Tuesday, April 24, 2018

हीरेंद्र की गुगली यानी मस्ती का डोज़!

इस हिस्से में पढ़िये कुछ ऐसी ही दिलचस्प गुगली. क्योंकि आखिरी पंक्ति में आप जान पायेंगे कि आखिर बात किसकी हो रही थी! 

#गुगली 1

पिछले सात साल से वो साये की तरह मेरे साथ रहा.. मैं भी उसके बिना एक पल नहीं टिक सकता था इस दुनिया में! सच कहूँ तो जब भी मुझे जितने रुपयों की ज़रूरत हुई उसने बिना किसी सवाल के मुझे   खर्चे के लिए दिए... आज जब मैंने उसे गौर से देखा तो पाया कि अब वो फटेहाल हो गया है.. उसमें वो पहले सी चमक नहीं रही... अब ये मुझे पुराना और बदसूरत लगने लगा है.. अब इस साथी से विदा लेने का समय आ गया है.. हाँ, अब इसे बदलने का समय आ गया है.. #बैंक जाकर नए एटीएम कार्ड के लिए फॉर्म भर आया हूँ... दस दिनों में नया कार्ड आ जाएगा!



  

#गुगली 2


कभी भी बोल उठती हो तुम..आते-जाते, सिसकते-मुस्काते, सोते-जागते, रास्तों पर, घर में या बीच सफर में...कभी-कभी ऐसे कांपने लगती हो जैसे कोई भूचाल सा आ गया हो..कभी-कभी शोर में तुम्हे सुन नहीं पाता, कभी-कभी अनसुना कर देता हूँ तो कभी अनदेखा भी..कभी ख़ामोशी से कोई सन्देश ले आती हो...कभी खुशी तो कभी परेशानी भी दे जाती हो! तुम्हारा होना अब आदत है मेरी...और हाँ, जब उसका नाम तेरे गाल पर पढ़ता हूँ तो तेरी मिलकियत सुहाने लगती है...ऐसे ही मेरी ज़िन्दगी में संवाद, संगीत और समर्पण के रंग भरते रहना...मेरे मोबाइल तुम्हे ढेर सारा प्यार :) 


#गुगली 3


आज वो बहुत दिनों बाद मेरे घर आई थी। भला आती भी कैसे सरपंचों ने उसे चरित्रहीन बताकर उस पर पाबंदी लगा रखी थी। मुझे हमेशा से लगता था कि वो गंगा की तरह पवित्र है पर मैं उसके लिए कुछ न कर सका! आज जब वो आई तो हम एक दूसरे को काफी देर तक तकते रहे। नए कपड़ों में वो कुछ ज़्यादा ही लुभा रही थी। चलो माना कि दो मिनट वाली बात झूठी है पर गर्म होकर तैयार होने में उसे ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। मैंने भी बातों में ज़्यादा वक़्त जाया न किया। अपने होंठ उसके दहकते होंठों पर रख दिए। एक भूखा प्रेमी और करता भी क्या? #Welcome Maggie. अब दुबारा पढ़िए। हम मैगी की ही बात कर रहे थे :)


(यह तब लिखी थी जब बैन होने के बाद मैगी फिर से मार्किट में आई थी)




#गुगली 4


कई दिनों से उसके उदास चेहरे की झाईयां मुझे खटक रही थीं.. रोज़ सोचता लेकिन, किसी न किसी वजह से मेरा ध्यान कहीं और रम जाता. रात को सोते समय वो अपनी सुस्त रफ्तार से फिर मुझे उलाहना देता और मैं उसे अनदेखा कर सो जाता! सुबह की अफरा-तफरी में फिर वो तन्हा डोलता रहता और हम भी उसे भूले रहते! पर आज संडे ने ये मौका दिया कि उसकी उदासी दूर कर सकूँ! कपड़े से हौले हौले उसके बाजुओं को दुलराया, सहलाया..जमी धूल की परतें हटाईं, उसके चेहरे से झाईंयां मिटाईं..फिर गीले कपड़े से उसे चमकाया..तब जाकर फिर वो मुस्कुराया! अब वो मदमस्त होकर नाच रहा है. मुझे शीतलता प्रदान कर रहा है.. जी, मैं अपने पंखें की बात कर रहा हूँ. #हीरेंद्र

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