शाम का अँधेरा गहरा होता
इस से पहले तुमने मुझे जलाया...
मैं लालटेन की तरह जलता रहा...
तुम जिसके लौ में अपने सारे काम
जल्दी-जल्दी निपटाती रही...
काम पूरा हुआ, रात होने को है,
अब तुम्हें सोना है शायद !!
तुमने लौ कम करके फूंक मार कर मुझे बुझा दिया..
मैं बुझ गया...
तुम सो गये..
तेरे सपने ने मुझसे पूछा था
जब तुम नींद में थे...
कि आज तुम इतने बुझे-बुझे से क्यों हो? #हीरेंद्र
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Sunday, January 26, 2020
तुम आज बुझे बुझे से क्यों हो
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