Monday, December 31, 2018

2018 के फ़िल्मों के नाम की कहानी





प्यारी 'परी',

मैंने किसी से सुना कि आज तुम्हारे भाई की शादी है. तो सबसे पहले तुम्हें तुम्हारे 'वीरे दी वेडिंग' के मौके पर बहुत बहुत 'बधाई हो'.. आज सुबह से ही मुझे 'हिचकी' आ रही थी और बार-बार अपना 'पास्ट' भी याद आ रहा है.
याद है सब हमें 'लैला मजनूं' कहा करते थे और तुम्हारा निक नेम लेकर तुम्हें छेड़ते कि 'हैप्पी फिर भाग जायेगी' और मेरे दोस्त मुझे 'भैय्या जी सुपरहिट ' कहकर चिढ़ाते! मैं भी अपना 'दिल जंगली' किये 'फन्ने ख़ान ' बना फिरता.

लेकिन, 'ऑक्टूबर' का महीना आते ही जैसे कोई 'परमाणु' बम फूट पड़ा. '1921' के एक पुराने केस में तुम्हारे '102 नॉट आउट ' दादाजी को जब 'मुल्क' ने 'मंटो' के साथ मिलकर 'नमस्ते इंगलैंड' कहने का दोषी पाया तो मैं समझ ही न सका कि क्या करूँ? 'यूनियन लीडर' से लेकर 'साहेब बीबी और गैंगस्टर ' तक उस 'निर्दोष' के पीछे पड़ गये. तुम्हारे घर पर 'रेड' पड़ा. हर तरफ से 'अंधाधुन' हमले होने लगे. वो तो भला हो 'संजू' और 'भावेश जोशी' का जिन्होंने अपने 'पल्टन' के साथ 'केदारनाथ' से आकर मोर्चा संभाल लिया. दो साल की बच्ची 'पीहू' की गवाही भी काम आई जिससे फिर किसी की 'मनमर्जियां' नहीं चल सकी. आखिरकार ये साबित हो ही गया कि 'नमस्ते इंगलैंड' कहने का दोषी वास्तव में वो 'बाइस्कोप वाला' था.

मुझे लगा कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा. लेकिन, पता नहीं हमारी लव स्टोरी कैसे 'हेट स्टोरी' बन गई. पता नहीं मैं तुम्हें क्यों नहीं समझा पाया कि 'सोनू के टीटू की स्वीटी ' से मेरा कोई रिश्ता नहीं. वो तो उस दिन 'नानू की जानू' की ज़िद पर मैं 'बाज़ार' जाकर 'पैडमैन' से उसके लिए 'सुई धागा' लेकर गया था. लेकिन, वो तो मुझे अपना 'लवयात्री ' मान बैठी.

तुम तो नाराज़ हुई तुम्हारा 'मुक्काबाज' भाई भी 'बागी' निकला. जो 'गोल्ड' मैंने तुमसे शादी के लिये इतने अरमानों से जमा किये थे उस 'नवाबजादे' को लगता है कि वो मैंने चुराये हैं. वो मुझे 'ठग्स ऑफ हिंदुस्तान ' गिरोह का आदमी समझने लगा है.

मेरी हालत इन दिनों बिल्कुल ही 'बत्ती गुल मीटर चालू' की तरह हो गई है. कुछ लोग तो अब गोल्ड के लिये मुझे 'ब्लैकमेल' भी कर रहे हैं. 'पद्मावत' फ़िल्म के विरोध की तरह ही बिना बात मेरे पीछे पड़े हैं.

क्या कहूँ. कम लिखे को ज्यादा समझना. तुम 'राज़ी' खुशी से रहो मैं इसी में संतुष्ट हूँ. लेकिन, याद रहे मेरा दिल आज भी सिर्फ तेरे लिये ही 'धड़क' ता है. मुझे यकीन है कि अगर 'सत्यमेव जयते ' का नारा सच्चा है तो एक दिन मैं जरूर साबित कर दूँगा कि तुम्हारा ये 'जीनियस', तुम्हारा ये 'सूरमा' ज़ीरो नहीं है.

मेरे इस प्रेमपत्र को ये न समझना कि मैं वोडका पीकर डायरी लिख रहा हूँ.'कुछ भींगे अल्फाज़ ' हैं जो हो सकता है तुम्हें मेरी 'ऐय्यारी' भी लगे! तुम्हारा ये 'दासदेव' अब 'काशी' के रास्ते 'कालाकांडी' जा रहा है. ज़िंदगी के 'रेस' में शायद हमारा 'कारवां' यही तक था.

तुम्हारा 'सिंबा'

इस साल बड़ी और छोटी मिलाकर बॉलीवुड में लगभग 98 फ़िल्में रिलीज़ हुई हैं. मेरी इस चिट्ठी में 60 से ज़्यादा फ़िल्मों के नाम शामिल हैं. उम्मीद है आप सबको ये चिट्ठी पसंद आएगी। #आपकाहीरेंद्र #विदा2018

Sunday, September 23, 2018

बचपन को समझें

चढ़ गया ऊपर रे, अटरिया पे लोटन कबूतर रे!! सरकाय लियो खटिया जाड़ा लगे, सैयां के साथ मडैया में, बड़ा मजा आया रजैया में, चोली के पीछे क्या है ...

जब मैं आठ, दस, बारह साल का था तो इसी तरह के गाने सुनता हुआ बड़ा हो रहा था. उस दौर में ऐसी ही फिल्में और गाने बना करते. कुल्फी वाला ठेले पर चोंगा लगाये यही सब बजाता घुमा करता. या फिर कहीं सरस्वती पूजा या विश्वकर्मा पूजा या ऐसे ही किसी अवसर पर ये गीत सुनने को मिलते. शायद यही वजह रही होगी कि मैं कभी हिंदी फिल्मों के गीतों से एक दीवाने की तरह न जुड पाया. जब अक्ल बढ़ी और साधन सहज हुए तब गीतों को नए सिरे से चुन-चुन कर सुना, जाना, पसंद भी किया. उसी दौर में हमारे अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री एक घटिया प्रसाद यादव हुआ करते थे. बिहार दिनों दिन गर्त में जा रहा था. हर तरफ एक निराशा और दहशत का माहौल था. बाबरी मस्जिद का टूटना भी याद है. नौ साल का था तब. मसलन ये कि उस दौर की राजनीति, फिल्मों और समाज ने एक बढ़ते हुए बच्चे को भटकाने की पूरी कोशिश की लेकिन वो बच्चा उन सबसे लड़ते हुए थोड़ा बहुत बचा रह गया. कहीं न कहीं एक ऐसा समाज हमें मिला जो घोर रूप से जातिवादी, भौतिकवादी और भ्रष्ट रहा है. इसका असर हमारे व्यक्तित्व पर भी पड़ा ही होगा. आज मैं तय कर पाता हूँ, गलत क्या था और सही क्या. पर आठ, दस साल की उम्र में कहाँ इतनी  समझ थी. बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ इस विषय पर. लिखूंगा भी. आज बस ये कहना है कि बच्चों को समझिए, उनके साथ वक्त गुजारिये. वो आपको किताबों के पन्ने पलटते हुए देख सकें, वो आपको खुल कर हँसते हुए देख सकें, आपको गाते-गुनगुनाते देख सकें, आपका आत्मविश्वास, आपकी नरमी, आपकी संवेदना उन्हें  छू पाए...तभी, सिर्फ तभी आप बचा पाएंगे इस समाज को, दुनिया को, बचपन को!! उन्हें हर तरह की फिल्में दिखाइए, किताबें दीजिए. नम्बर लाने के दवाब से मुक्त रखिए. ज़िन्दगी को पढ़ना ज्यादा ज़रुरी है. सपने देखने का हौसला दीजिए वगैरह, वगैरह...चार दिन बाद आज थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा कुछ बात की जाए, आप सबसे. #आज इतना ही

#हीरेंद्र

Tuesday, May 22, 2018

छोटी कविता

जनता जो भीड़ है
भीड़ जो गुम है..
गुम बोले तो बेबस
बेबसी यानी घुटन
घुटन बोले तो अंत
अंत तो मौत है

भीड़ ने एक चेहरा चुना
चेहरे पर एक पहरा चुना
पहरेदार जो क़ातिल है
क़ातिल जो शातिर है
क्या शातिर का अंत होगा?
अंत में तो जनता है..

जनता जो भीड़ है
भीड़ जो गुम है #हीरेंद्र

Saturday, May 12, 2018

मदर्स डे पर एक जरूरी बात


माँ बनने के अहसास को साहित्य और संस्कार ने बड़ा ही खूबसूरत बताया है. जरूरी नहीं कि आप इससे सहमत हो पर एक बड़ी आबादी इस बात को स्वीकार कर चुकी है. आज मैं कविता, कहानी या तस्वीर नहीं लगा रहा हूँ.. बल्कि एक बेसिक से सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश में यह पोस्ट लिख रहा हूँ.

बात मातृत्व सुख की हो रही थी. हाल के वर्षों में मैंने अपने दोस्तों और परिजनों के बीच एक चिंताजनक बात नोटिस की है. मैंने अनुभव किया है कि तीस की उम्र के बाद अधिकाँश लड़कियों को माँ बनने में दिक्कत हो रही है. पैंतीस की उम्र तक पहुंचते पहुंचते तो उनकी बेचैनी इतनी बढ़ जाती है कि वे अवसाद में भी चली जाती हैं. वो जहां जाती हैं बस उनसे यही सवाल पुछा जाता है कि- गुड न्यूज़ कब दे रही हो? जोड़ता चलूँ कि समाज बदला ज़रूर है लेकिन, आज भी किसी औरत का बाँझ होना उसे हीन ग्रंथी से भर देता है!

जब मैंने इंटरनेट पर इस विषय में कुछ लेख खंगाले तो जाना कि आज की लाइफस्टाइल  का असर माँ और पिता बनने की क्षमता पर भी हुआ है. यह भी पढ़ा कि अगर 30,32 की उम्र तक गर्भ धारण न किया जाये तो आगे मुश्किल आती है. यह भी पढ़ा कि दुनिया की 95 प्रतिशत स्त्री तीस से पहले ही मां बन जाती हैं.

बहरहाल, जब मैं समाधान की तरफ गया तो पाया कि अनुशासित जीवन शैली, संतुलित आहार, व्यायाम आदि के जरिये हम यह सुख तीस के बाद भी पा सकते हैं. लेकिन, आज हम सब अपने हेल्थ को लेकर कितने सचेत हैं यह आप खुद तय कर लीजिये.

समय की मांग यह भी है कि कई बार पति-पत्नी दोनों ही नौकरी कर रहे होते हैं. ऐसे में कई बार बच्चे की ज़रूरत को कुछ वर्षों के लिए टाल भी दिया जाता है. और जब वे बच्चे की सोचते हैं तब उन्हें लंबा समय लग जाता है! बॉलीवुड में या कुछ कोर्पोरेट इंडस्ट्री में सरोगेसी का चलन इसलिए भी बढ़ता जा रहा है! आम आदमी सरोगेसी या ऐसी तकनीक से अभी बहुत दूर है. हां किसी बच्चे को गोद लेना भी एक अच्छा विकल्प है! इन सवालों के बीच मैं इस बात से भी सहमत हूँ कि माँ बनना या नहीं बनना आपकी अपनी च्वाइस है.. लेकिन,  जानकारी तो जरूरी है न?  #हैप्पी मदर्स डे #हीरेंद्र

Friday, May 11, 2018

पिताजी का फोन आया!

मोबाइल मेरा मुस्कुराया
पिताजी का फोन आया..

मुझसे पहले ही बोल बैठे
जुग जुग जियो मेरे प्यारे बेटे
और बताओ क्या ख़बर है
कैसा मौसम, कैसा मन है?

हमने सब बढ़िया बताया..
पिताजी का फोन आया..

उम्र 80 पार हैं वो
ज़िंदगी का सार हैं वो
आवाज़ में अब भी रवानी
पास उनके कई कहानी

बुझा सा मेरा मन हर्षाया
पिताजी का फोन आया..

मन मेरा बचपन में लौटा
मेरा अंबर उनका काँधा
संग में जाता जिस भी रस्ते
बाँहे पसारे लोग मिलते

भीतर तक सब है समाया
पिताजी का फोन आया..

दूर हूँ मन में न लाना
तेरा दिल ही है ठिकाना
माँ बहुत है याद करती
जब समय हो मिलने आना..

और सुनाओ क्या खाया?
पिताजी का फोन आया
पिताजी का फोन आया! #हीरेंद्र

Thursday, May 10, 2018

गीतकार कैफ़ी आज़मी को जानिये उनकी बेटी शबाना आज़मी की ज़ुबानी

हीरेंद्र झा, मुंबई। 10 मई को सुनहरे दौर के मशहूर शायर और गीतकार कैफ़ी आज़मी साहब की पुण्यतिथि है। हाल ही में जागरण डॉट कॉम से एक ख़ास बातचीत में उनकी बेटी और दिग्गज अभिनेत्री शबाना आज़मी ने अपने पिता कैफ़ी से जुड़े कई दिलचस्प किस्से साझा किए। क्या आप जानते हैं 'मकान' जैसी लोकप्रिय नज़्म लिखने वाले कैफ़ी साहब ज़िंदगी भर किराये के मकान में ही रहे, वो कभी अपने लिए एक घर नहीं खरीद सके। 

बीसवीं सदी के महानतम शायरों और गीतकारों में से एक कैफ़ी आज़मी अपने आप में एक व्यक्ति न होकर एक संस्था थे। उनकी रचनाओं में हमारा समय और समाज अपनी तमाम खूबसूरती और कुरूपताओं के साथ नज़र आता है। पर क्या आप जानते हैं कलम के इस जादूगर को अपने कलमों से बेहद प्यार था? इस बारे में शबाना बताती हैं कि- ''अब्बा के पास कोई और पूंजी नहीं थी, सिवाय उनके कलमों के। उन्हें अलग-अलग तरह की कलमें जमा करने का शौक था। 'मोर्बलांग' पेन उनका फेवरेट था। वो अपने पेन को ठीक कराने के लिए विशेष रूप से न्यूयॉर्क के फाउंटेन पेन हॉस्पिटल भेजते थे और वो बड़े प्यार से अपने कलमों को रखते थे। बीच-बीच में उन्हें निकाल कर, पोंछ कर फिर रख देते। मैं जहां भी जाती उनके लिए कलम ज़रूर लाती। हर बार उनको कलम ही चाहिए होता। कलमों के प्रति कमाल की दीवानगी थी उनमें।"




शबाना आगे कहती हैं कि- "कैफ़ी आज़मी एक ख़ास तरह के कागज़ पर अपने फेवरेट कलम से लिखते थे। उनका राइटिंग टेबल भी ख़ास तरह का हुआ करता। लेकिन, अब्बा की एक आदत थी। जब भी कुछ लिख कर भेजने की डेडलाइन होती तो उस दिन उन्हें सबसे ज्यादा चिंता अपने कमरे और टेबल की साफ़-सफाई की होती। वो अपना दराज़ साफ़ करते, तभी उनको याद आता कि कई ख़त के जवाब भी उन्होंने नहीं दिए। तो वो हर उस काम में लग जाते जो उस वक़्त गैर-ज़रूरी होता। लेकिन, सच तो यही था कि ये उनके रचनात्मकता का ही एक हिस्सा था। उनके ज़ेहन में उस विषय पर चीजें चलती रहतीं और साफ़-सफाई करते हुए ही वो गीत रच लिया करते।"


शबाना अब्बा को याद करते हुए कहती हैं कि- "उनके कमरे का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता। हमारे घर में कभी कोई रोक-टोक नहीं हुआ करती कि अब्बा लिख रहे हैं तो उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना। हम बेधड़क उनके कमरे में चले जाते और वो बड़े प्यार से हमारे हर तरह के फ़िज़ूल सवालों का जवाब दिया करते।" शबाना के मुताबिक- जब भी कैफी साहब कुछ लिखते तो ये नहीं कहते कि ये लिखा सुनोगी, वो हमेशा कहते कि एक नज़्म हुआ है सुनोगी? जैसे वो कुछ नहीं लिखते बल्कि कोई अदृश्य ताकत है जो उनसे ये सब लिखवाती है। प्रोग्रेसिव राइटर्स के अगुआ लोगों में रहे कैफी के बारे में शबाना ने बताया कि उनके कथनी और करनी में कभी कोई अंतर नहीं रहा। अगर वो महिलाओं के हक की बात लिखते थे तो वो घर-परिवार, समाज की महिलाओं को भी बराबरी का दर्ज़ा देते थे।

शबाना कहती हैं कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में कैफी साहब को जब ब्रेन हेमरेज के बाद पैरालिसिस अटैक हुआ तो उन्होंने अपने गांव मिज़वां जाने की इच्छा जताई। उस गांव में जहां सड़कें नहीं थीं, बिजली नहीं था, औरतों की स्थिति काफी दयनीय थी तो वहां भी वो चुप नहीं बैठे। मिजवां में उन्होंने उन सबके हक़ में इसी नाम से एक एनजीओ शुरू किया और तब जब उस गांव का नाम तक लोग नहीं जानते थे आज उसे सब जानते हैं, वहां चीज़ें धीरे-धीरे बदलनी शुरू हुईं। जो कैफ़ी आज़मी जीवन भर अपने लिए एक घर नहीं बना सके उन्होंने कई घरों में रौशनी पहुंचाने का काम किया।
बता दें कि गीतकार के रूप में कैफी आज़मी की कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं - शमा, गरम हवा, शोला और शबनम, कागज़ के फूल, आख़िरी ख़त, हकीकत, रज़िया सुल्तान, नौनिहाल, सात हिंदुस्तानी, अनुपमा, कोहरा, हिंदुस्तान की क़सम, पाक़ीज़ा, हीर रांझा, उसकी कहानी, सत्यकाम, हंसते ज़ख्म, अनोखी रात, बावर्ची, अर्थ, फिर तेरी कहानी याद आई..आदि।
बता दें कि यह लेख मूल रूप से दैनिक जागरण की न्यूज़ वेबसाइट जागरण डॉट कॉम पर प्रकाशित हुई है! 

Tuesday, May 08, 2018

'परफ्यूम'

इस हिस्से में पढ़िये एक छोटी सी कहानी- 'परफ्यूम'

आज लिफ्ट में एक लड़की मिली. बहुत आम बात है. लेकिन, ख़ास बात ये थी कि जो परफ्यूम उसने लगा रखी थी उसकी सुगंध मुझे जानी-पहचानी लगी. मैंने बिना देरी किये उससे उसके परफ्यूम का नाम पूछ लिया! पहले तो वो थोड़ी झिझकी फिर स्माइल करते हुए उसने अपने परफ्यूम का नाम बता ही दिया. थैंक्यू कह कर मैं लिफ्ट से निकला फिर फोन बुक से खोज कर एक नंबर निकाला..एक पुरानी दोस्त को फोन मिलाया और कहा- एक बात कहूं, तुम्हारी गंध मुझे अब भी याद है! उसने बड़ी ही मासूमियत से पूछा- और मैं? उसके बाद फोन का नेटवर्क चला गया और परफ्यूम की वो खुशबू भी!  #हीरेंद्र


अब आये हैं ब्लॉग पर तो कुछ प्रेमपत्र भी पढ़ते जाइए. ये प्रेम पत्र मैंने किसी प्रेमिका के नाम नहीं बल्कि समय ने जीवन के नाम लिखे हैं!

यह रहा लिंक:  प्रेमपत्र (लवलेटर) 

Wednesday, May 02, 2018

कुत्ते गाड़ियों के पीछे क्यों भागते हैं? यह रहा जवाब..

मैंने कई बार दिल्ली में और अब मुंबई में रहते हुए ऐसा देखा है। आपने भी देखा होगा कि कभी-कभी कोई कुत्ता गाड़ी देखते ही उसके पीछे आक्रामक होकर दौड़ने लगता है। भले ही गाड़ी उसकी पकड़ में न आये वो भौंकता हुआ जी-जान से उसे पकड़ने की कोशिश करता है। मैं अक्सर सोचता था कि आख़िर ऐसा क्यों है?

दरअसल, एक दिन मैने देखा कि एक van नुमा सरकारी गाड़ी आयी। कुछ लोग पकड़-पकड़ कर सड़कों पे पलने वाले आवारा कुत्तों को वैन में डाल रहे हैं। मैं जहाँ कपड़े प्रेस करवाता हूँ..वहाँ भी एक कुत्ता बैठा रहता है। पालतू तो नहीं है पर आवारा भी नहीं। यही समझिए कि कुत्ते और धोबी का पारस्परिक कोई संबंध है। दिन में धोबी जब एकाध घण्टे को भोजन या सुस्ताने के लिए अपनी दुकान से हटता है..तब कुत्ते की जिम्मेदारी होती है कि वो उसकी दुकान की सुरक्षा देखे। ऐसा दोनों में समझौता हुआ हो शायद। धोबी भी उसे रोटी, ब्रेड की कमी नहीं रखता।

खैर...वैन की बात हो रही थी। सो, धोबी के कुत्ते को भी पकड़ लिया गया। संयोग से मैं तभी वहाँ से गुज़र रहा था। धोबी ने मुझे बताया कि वो वैन वाले ले गए उसके केजरी को। मैंने ही प्यार से उस कुत्ते को यह नाम दिया है। खैर..मैंने कहा रुको देखता हूँ। मैंने देखा वैन में 6,7 कुत्ते ठुंसे पड़े हैं। मैंने वैन वालों से कहा कि भैया केजरी हमारा दोस्त है, इसको छोड़ दो।

एक सज्जन टाइप स्टाफ गाड़ी से उतरे। उन्होंने बताया कि साहब सब को छोड़ देंगे रात में। वो क्या है न इन कुत्तों की नसबंदी करनी है...आदेश आया है। उसने मुझे भरोसा दिया कि सबको रात होने तक वापस यहीं पहुंचा देंगे...तो फिर मैं लौट आया। अब, मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल गया था- कुछ कुत्ते गाड़ियों के पीछे क्यों भागते हैं? #सच्चीकहानी #हीरेंद्र

Sunday, April 29, 2018

नेता जी

छोटी सी एक कहानी

वे बहुत सुखी लोग हैं..बाढ़ राहत का जायजा लेकर और आसमान में हेलिकॉप्टर बाजी करके अभी अभी लौटे हैं..चैनल बदल-बदल के अपनी शक्ल टीवी पर देखकर आनंदित हो रहे हैं..आज वे चाय नहीं लेंगे, लाशें देख कर आए हैं सो शराब ही ठीक है! आज उन्हें अकेले नींद नहीं आएगी इसलिए सुन्दर सा इंतजाम करने का इशारा वो पहुँचते ही कर चुके थे..अब उन्हें बस कल सुबह की अखबार का इंतज़ार है..रिपोर्टर ने वादा किया था - इस बार बड़ी फोटो आएगी आपकी! #हीरेंद्र

One liner

इस हिस्से में पढ़ियेगा मेरी लिखी कुछ चुनिंदा वन लाइनर.. #हीरेंद्र

*तुम्हारा carbon dioxide मेरा oxygen बन जाए तेरे इतने करीब आना चाहता हूँ 😘 #chemistry of love

* नहीं अकेले नहीं हूं, दीवार पर एक छिपकली भी है! 

* अरे पगली जब मैं तेरे होंठों को चूम सकता हूं तो तेरा जूठा क्यों नहीं खा सकता!

* दीवार पर टंगी एक तस्वीर इन दिनों खूब उलाहने देती है, आखिरकार स्टेशन जाकर एक टिकट कटवा ही ली.

* घर बार छोड़ कर बेटा शहर में टिका है कि एक नया घर बनाएगा, घर से घर तक की इस यात्रा में पाना कम और खोना ज्यादा है! 

* आज चाँद कान की तरह दिख रहा है, लगता है वो सुनने के मूड में है! 

* फेसबुक पर कुछ साथ हमेशा प्रवचन मोड में रहते हैं, कभी मिलने का अवसर आया तो आधा किलो बूंदी के लड्डू और गेंदे फूल का माला लेकर जाऊँगा! 

* भूखे मरने से अच्छा है, थप्पर खाकर मर जाना #एक मच्छर की ख्वाहिश 

* बड़ा वही है जो जानता है कि कोई छोटा नहीं!

* जब मैंने खुद को स्वीकार कर लिया है..तो तुम मुझे स्वीकार करो या न करो इस बोझ से मैं मुक्त हो गया हूं।

* चैन से सोने के लिए कई बार नींद तक का सौदा करना पड़ता है...

*आवाजों के इस जंगल के बीच खड़े होकर जब स्वरों की मंशा पहचानना कठिन हो जाए तब समझ लेना चाहिए कि अब मुश्किल घड़ी आने वाली है!!!

* धृतराष्ट्र के राजा बनने पर कोई आपत्ति नहीं। लेकिन, एक राजा को धृतराष्ट्र नहीं होना चाहिए।

* वो 'शेर' है... सर्कस में काम करता है!

Thursday, April 26, 2018

दृश्य 1, 2 और तीन... निष्कर्ष आप निकालिये!

दृश्य 1

ऑटो रूकती है. लड़की ऑटो से उतर कर मोबाइल से किसी को फ़ोन मिला देती है. लड़का जेब से बटुआ निकालता है. ऑटो वाले को किराया देता है!!

दृश्य 2

वेटर हाथ में बिल लिए टेबल की तरफ बढ़ रहा है. लड़की ने उड़ती नज़र से उसे देखा और वाशरूम से आती हूँ कह कर चली गयी. लड़के ने जेब से बटुआ निकाला और बिल दिया।

दृश्य 3

रिक्शा रुकता है. दो लड़कियां नीचे उतरती हैं...कितना हुआ भैया?? बीस रुपये...कंचन सुन..मेरे पास है दस रुपये चेंज...तू अपना दे दे!! हाँ ये ले...

निष्कर्ष आप निकालिये. मैंने तो जैसा देखा, बता दिया!! #हीरेंद्र

Wednesday, April 25, 2018

एक प्रेमी की डायरी- हीरेंद्र झा


इस हिस्से में पढ़िये एक प्रेमी की डायरी के खोये हुए कुछ पन्नों में दर्ज़ दिलों को छू लेने वाले कुछ किस्से..


#एकप्रेमीकीडायरी 1


इन दिनों मुंबई का मौसम शाम के वक्त बेहद खुशनुमा हो जाता है.. ग़ज़ब की रोमांटिसिज्म है हवा में! कुछ बसंत का भी असर होगा ही.. और कुछ समंदर किनारे की रूमानियत. ओशो ने एक जगह कहा है कि इंसान के पास जब कुछ कहने को नहीं होता तब वह मौसम की बातें करने लगता है! पता नहीं क्यों पर उनकी इस बात से आज अहसमत हूँ ..बहुत कुछ है कहने को.. ठीक इस वक्त इस मौसम में यह भी अनुभव कर रहा हूँ कि काश मैं एक रेडियो होता और वो अपने सीने से लगाये मुझे सुन रही होती! 


#एकप्रेमीकीडायरी 2

कितनी भीड़ थी उस दिन इंडिया गेट पर। किसी तरह हमें थोड़ी सी जगह मिल पायी थी भूरे होते घास पर। तुम्हारे मना करने के बाद भी अपना रुमाल बिछा दिया था तुम्हारे बैठने को। जब तुम बैठी तो मन ही मन सरोजिनी नगर मार्केट के उस बूढ़े को शुक्रिया कहा जिसने ज़बरदस्ती मुझे 50 रुपये के 5 रुमाल बेच दिए थे। उस दिन ऑटो के बजाय 615 नम्बर की बस पकड़ कर घर गया था। अच्छा छोड़ो। मैं घास पर और तुम रुमाल पर थी। पास-पास होकर भी दूर। बार-बार चाय और चिप्स वाला हमें डिस्टर्ब कर रहा था। लेकिन, हम भी पक्के आशिक़ थे। सब झेलते हुए बैठे रहे। तुम मेरी नॉनसेन्स सी बातों पर भी किस अदा से मुस्कुरा लेती थी। तुम्हारी इस हुनर का तो मैं आज भी कायल हूँ। कितनी देर बैठे रहे थे हम। फोन आने पर जब तुमने अपनी मम्मी को बताया कि लाइब्रेरी में हूँ तो पहली बार लगा कि इश्क़ में झूठ भी बोलना पड़ता है। वो आदत तुम्हारी आज तक नहीं गयी। नहीं तो तुम इतनी आसानी से नहीं कहती कि जाओ अब हमारे बीच कुछ भी नहीं बचा। 



#एकप्रेमीकीडायरी 3


उसकी ये आदत बहुत पुरानी थी कि जाते हुए वो कभी पीछे पलटकर नहीं देखती थी. लेकिन, मेरी आदत ऐसी कि जाते हुए जब तक वो नज़र से ओझल न हो जाये मैं उसे एकटक देखता रहता! आखिरी बार वो जब मुझसे मिली थी तो अपना शादी का कार्ड लेकर आई थी. उसके साथ उसकी एक सहेली भी थी. उसने मेरा हाथ पकड़ कर जोर देते हुए कहा कि तुम्हें आना है मेरी शादी में! मैंने हौले से कहा था कि जरूर आऊँगा.. मैं गया भी. लेकिन, पूरे कार्यक्रम के दौरान मैंने खुद को उसकी नज़र से बचाकर रखा. फिर चुपके से खाने के बाद वहाँ से निकल गया. कई दिनों बाद उसका एक मैसेज मिला मैं जानती थी कि तुम नहीं आओगे मेरी शादी में..मैंने बस यही लिखा कि गुलाबी शेरवानी में तुम्हारा दुल्हा बहुत डैशिंग लग रहा था. बधाई! उसके बाद मैंने उसके किसी सवाल का जवाब नहीं दिया. बारह साल बाद वो फेसबुक पर मिली. ज़ाहिर है कुछ बातें भी हुई.. वो मेरे सैकड़ों फेसबुक पोस्ट्स पढ़ चुकी थी.. इस बीच मैंने अनुभव किया कि अब वो बदल गई है.. जाते हुए कभी मुड़कर पीछे न देखने वाली वो लड़की अब पलटकर देखना चाहती है?? 


#एकप्रेमीकीडायरी 4


साँझ चुपके से आकर बगल में बैठ गई. मेरे कानों पर उसने अपनी ऊंगलियां कुछ यूं फेरी कि दूर से आ रही मंदिर की घंटियों का नाद मेरे चारों तरफ गूंजने लगा! मेरी पलकें मूंद गई और सांसों में धूप और अगरबत्ती की महक भरने लगी. सजल होते नैनों ने पंचामृत की कमी पूरी की. मेरे होंठ फूलों की तरह खिल उठे. और हाँ यह साँझ विदा लेने से पहले तेरी याद का प्रसाद मेरी झोली में डालकर गयी!

#एकप्रेमीकीडायरी 5


हँसते हुए वो अक्सर अपना मुँह ढक लिया करती. कुछ दिनों के बाद वो फिर जब ऐसा करने की कोशिश करती तो मैं उसका हाथ पकड़ लिया करता, ताकि वो अपनी हँसी को न ढक सके! धीरे-धीरे उसकी ये आदत जाती रही..अब वो खुलकर, ठहाके लगाकर, बेपरवाह होकर हँसती है..आज फिर जब मैंने उसे हँसते हुए देखा तो लगा कि जैसे कई साल से कच्चा -पक्का लिखने वाला मैं आज सच में एक जीवंत कविता रच पाया हूँ! 

#एकप्रेमीकीडायरी 6

मन्दिर गया था। भगवान की मूरत काफी देर तक देखता रहा। फिर ये विचार आया मन में कि तमाम लोग तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवी, वामपंथी साथी जो मुझसे जुड़े हैं वे मूर्ति पूजा का विरोध क्यों करते हैं? किसी ने मुझे कभी इसका ठोस जवाब नहीं दिया। बस ये ज़िद किये बैठे हैं कि विरोध करना है। मैंने बहुत सोचा कि सदियों से हम देवी,देवताओं की मूर्ति को पूजते आ रहे हैं, कोई तो रहस्य होगा ही इसमें। ये बेवजह तो नहीं हो सकता। मैंने अनुभव किया कि बचपन से हम जितने चेहरे देखते हैं, वो उम्र के साथ-साथ बदलते जाते हैं। जब मैं छोटा था तो मेरी माँ जैसी दिखती थी, आज वैसी नहीं दिखती। बाबूजी भी बूढ़े हो चले हैं। मेरा ख़ुद का चेहरा काफी बदल गया। आस पास के दोस्तों का भी। कुछ चेहरे तो इतने बदल गए कि मुखौटे भी उनके सामने ओरिजिनल लगते हैं। लेकिन, जैसी छवि इन देवी-देवताओं की बचपन में देखी वे आज भी वैसे ही दीखते हैं। मेरे दादाजी ने भी माँ दुर्गा का यही रूप देखा होगा, मेरी आने वाली पीढ़ियां भी उनका यही रूप देखेगी। यानि की तमाम बदलते हुए चेहरों के बीच ये मूर्तियां नहीं बदली। ये एक सी बनी रहीं। इसलिए ये एक तरीके का आस्था है कि आपके पास सब बदल जाएगा पर भगवान नहीं बदलेंगे। ये हमेशा आपको वैसे ही मिलेंगे। ख़ामोशी से आपको सुनते हुए, आपमें एक अदृश्य ऊर्जा भरते हुए। बहुत कुछ मन में झरने सा बह रहा है, सोचा कुछ बूंदें आप पर भी छिड़क दूँ। बहुत प्यार। बस इतना ही।

#एकप्रेमीकीडायरी 7

बहुत देर तक कागज़ पर एक नाम लिखकर उसे एकटक देखता रहा. अचानक वो नाम धीरे-धीरे हवा में ऊपर उठने लगा. मैं भी उसके साथ-साथ उड़ चला.. कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं. बस इतना अहसास है कि स्याह अँधेरे आसमान में हम उड़े चले जा रहे थे. एक नाम जुगनू की तरह जगमगाता मुझे रास्ता दिखा रहा था. कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं. बस इतना अहसास है कि वो नाम मेरी साँसों में एक ताज़गी, एक सुगंध भर रहा था. मैं बेसुध था. मैंने उसे छूने की बहुत कोशिश की. वो मेरी नज़र के सामने ज़रूर था लेकिन, मेरी पहुँच से बहुत दूर. तभी खिड़की से आती हवा ने कागज़ के पन्ने को फड़फड़ा कर पलट दिया. एक शून्य लिए कोरा कागज़ मेरे सामने था. जिस पर सिर्फ एक नाम लिखकर मैं फिर से उड़ सकता था.

और अंत में.. 


रात नींद देर से आती है इनदिनों..एक ख्वाब मेरे बगल में लेट मुझे निहारता रहता है! कुछ पूछना चाहूँ तो करवट बदल लेता है...मौन हो जाऊं तो थपकी देकर मुझे सुलाने की कोशिश करता है.. तब ज़हन की शाखों पर कुछ फूल खिल आते हैं..कमरे में खुशबू फ़ैल जाती है! नींद आ जाती है! 

(कल रात लिखी डायरी में से) अपना ख्याल रखिएगा..

चलते चलते 

कई साल बाद मालूम हुआ कि वो लिखने लगी है...मैंने ढूंढ कर उसकी कुछ रचनाएं पढ़ीं..लगा जैसे कि मेरी डायरी कोई गुम हुई हो कभी..अब मिल गयी है। #हीरेंद्र




Tuesday, April 24, 2018

हीरेंद्र की गुगली यानी मस्ती का डोज़!

इस हिस्से में पढ़िये कुछ ऐसी ही दिलचस्प गुगली. क्योंकि आखिरी पंक्ति में आप जान पायेंगे कि आखिर बात किसकी हो रही थी! 

#गुगली 1

पिछले सात साल से वो साये की तरह मेरे साथ रहा.. मैं भी उसके बिना एक पल नहीं टिक सकता था इस दुनिया में! सच कहूँ तो जब भी मुझे जितने रुपयों की ज़रूरत हुई उसने बिना किसी सवाल के मुझे   खर्चे के लिए दिए... आज जब मैंने उसे गौर से देखा तो पाया कि अब वो फटेहाल हो गया है.. उसमें वो पहले सी चमक नहीं रही... अब ये मुझे पुराना और बदसूरत लगने लगा है.. अब इस साथी से विदा लेने का समय आ गया है.. हाँ, अब इसे बदलने का समय आ गया है.. #बैंक जाकर नए एटीएम कार्ड के लिए फॉर्म भर आया हूँ... दस दिनों में नया कार्ड आ जाएगा!



  

#गुगली 2


कभी भी बोल उठती हो तुम..आते-जाते, सिसकते-मुस्काते, सोते-जागते, रास्तों पर, घर में या बीच सफर में...कभी-कभी ऐसे कांपने लगती हो जैसे कोई भूचाल सा आ गया हो..कभी-कभी शोर में तुम्हे सुन नहीं पाता, कभी-कभी अनसुना कर देता हूँ तो कभी अनदेखा भी..कभी ख़ामोशी से कोई सन्देश ले आती हो...कभी खुशी तो कभी परेशानी भी दे जाती हो! तुम्हारा होना अब आदत है मेरी...और हाँ, जब उसका नाम तेरे गाल पर पढ़ता हूँ तो तेरी मिलकियत सुहाने लगती है...ऐसे ही मेरी ज़िन्दगी में संवाद, संगीत और समर्पण के रंग भरते रहना...मेरे मोबाइल तुम्हे ढेर सारा प्यार :) 


#गुगली 3


आज वो बहुत दिनों बाद मेरे घर आई थी। भला आती भी कैसे सरपंचों ने उसे चरित्रहीन बताकर उस पर पाबंदी लगा रखी थी। मुझे हमेशा से लगता था कि वो गंगा की तरह पवित्र है पर मैं उसके लिए कुछ न कर सका! आज जब वो आई तो हम एक दूसरे को काफी देर तक तकते रहे। नए कपड़ों में वो कुछ ज़्यादा ही लुभा रही थी। चलो माना कि दो मिनट वाली बात झूठी है पर गर्म होकर तैयार होने में उसे ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। मैंने भी बातों में ज़्यादा वक़्त जाया न किया। अपने होंठ उसके दहकते होंठों पर रख दिए। एक भूखा प्रेमी और करता भी क्या? #Welcome Maggie. अब दुबारा पढ़िए। हम मैगी की ही बात कर रहे थे :)


(यह तब लिखी थी जब बैन होने के बाद मैगी फिर से मार्किट में आई थी)




#गुगली 4


कई दिनों से उसके उदास चेहरे की झाईयां मुझे खटक रही थीं.. रोज़ सोचता लेकिन, किसी न किसी वजह से मेरा ध्यान कहीं और रम जाता. रात को सोते समय वो अपनी सुस्त रफ्तार से फिर मुझे उलाहना देता और मैं उसे अनदेखा कर सो जाता! सुबह की अफरा-तफरी में फिर वो तन्हा डोलता रहता और हम भी उसे भूले रहते! पर आज संडे ने ये मौका दिया कि उसकी उदासी दूर कर सकूँ! कपड़े से हौले हौले उसके बाजुओं को दुलराया, सहलाया..जमी धूल की परतें हटाईं, उसके चेहरे से झाईंयां मिटाईं..फिर गीले कपड़े से उसे चमकाया..तब जाकर फिर वो मुस्कुराया! अब वो मदमस्त होकर नाच रहा है. मुझे शीतलता प्रदान कर रहा है.. जी, मैं अपने पंखें की बात कर रहा हूँ. #हीरेंद्र

Sunday, April 22, 2018

अच्छे लोग

वे बहुत अच्छे लोग हैं..उनके घर का मुखिया सुबह सवेरे टहल कर आता..चाय के साथ अखबार निपटाता और फिर चमकते-इठलाते दफ्तर को निकल जाता..बच्चे कॉलेज चले जाते और बच्चों की माँ लग जाती घर को करीने से सजाने, संवारने में..सुबह जो सबको टिफिन में बांधा था, उसी से पेट भर कर कभी फोन तो कभी टीवी देखते शाम का इंतज़ार...साहब दफ्तर में हर घंटे पर एक सिगरेट पीते ..और आठ सिगरेट फूँक कर घर लौट आते..बच्चे भी कॉलेज से लौटकर म्यूजिक क्लास और स्विमिंग के लिए निकल जाते...देर शाम सब इकट्ठे होकर कुछ वक्त साथ बैठते..खाते- गाते- सो जाते! उनकी अपनी एक अलग दुनिया है..उन्हें किसी अमिताभ, सचिन, मोदी, दामिनी या गुड़िया से कोई विशेष मतलब कभी नहीं रहा..कल पता चला कि वो जुलाई के बाद कनाडा शिफ्ट हो रहे हैं..उन्हें इंडिया में अब मन नहीं लगता..आस-पास के लोग बताते हैं कि इनका कभी किसी से झगड़ा नहीं हुआ.. इनके घर से कभी किसी ने तेज आवाज़ नहीं सुनी..वे सच में बहुत अच्छे लोग हैं! (जो लिखना चाहता था, वो न लिख पाया..पर आप समझ सकें तो एक तस्वीर यह भी है )

कविता- गुड टच, बैड टच


"हम हैं बच्चे आज के बच्चे
हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे
हम जानते हैं झूठ और सच
हम जानते हैं गुड टच, बैड टच

मम्मी, पापा जब गले लगाते
इसको ही हम गुड टच कहते
बैड टच होता है वो
हमारे प्राइवेट बॉडी पार्ट्स छूता है जो

बच्चों, हमारे लिप्स, चेस्ट, कमर के नीचे...आगे या पीछे ये होते हैं हमारे प्राइवेट बॉडी पार्ट्स

कोई बैड टच करे तो शोर मचाओ
जाकर मम्मी, पापा को बतलाओ #हीरेंद्र

ये poem लिखी थी कभी मैंने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए। हो सके तो अपने बच्चों को रटवा दीजियेगा।

रेप के विरोध में सोशल मीडिया पर लगातार लोग लिख रहे हैं. यह एक अच्छी बात है. बस यह रफ़्तार और आवाज़ थमनी नहीं चाहिए. रेप को लेकर जो कुछ नए कानून की बात आई है उस सन्दर्भ में यह कहना गलत न होगा कि सोशल मीडिया के दबाव का भी कुछ न कुछ असर हुआ ही होगा .

मैंने खुद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को ट्वीट किया था कि स्वच्छता अभियान के तर्ज पर रेप के खिलाफ़ भी मुहीम शुरू कीजिये. मैं नहीं जानता हमारे लिखने, बोलने से कितना फर्क पड़ता है. लेकिन, यह ज़रूर जानता हूं कि लिखते/बोलते रहना होगा!

इस विषय पर जो मैंने पहले दो भागों में लिखा है, वो आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं..

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता- हीरेंद्र झा

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता (भाग 2) - हीरेंद्र झा







Saturday, April 21, 2018

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता (भाग 2) - हीरेंद्र झा

उस दिन मैं मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन पर था. मुझे जबलपुर की ट्रेन पकड़नी थी जो रात के 11 बजे खुलनी थी. मैं वहां 8 बजे ही पहुंच गया. ज़ाहिर है बहुत समय था मेरे पास. सोचा कुछ खा-पी लेते हैं और यही सोचकर मैं स्टेशन से बाहर निकल कर दूसरी तरफ को बढ़ गया. जो लोग मुंबई से बाहर के हैं उन्हें यह बता दूँ कि यह जो इलाका है यह अंग्रेजों ने बनाया है . ऊँची ऊँची चर्चनुमा बिल्डिंगें हैं और स्टेशन परिसर भी भव्य चर्च की किसी पुरानी इमारत सा है. रात के इस वक्त काफी अंधेरा पसरा था. हल्की हल्की रोशनी कहीं-कहीं से छिटक कर आ रही थी.  स्टेशन के ठीक राईट साइड में कई पेड़ भी लगे हैं कतारों से.

मैं जब थोड़ा आगे बढ़ा तो मैंने देखा कि पेड़ के नीचे एक लड़की खड़ी है, यही 17, 18 साल की होगी. मुझे देखकर उसने अदा से मुस्कुराने की कोशिश की. मैं थोड़ा झिझका फिर आगे बढ़ गया. दस कदम पर दूसरी लड़की मिली, वो भी मुझे देख कर स्माइल करने लगी. मैं अनदेखा कर फिर आगे बढ़ गया और इस बार तीसरी लड़की ने मुझे टोक ही दिया. ऐ चलता क्या? बगल में होटल है. एक हजार लूंगी, पूरा मज़ा दूंगी! अब तक मुझे समझ आ चुका था कि ये सब लड़कियाँ कौन हैं? मैं तीसरी लड़की के पास रुक गया. मैंने कहा- चलो. वो मेरे साथ हो ली. मुझे मालूम है कि स्टेशन के दूसरी तरफ गेट पर चाय की एक अच्छी दूकान है. मैंने कहा - चलो चाय पीते हैं पहले. उसने मुझे गौर से देखा और साथ चल पड़ी!

चाय पीते हुए मैंने उससे सवाल किया कि कब से कर रही हो ये सब? उसने कहा जब 12 साल की थी तब से. अब क्या उम्र होगी तुम्हारी? उसने कहा तुम्हें मालूम है न लड़कियों से उम्र नहीं पूछते. मैंने कहा नहीं मुझे ये नहीं मालूम. 'साला बड़ा शाना है रे' कह कर उसने मुझे गाली दी और कहा 26 साल. मैंने कहा- ओह, पूरा वनवास भुगत लिया है तुमने! 'बनवास' कह कर वो चौंकी? मैंने कहा हां अपने यहां वनवास 14 साल का ही होता है न जो तुम भुगत चुकी हो! 14 साल से इस पेशे में हो!



उसने कहा ज्यादा बात नहीं करने का. चाय खत्म कर और चल. तेरे बाद दो तीन को और निपटाने हैं! मैंने कहा कितना कमा लेती हो? उसने कहा दो ढाई हजार रोज़. कभी कभी सूखा भी रहता है. कोई पुलिस वाला मिल गया तो चवन्नी भी नहीं मिलती. फ्री में चाहिए बहन *** को!

तुम्हारी तरह कितनी लड़कियाँ होंगी इस इलाके में? साला तू सवाल बहुत पूछता है? चल न काहे को समय खराब कर रहा है. मैंने कहा कि ढाई हजार ले लेना मुझसे. निश्चिंत रहो. जो पूछता हूं बताओ. अब वो स्थिर हो गयी. मुझे लगा कि शायद उसको कोई संदेह है. मैंने पर्स से निकाल कर उसे पूरे पैसे दे दिए. अब वो थोड़ी सहज थी. मैंने कहा चलो दो घंटे हैं मेरे पास. कुछ खा लेते हैं. फिर हम वहां से एक टैक्सी लेकर कोलाबा की तरफ निकल गए. वेश्यावृति पर, उनकी समस्याओं पर, उनकी जीवन शैली पर उस लड़की ने बहुत कुछ बताया. बताया कि स्टेशन के आस-पास डेढ़ सौ लड़कियाँ हैं जो यह काम करती है. हम जहां उतरे उस इलाके के बारे में उसने बताया कि यहां तो पच्चास हजार से लेकर पांच लाख तक की रेट की लड़कियाँ मिलती हैं. उसने चिढते हुए कहा कि हमें तो पांच सौ और हज़ार देने में भी लोगों की फट जाती है! उस 'अजनबी' लड़की से बहुत बातें हुईं और फिर मैंने उससे विदा लिया और तय समय पर स्टेशन पहुंचकर अपनी ट्रेन पकड़ ली. उसने एक बार कहा- चलोगे नहीं? मैंने कुछ नहीं कहा..लौट आया!

खैर, उस दिन मुझे में समझ आया कि अगर ये लड़कियाँ न हो तो रेप की संख्या और भी कहीं ज्यादा होगी! देश के कई इलाकों में वेश्यावृति छुप कर ही सही पर हो रही है. और वहां ग्राहक भी पहुंच ही रहे हैं! देश, विदेश से लेकर नेपाल और बंगलादेश से लड़कियाँ यहां लायी जा रही हैं और इस धंधे में झोंकी जा रही हैं!

कहीं न कहीं सेक्स के प्रति जो पागलपन है उसने ही इन चकलाघरों को आबाद बनाकर रखा है. पता नहीं आप इन बातों को कैसे लेंगे पर मेरी राय तो यही है कि जो कमबख्त रेप करता है वो कम से कम इन वेश्वाओं के पास ही चला जाया करे.. कम से कम किसी मासूम की ज़िन्दगी तो तबाह नहीं होगी? एक तरीका यह भी हो सकता है रेप को रोकने का. अन्यथा न लीजियेगा, लेकिन, कुछ तो उपाय तलाशने ही होंगे न?

आज जब चार महीने से लेकर चार वर्ष तक की बच्ची के साथ रेप की खबर सुनता हूं तो बहुत ही असहाय सा महसूस करता हूं. ऐसे सिरफिरों से क्या कहेंगे आप? भला चार महीने या चार वर्ष की बच्ची को देखकर भी किसी को उत्तेजना हो सकती है? या फिर ये कहीं और की ठरक इन बच्चियों पर निकाला करते हैं?

इन मासूम बच्चों को हमें मिलकर बचाना होगा. सबसे ज़रुरी बात तो यह कि बच्चे के साथ हर वक्त उसके परिवार से कोई न कोई ज़रूर रहे. मां-बाप, दीदी, दादी कोई भी..बच्ची अकेली न रहे. अब समाज और सरकार तो कुछ कर नहीं रही तो हमें ही अब अपने बच्चों की सुरक्षा करनी है. क्या पता आपके सब्जी वाले से लेकर आपका धोबी या फिर आपका देवर ही आपकी मासूम पर बुरी नज़र रख रहा हो? बहुत भयावाह दौर है? तो किसी भी सूरत में बच्ची को अकेले ना छोड़े!



तीसरी बात, आज मोबाइल और इंटरनेट ने जाहिलों को एक ऐसी दुनिया दिखा दी है जहां वो फैंटेसी में रहने लगे हैं. पोर्न वीडियो में दिख रही लड़की और औरत को वो हर आस-पास की लड़कियों में देखने लगे हैं. उनके साथ वो सब कुछ करने के लिए उत्तेजित होने लगे हैं! यह बहुत ही खतरनाक स्तिथि है. इसे समझना होगा. वो बस एक मौके की तलाश में है कि वो अपनी खुमारी कहीं बहा सके. इन दरिंदों से हमें सचेत रहना होगा! इतनी बेरोजगारी और बेचैनी है इस देश में कि एक बड़ी आबादी सेक्स में ही सुकून तलाश रही है! इस मनोविज्ञान को समझना आसान नहीं पर अब इस पर खुलकर बात करने का समय आ गया है!

(यह लेख मैं जारी रखूँगा. मैं चाहता हूँ इस पर विस्तार से लिखूं और किसी समाधान तक पहुँचने की कोशिश करूँ)  
इससे पहले इस विषय पर मैंने कुछ और भी लिखा है, वो आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता- 1


Friday, April 20, 2018

ग़ज़ल

हिंदू पढ़िए तो कभी मुसलमान पढ़िए
फेसबुक पर मचा ये कोहराम पढ़िए...

औरों को नीचा दिखाने की होड़ में
ऐसी भद्दी गालियाँ न सरेआम पढ़िए...

पहचानिये मज़हब के इन ठेकेदारों को 
किसने सर पे उठा रखा है आसमान पढ़िए..

दोष दूसरों को देना बहुत आसान है
एक बार पहले अपना गिरेबान पढ़िए...

आग में घी नहीं, ज़ख्म को मरहम दीजिए
जहाँ कहीं हो आप अमन के कलाम पढ़िए...

#हीरेंद्र

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता- हीरेंद्र झा

रेप की ख़बरें तब से भयावह लगने लगी है, जबसे रेप का मतलब समझ में आया. मेरी एक दोस्त ने मुझे बताया था कि एक बार जब वो चौदह साल की थी तो उसके एक रिश्तेदार ने जो उसकी पिता की उम्र का था उसे छत पर अकेला पाकर उसके देह को गलत तरीके से छुआ था. उसने आगे बताया कि तब उसे बिल्कुल भी अहसास नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है पर वो आज बीस साल बाद भी उन पलों को याद कर सिहर उठती है. जब एक ‘बैड टच’ का इतना गहरा असर है तो सोचिये रेप के वक्त किसी लड़की/बच्ची/महिला/ की क्या हालत होती होगी?



वो असहनीय दर्द, वो बेबसी, वो दुर्गंध, वो जबर्दस्ती...शब्दों में बयां कोई क्या कर सकेगा? और छोटी-छोटी बच्चियों से जब रेप की ख़बरें आती हैं तो रूह तक कांप जाती है. उस दरिंदे की मानसिकता का अंदाज़ा कोई कैसे लगा सकता है? एक बच्ची जिसकी आंखों की चमक और मासूमियत आपको सुकून दे रही हो उसको देखकर किसी का हवस कैसे जग जाता होगा? सेक्स के लिए ये कैसा पागलपन है?



क्या पोर्न इसका जिम्मेदार है? या परवरिश में कोई चूक हो रही है? बहुत उलझा हुआ सा है सबकुछ! एक मेरी दोस्त ने बताया कि जब वो गर्ल्स हॉस्टल में रहा करती थी तो एक रात देर तक पढ़ाई करने के बाद जब उसने ताज़ा हवा के लिए खिड़की के बाहर  देखा तो यह देखकर चौंक गयी थी कि कैसे होस्टल का वाचमैन लड़कियों के कमरों की तरफ देख कर मास्टरबेट कर रहा है! दरअसल सेक्स को लेकर यह पागलपन हर तरफ फैला है? रेप के आंकड़े बड़े ही डरावने हैं! गाँव से लेकर शहर, कश्मीर से लेकर कर्नाटक तो हरियाणा से लेकर असम शायद ही इस देश का कोई ऐसा कोना बचा हो जहां मर्दों ने अपनी हवस का नंगा नाच न किया हो? 



कितनी ही दामिनी, गुड़िया और पापा की लाडली बिटिया ऐसी भी हैं जिनके साथ हुए वहशीपने को कभी आवाज़ न मिल सकी! उनकी चुप्पियों ने भी बलात्कारियों को दूसरे और तीसरे शिकार का मौका दिया ही होगा?




सेक्स की बात करें या सेक्स की आनंद की बात करें तो दो एडल्ट लोग पारस्परिक रूप से संबंध बनाते हैं और यह एक नेचुरल क्रिया है. माना कि मैरिटल रेप जैसी बातें भी हम सुनते हैं लेकिन, एक सामान्य आदमी कभी भी अपने पार्टनर के उदास होने, मूड खराब होने के दौरान उसके साथ सेक्स नहीं करता. सेक्स सहमती से ही संभव है, चाहे वो बेमन से ही हो. ऐसे में जो मानसिक रोगी बलात्कार तक कर लेते हैं उनके धधकते हुए जिस्मानी भूख या पागलपन को समझना आसान नहीं? क्योंकि एक स्तर पर गिरने या पहुँचने के बाद ही आप रेपिस्ट हो सकते हैं! रेप के आंकड़े बताने के लिए काफी है कि अपने देश का मर्द किस हद तक गिर गया है.




एक यह भी तर्क है कि लड़की ने ही भड़कीले कपडे पहनकर और अपना क्लीवेज दिखाकर या अंग प्रदर्शन कर रेपिस्ट (मर्द नहीं लिख रहा हूँ) को उकसाया. तो फिर 4 साल की बच्ची या 70 साल की बूढी महिला का रेप क्यों होता है? अगर तर्क यह है कि परिवार से दुश्मनी निकालने के लिए उक्त लड़की का रेप हुआ तो आखिर ऐसा क्यों है कि आपकी मर्दानगी बस इन महिलाओं और लड़कियों पर ही निकलती है? अगर रेप के पीछे कोई यह तर्क दे कि वो रात को अकेली सड़क पर क्या कर रही थी तो उनसे पूछना चाहूँगा कि वो सड़क पर है, किसी जंगल में नहीं और ज़ाहिर है कोई विवशता या आवश्यकता ही होगी तभी वो बेवक्त घर से निकली है! शराब पीने से लेकर खुलकर हंसने तक के तर्क बेईमानी है! क्योंकि किसी की मर्जी के खिलाफ उसको जब गले तक नहीं लगा सकते आप तो रेप कैसे कर सकते हैं?



कानून क्या कर रहा है? पैसा और पावर जिसके पास है वो सुरक्षित हैं, रेपिस्ट अगर नाबालिग है तो उसके लिए अलग कानून! आंकड़े बताते हैं कि रेप में अगर 20 प्रतिशत केस दर्ज होते हैं तो सज़ा सिर्फ 2 प्रतिशत लोगों को ही मिल पाता है. न्याय की तो बात ही मत कीजिये, न्याय इस देश में अब इतिहास की बात है. आँखों पर पट्टी बांधे कानून की तराजू उठाये उस मूर्ति को म्युजियम में रख दीजिये! ‘सत्यमेव जयते’ लिखने वाले और मानने वाले कब के इस दुनिया को अलविदा कह चुके.



बेटियों पर दुनिया भर की पाबंदियां, बेटों को हर कुछ करने की छूट. बेटों के स्कूल से लौटने पर चूल्हे पर गर्म गर्म सिकतीं रोटियां तो बेटियाँ ठंडा भी खा लेंगी! खुद मां-बाप तक जब बेटी और बेटे में फर्क करे तो उस समाज का चेहरा ऐसा ही विकृत होगा जैसा आज आपको दिख रहा है. ज़ाहिर है अपवाद होंगे पर वो मिसाल नहीं बनते!




हाल ही में एक दिन मैं शनिवार को अपने घर के पास समंदर किनारे यूँ ही घूमने को जा रहा था. मैं ऑटो में था. अक्सा बीच का इलाका थोड़ा सुनसान सा है. तभी मेरी नज़र साथ चल रही गाड़ी पर गयी! जिसे एक जेंट्स ड्राइव कर रहा था, एक महिला उसके बगल में बैठी थी. पीछे की सीट पर दो बच्चे थे. मुश्किल से दोनों बच्चों की उम्र नौ या दस साल की रही होगी. मैं यह देखकर दंग रह गया कि दोनों बच्चे सीट के पीछे छुपकर एक दूसरे को किस कर रहे हैं, जिस तरह से उन दोनों बच्चों के होंठ एक दूसरे से मिले हुए थे यह देखकर मैं भीतर तक हिल गया! हो सकता है वो भाई-बहन हो? या फिर दोनों के पेरेंट्स आपस में दोस्त या रिश्तेदार हो, लेकिन, बड़ा सवाल है इन बच्चों को यह सीख कहां से मिली? 



बहुत सोचा तो लगा कि हो सकता है इन्होने अपने मां और बाप को सेक्स करते या कुछ यूँ करते देखा होगा, या शायद फ़िल्मों का असर हो ये? यानी ट्रेनिंग जो है, बुनियाद जो है वहीं गड़बड़ है! मुझे याद है साल 2007 में एक अंग्रेजी अखबार ने एक बड़ा सर्वे किया था जिसमें उन्होंने बताया कि दिल्ली के स्कूलों में 12 वीं पास करते-करते 90 प्रतिशत लड़कियां अपनी वर्जिनिटी (कौमार्य) खो देती हैं. हालांकि, यह रेप से इतर एक बात है लेकिन, यह आंकड़ा यह बताने के लिए काफी है कि सेक्स के लिए किस हद तक पागलपन है इस देश के डी एन ए में! जब मैं ‘आधी आबादी’ पत्रिका का सहायक संपादक था तो मैंने एक बड़ा लेख लिखा था –भारत सेक्स क्रांति की ओर.. मैं वह लेख भी खोज कर शेयर करूँगा! 



बहरहाल, परवरिश और शिक्षा में जो बिखराव/भटकाव है उस आग में ईंधन देने का काम मीडिया, सिनेमा, अश्लील साइट्स सब लगातार कर रहे हैं! इतनी भीड़ है इस देश में कि एक प्रतिशत लोग भी बलात्कारी निकल गए तो यह आंकड़ा लाखों में होगा. और एक लाख बलात्कारी जिस देश में रह रहा हो उसे आप क्या कहेंगे – बलात्कारियों का देश..है न? इसके अलावा भीड़ में, बाज़ार में, ट्रेन में, बस में, मेट्रो में, गलियों में, सड़कों पर जिसे भी जहां मौका मिल रहा है वो अपनी कुंठाओं को भोग रहा है?






(यह लेख मैं जारी रखूँगा. मैं चाहता हूँ इस पर विस्तार से लिखूं और किसी समाधान तक पहुँचने की कोशिश करूँ)  



विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...