है कि पेशावर छोड़ते समय वो अपने पेट डॉग को साथ नहीं ला सकीं.. क्योंकि उस समय जानवरों को सीमा पार से साथ लाने की इजाजत नहीं थी.. पांच साल की बच्ची के लिये तब यही सबसे बड़ा दर्द था..वो कहती हैं कि मोती छटपटा रहा था, लगातार भौंके जा रहा था.. उसे रस्सी से बांध दिया गया.. वो भी रोती, चिल्लाती रहीं.. लेकिन, वो उसे अपने साथ ला नहीं सकीं..

किसी अपने से अलग होने का दर्द वो तब से झेलती आ रही हैं.. उसके बाद जीवन के हर मोड़ पर अपने किसी प्रिय से बिछड़ना जैसे इनका नसीब बन गया.. 

उनके पास इतनी कहानियाँ हैं कि मैं हैरान होकर सुनता रहा.. आज दिन भर हम साथ थे.. कमर की हड्डी टूटने के बाद वो अब वाकर के सहारे चलती हैं. 



राइटर एसोसियेशन में 10 साल रजिस्ट्रार रहीं.. 1969 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पास करने के बाद अभिनय की दुनिया में रम गईं.. छोटी छोटी कई भूमिकाओं में नज़र आती रहीं..राजेश खन्ना के साथ आनंद में तो श्याम बेनेगल की कई फिल्में समेत उन्होंने बहुत काम किया..'उसकी रोटी' फिल्म के लिए उन्हें अवॉर्ड भी मिला. दूरदर्शन पर डिस्कवरी ऑफ इंडिया समेत कई टीवी धारावाहिकों में दिखीं.. बातों बातों में पता चला वो मुंबई में मेरे घर के पास ही रहती हैं.. फिर मिलने के वादे के साथ उन्हें विदा किया.. उन्होंने धर्मयुग से लेकर माधुरी तक के लिये सैकड़ों लेख भी लिखे हैं.. तमाम सितारों के घर पर वो बेधड़क पहुंच जाती.. सब उन्हें बहुत मान भी देते.. एक एक कर सभी पुराने साथी इस दुनिया को अलविदा कह गये..कहती हैं नये लोगों में अब वो बात नहीं..
माता पिता तीन बड़े भाई भी गुजर चुके हैं.. भाईयों के बच्चों ने इनसे कोई रिश्ता नहीं रखा.. अकेली रहती हैं..शादी के बारे में पूछा तो बुरा चैप्टर बोलकर टाल गईं.. आज भी वो घर पर ज्यादा नहीं रहतीं.. मुंबई के सड़कों, गलियों, दफ्तरों और स्टूडियो में अपने अतीत को तलाशती भटकती रहती हैं..  

बहरहाल, 77 साल की उम्र में भी एक ललक, एक बेचैनी उनमें बाकी है. मैं उनसे मिलने के बाद बहुत देर तक मौन रहा..लगभग सब सितारों से मैं यहां मिल चुका हूँ लेकिन, किसी के बारे में पहली बार विस्तार से लिखने से खुद को न रोक सका.. शुक्रिया..  #हीरेंद्र

*यह मैंने 21 जनवरी 2019 को लिखी थी

Sunday, January 12, 2020

कन्याकुमारी: जहाँ स्वामी विवेकानंद को मिला उनके जीवन का उद्देश्य, तस्वीरों संग जानिये जो मैंने देखा


आज विवेकानंद की जयंती है तो मन हुआ इसी बहाने आपको अपनी कन्याकुमारी यात्रा से जुड़ी कुछ बातें बताऊं. बहरहाल, कन्याकुमारी में बहुत कुछ ऐसा है जो दर्शनीय है लेकिन, आज बात सिर्फ विवेकानंद की. आप जानते हैं भारत के आखिरी छोड़ पर बसा है कन्याकुमारी. जहाँ तीन समुद्रों (हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी) का संगम है. 
वहीं समुद्र किनारे देवी कन्याकुमारी का एक भव्य मंदिर है. जहाँ मर्द सिर्फ खुले बदन ही प्रवेश कर सकते हैं. बहरहाल, समुद्र के भीतर पूरब दिशा की तरफ जिधर बंगाल की खाड़ी है वहां विवेकानंद रॉक है.
 और उस रॉक के ठीक सामने कुमारी देवी का मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि कुमारी देवी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए यहीं तपस्या की थी. शिव प्रकट भी हुए. लेकिन, ऐसा कहा जाता है कि तब सारा ब्रह्माण्ड एक राक्षस के आतंक से परेशान था (उसका नाम याद नहीं आ रहा मुझे अभी) और उस राक्षस को यह वरदान था कि उसकी मौत सिर्फ एक ऐसी कन्या से हो सकती है जो कुमारी हो और जिसे ईश्वर की सभी सिद्धियां प्राप्त हो. ऐसे में शिव उस कुमारी से विवाह नहीं करते और बाद में वही देवी कुमारी के हाथों उस आततायी राक्षस का वध होता है. तो विवेकानद रॉक के ठीक सामने देवी ने जहाँ तपस्या की थी, वहां उनके पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं. वहां भी अब एक मंदिर बना दिया गया है. 
विवेकानंद जब 24 दिसंबर 1892 को कन्याकुमारी गए तो वहीं देवी कुमारी के चरण के निशान देखने वो समंदर के अंदर बने उस चट्टान पर भी गए. जिसे आज विवेकानंद रॉक कहा जाता है. विवेकानंद तीन दिनों (25 से 27 दिसंबर 1892) तक वहां समाधि में लीन रहे और कहते हैं जीवन का उद्देश्य और अर्थ उन्हें यहीं समझ आया. 
आज उस रॉक के ऊपर एक विशालकाय भवन है जिसमें विवेकानंद की एक भव्य जीवंत प्रतिमा है, जिसकी तस्वीर खींचने की इज़ाज़त किसी को नहीं। इस भवन के नीचे एक ध्यान केंद्र है. जहाँ न के बराबर रौशनी है. पीछे दीवार पर ॐ लिखा हुआ ज़रूर नज़र आता है , जहाँ दुनिया भर से लोग ध्यान करने के लिए आते हैं. मैं भी उस कक्ष में तीन घंटे तक ध्यान में बैठ गया था. अद्भुत है वहां सब.
 विवेकानंद रॉक के ठीक समानांतर एक भव्य प्रतिमा और है. यह प्रतिमा है थिरुवलुवर की. जो एक बड़े तमिल लेखक रहे हैं. लेखकों को सम्मान देना हमें तमिल लोगों से सीखनी चाहिए। 
आखिरी बात जब मैं फेरी से विवेकानंद रॉक की तरफ जा रहा था तो मैं उस पवित्र स्थान के सम्मोहन में इस कदर खो चुका था कि मैंने स्वामी विवेकानंद को वहीं समुद्र में फेरी के साथ तैरते हुए भी देखा। यह यात्रा मुझे ताउम्र याद रहेगी। धन्यवाद। #हीरेंद्र
SwamiVivekananda: Kanyakumari: HirendraJha

Saturday, January 11, 2020

यहाँ पर्सनल लाइफ़ के लिए समय नहीं मिलता: चारुल मल्लिक





चारुल मल्लिक देश की जानी मानी एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट और एंकर हैं। अपने 18 साल लंबे करियर में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज़ चारुल मल्लिक चार बार बेस्ट एंकर (मनोरंजन) का एनटी अवॉर्ड हासिल कर चुकी हैं इसके अलावा बेस्ट एंटरटेन्मेंट एंकर के लिए वो दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी हैं चारुल उन तमाम लड़कियों के लिए भी एक रोल मॉडल हैं जो पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहती हैं। उनकी यात्रा और करियर से जुड़े मसलों पर सहायक संपादक हीरेंद्र झा ने उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उस बातचीत के अंश-

हीरेंद्र: अपने बचपन और परवरिश के बारे में कुछ बताएं?

चारुल मल्लिक:  मेरा जन्म चंडीगढ़ में हुआ। मेरी ट्विन्स सिस्टर है पारुल। तो बचपन से मुझे चारुल-पारुल सुनने की आदत थी। मेरी बहन पारुल की वजह से मुझे कभी दोस्तों की ज़रूरत नहीं पड़ी।  मैं ये नहीं कहती कि दोस्त ज़रूरी नहीं होते पर मुझे घर में ही शुरू से एक ऐसा माहौल मिल गया कि हमें किसी और की ज़रूरत नहीं रही और हमारी बुनियादी ट्रेनिंग वहीं शुरू हो गयी। मेरी मम्मी आशा मल्लिक जो टीचर थीं, उन्हें डांस, सिंगिंग सब आता था। वो हिंदी की प्रोफ़ेसर भी थीं तो हमारी परवरिश काफी अच्छी रही मेरा छोटा भाई है गौरव, वो अमेरिका में है मैनेजर है और वो भी रैप गाने गाता है, काफी टैलेंटेड है मेरे परिवार में सब आर्टिस्ट हैं तो कुछ ऐसा ही माहौल था मेरे नाना सांसद और विधायक रहे हैं तो बहुत ही रॉयल फैमिली से थी मम्मी, पापा से लव मैरिज के बाद वो चंडीगढ़ आकर बस गयीं। मेरे पापा भी सिंगिंग और इस तरह की चीज़ों में एक्टिव थे तो कुल मिलाकर हमें विरासत में ही कला और आर्ट्स के प्रति एक रुझान मिला।

हीरेंद्र: उस दौर की कुछ यादें?

चारुल मल्लिक:  जब मैं पांच साल की थी तब मैं एक बॉक्स को टीवी की तरह बनाकर उस पर न्यूज़ पढ़ती या कुछ प्रोग्राम पेश कर रही होती। मेरी बहन पारुल भी ड्राइंग और सिंगिंग में बिज़ी रहती।  होता ये था कि  जब भी मेरे घर में कोई गेस्ट आता था मम्मी खूब मोटिवेट करती और कहती चारुल अब पोएम सुनाएगी और मैं सुनाने लगती। तो यह एक अलग तरह की ट्रेनिंग थी। तो मैं यह कह सकती हूँ कि आज मैं जो कुछ भी हूँ मम्मी की वजह से हूँ। पापा भी काफी सपोर्ट  करते थे। वो लॉयर थे और ना बोलने वाले भी कहीं न कहीं आपको इंस्पायर ही कर रहे होते हैं कुछ करने के लिए। एक दिलचस्प बात बताऊँ कि उस वक़्त मैं जहाँ कहीं भी कोई प्रोग्राम कर रही होती तो मेरी मम्मी वहां तब वीडियोग्राफर लेकर आतीं और सारा प्रोग्राम रिकॉर्ड कर रही होतीं। उस वक़्त वीडियोग्राफी आज की तरह आसान नहीं था। उसके लिए बहुत एफोर्ट करना होता था तो यह सब मैंने बचपन से देखा है तो उन वजहों से आज मैं स्क्रीन पर इतनी कॉंफिडेंट रहती हूँ।

हीरेंद्र: मीडिया में आना है यह कब तय किया आपने?

चारुल मल्लिक:  मैंने मीडिया में आने के लिए कोई कोर्स नहीं  किया है। मैं बीए एल.एल.बी हूँ। मैंने दसवीं के बाद पांच साल वाले लॉ के कोर्स में दाखिला लिया था। उसी दौरान मैं ऑल इण्डिया रेडियो से जुड़ी और मुझे याद है मुझे पहला चेक साढ़े तीन सौ रुपये का आया था। उसके बाद मैं लोकल सिटी चैनल से जुड़ी जिसमें मैं न्यूज़ पढ़ती थी। उसी दौरान जब मेरा लॉ हो गया तब मैंने प्रॉपर काम करना शुरू कर दिया। उसी समय मेरी शादी भी हो गयी और मैं दूसरे परिवार में आ गयी लेकिन वहां भी मुझे सबका सपोर्ट मिला और फिर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

हीरेंद्र: संक्षेप में अपनी यात्रा के बारे में बताएं?

चारुल मल्लिक:  मैंने अपना करियर सबसे पहले जैन टीवी से शुरू किया जहाँ मैं तीन महीने रही। उसके बाद मैं सहारा में आ गयी, जहाँ मैं हिंदी और अंग्रेजी दोनों के लिए प्रोग्राम करती थी। वहां दो साल रहने के बाद मैं स्टार न्यूज़  आ गयी, वहां मॉर्निंग बुलेटिन मेरा ही होता था। मैं दिन की शुरुआत करती थी। उसके बाद मेरे पति का ट्रांसफर हो गया और स्टार न्यूज़ ने मुझे मुंबई भेजने से मना कर दिया गया। उसके बाद मैं आज तक आ गयी और यह एक टर्निंग पॉइंट रहा क्योंकि यहाँ से मैं एंटरटेन्मेंट एंकरिंग शुरू की। यह काफी चैलेंजिंग था मेरे लिए। उसके बाद मैं इण्डिया टीवी आयी। यहाँ पूरा शो मैं ही रन करती हूँ। सारा कंटेंट मैं डिसाइड करती हूँ। शो का कांसेप्ट, थीम और बैकग्रॉउंड तक मैं सब तय करती हूँ और ये रोज़ का शो है।  एक घंटे का प्रोग्राम है, जिसमें मुझे रोज़ कुछ न कुछ नया करना है।

हीरेंद्र: मैंने सुना है कि अपने शो के कपड़े, लुक और प्रॉप्स भी आप ही खुद सेलेक्ट करती हैं?

चारुल मल्लिक:  हाँ मैं अपनी ड्रेस स्टाइलिस्ट खुद हूँ और अपने लुक पर खुद ही मेहनत करती हूँ। अब तो मार्केट में शॉप वाले भी मुझे पहचानते हैं तो मेरे शो के हिसाब से मुझे चीज़ें देने में मेरी मदद भी करते हैं।

हीरेंद्र: एक एंकर की क्वालिटी और चैलेंज आपकी नज़र में क्या है?

चारुल मल्लिक: करियर के लिहाज से एंकरिंग एक बेहतरीन विकल्प है। लेकिन, मीडिया में जो लोग आते हैं उन्हें यह याद रखनी चाहिए कि यह काफी डेडिकेशन वाली लाइन है।  अगर आपको एंकर बनना है तो आपको खुद को फिट रखना है। आपको स्माइलिंग, चार्मिंग रखना है। आपका मूड खराब होगा तो आपके चेहरे पर दिख जाएगा। आपको दुनिया जहान की टेंशन होगी वो सब भूलकर आपको हमेशा स्माइल करना होगा। एक एंकर के लिए ज़रूरी है उसका प्रेजेंटेशन अच्छा हो तो आपको अपने ड्रेसिंग सेन्स और लुक का भी ध्यान रखना चाहिए।
ख़ासकर आप अगर एंटरटेन्मेंट  एंकर हैं तो आपको काफी एनर्जेटिक और प्लीजेंट होना होता है।

हीरेंद्र: सितारों की दुनिया को आप इतने करीब से देखती हैं, उन लोगों से जुड़ा अपना कोई अनुभव शेयर कीजिये?

चारुल मल्लिक: ये सितारे जिनको आप टीवी पर देखते हैं ये सब बहुत मेहनती लोग होते हैं। दिन रात इनको काम करना होता है। दूसरी बात ये टीवी पर जितने अच्छे दिखते हैं उनके लिए यह भी उतना ही चैलेंजिंग होता है कि वो ऑफ स्क्रीन भी वैसा ही दिखे। इसके लिए भी वो बहुत मेहनत करते रहते हैं। अगर वे एयरपोर्ट पर दिखते हैं तो वहां भी उन्हें स्टाइल और चार्म मैंटेन करना है। उन्हें जिम भी जाना है, दूर दूर तक स्टूडियो जाकर शूट करना होता है, घर-परिवार के लिए भी ज़्यादा समय नहीं दे पाते। तो यह सब आसान नहीं। लोगों को इन स्टार्स का ग्लैमर तो दिखता है लेकिन, उनकी मेहनत नहीं दिखती!

हीरेंद्र: मीडिया में महिलाओं की क्या स्तिथि है?

चारुल मल्लिक: मीडिया में मैं समझती हूँ कि महिलाओं के साथ कोई भेदभाव नहीं है। मैं इण्डिया टीवी में हूँ तो यहाँ लड़कियों के लिए अच्छा माहौल है। उनकी सुनी जाती है। हमारे यहाँ रितु मैम बॉस हैं तो उनकी वजह से लड़कियों के लिए काफी अच्छा माहौल है। इन्फैक्ट और भी लीडिंग चैनलों में कई अच्छी एंकर्स फीमेल हैं जो अच्छा काम कर रही हैं।

हीरेंद्र: मीडिया पर कई तरह के आरोप लगते हैं? क्या इस तरह की बातें परेशान करती हैं?

चारुल मल्लिक: पहले परेशान करती थीं इस तरह की बातें। लेकिन, यह सच है कि अच्छे और बुरे लोग हर जगह हैं।

हीरेंद्र: आपकी हॉबी क्या-क्या हैं?

चारुल मल्लिक: पिछले साल हमारे यहाँ कॉन्क्लेव हुआ तो उस दौरान मैंने कुछ प्रोमो लिखे थे जो सबको काफी पसंद आये। तो उसके बाद मैंने लिखना शुरू किया। अब कविताएं भी लिखने की कोशिश करती हूँ, कभी-कभी जब थॉट आ जाए इसके अलावा मेरी हॉबी है फिट रहो, डांस करने का शौक है मुझे। मैं अपनी स्टाइलिस्ट खुद हूँ, अच्छा दिखने का शौक है। 365 दिनों में 300 दिन  अपने स्टाइल किये किये कपड़े पहनती हूँ, मेरे घर में कपड़े रखने की अब जगह नहीं है।

हीरेंद्र: सोशल मीडिया को कैसे देखती हैं?

चारुल मल्लिक: सोशल मीडिया आज की तारिख में बहुत ज़रूरी है। हमारा पूरा परिवार वहां होता है। उसके अलावा एक और नया परिवार बनता है वहां।  पॉज़िटिव तरीके से देखें तो सोशल मीडिया का लाभ है लेकिन, अगर आप नेगेटिविटी को बढ़ाते हैं तो यह नुकसानदायक भी है।


हीरेंद्र: एक महिला के काम करने के लिए परिवार का सपोर्ट बहुत ज़रूरी होता है न?

चारुल मल्लिक: परिवार के सपोर्ट के बिना महिलाओं के लिए राहें कभी आसान नहीं रहीं। मुझसे कभी कोई सवाल नहीं पूछता कि मैं कब आ रही हूँ, कब जा रही हूँ। बिना परिवार के सपोर्ट के यह सब संभव नहीं है।

हीरेंद्र: यूथ के लिए क्या संदेश?

चारुल मल्लिक: आप किसी की देखा देखी किसी की फील्ड में न आओ। आप अपने अंदर की बेचैनी को जानो और अपने मन से पूछो कि आपको किस फील्ड में इंटरेस्ट है उसके बाद उस राह में अगर आप अपना करियर चुनते हैं तो आप ज़्यादा सक्सेस पाते हैं और अगर आप मीडिया में आएं तो यह सोच कर आएं कि यहाँ 24 घंटे सातों दिन काम करना होता है। यहाँ पर्सनल लाइफ के लिए समय नहीं बचता। अगर आप यहां आना चाहते हैं तो मान कर चलिए की आप एक वार रूम में आ रहे हैं और इसके लिए आपको पूरी तरह से तैयार होकर आना होगा।

हीरेंद्र: कभी कोई किताब लिखेंगी आप?
चारुल मल्लिक: मेरे मन में है कि एक किताब मैं एक एंकर और टीवी स्टार्स के लाइफ पर लिखूं। क्योंकि मैं उनकी लाइफ को बहुत करीब से देख रही हूँ और वो एक पॉजिटिव किताब होगी।


Interview: Charul Malik, Source: Aadhi Aabadi

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...