मेरी कुछ पंक्तियाँ- हीरेंद्र


किसको कहें कि क्यों कहें और क्या कहें
दिल कहें कि दौर कहें या दुनिया कहें। (१)

रोज़ ही की तरह शाम फिर चली आई,
कि इसको उम्र भर हमसे दुश्मनी निभानी है (२)

सब कुछ भूला रहता हूँ 
या फिर चौंका रहता हूँ 
जीने का बस ये जरिया है
जो मन लिखता रहता हूँ (३)

'वो बहुत खूबसूरत है हम उनकी तारीफ करते हैं
हम नीम को शहद और शहद को नीम करते हैं. ' (४)

'न जीत समझता हूँ, न हार समझता हूँ
बड़ा जिद्दी हूँ मैं भी बस प्यार समझता हूँ.' (५)

'जो सबको भाता था, मुझे भी वही अच्छा लगता था
जब-तक तुमसे मिला न था, मुझे ख़ुदा बड़ा लगता था.' (६)

'सब मॉर्डन हुआ यह ज़िंदगी अब भी देहाती है
लैपटॉप पर भी कही ग़ज़ल ख़ालिश जज़्बाती है.' (७)

'जो घर बनाओ तो एक पेड़ भी लगा देना.
हम जैसे परिंदे भी इसी गली में रहते हैं! ' (८)

'मुस्कान चेहरे पे, मधुरता वाणी में! 
बड़ा कमाल करता है, मेरी जान जवानी में!' (९)

'तेरे दिल में बसता खुद ये 'झा' है
इसलिए कहा तू सबसे जुदा है' (१०)

बहुत पास होकर भी बहुत दूर के हम हैं
यहाँ मुंबई में भी भागलपुर के हम हैं.. (११)

'एक-एक कर शाख से सारे पत्ते टूटते देखे
पेड़ ठूँठ होते ही एक खम्भे को पेड़ बन जाते देखा' (१२)

'जब कमरे में घुटन हो, तो खिड़की खोल देता हूँ
जब मन में कुछ हलचल हो, तो तुमसे बोल लेता हूँ' (१३)

'शराब वराब अब अगले जनम में पी लेंगे,
ये जन्म तेरी आँखों के सहारे ही जी लेंगे!' (१४)

'चंद सितारे टांग कर वो मेरे आसमान पर हक जताता है...
कारोबार-ए- दुनिया में भाई हम तो फिसड्डी निकले!! ' (१५)

'आज एक बात पे सूरज डरा -डरा है यहाँ
कि दिन के उजाले में ये दीपक क्यों जला है यहाँ?' (१६ )

'रोज़ सोचता है ये खुदकुशी करने को 
अखबार वालों ने इस शहर को ज़िंदा रखा है' (१७)

'बुलंद हौसलों के आगे मैंने चट्टान पिघलते देखा है
जब कदम थक थम जाते तब राहों को चलते देखा है' (१९)

'पहली सी मोहब्बत लोगों में फिर से जागेगी 
इसी उम्मीद में इस शहर ने पता नहीं बदला' (२०)

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...