Sunday, January 12, 2020

कन्याकुमारी: जहाँ स्वामी विवेकानंद को मिला उनके जीवन का उद्देश्य, तस्वीरों संग जानिये जो मैंने देखा


आज विवेकानंद की जयंती है तो मन हुआ इसी बहाने आपको अपनी कन्याकुमारी यात्रा से जुड़ी कुछ बातें बताऊं. बहरहाल, कन्याकुमारी में बहुत कुछ ऐसा है जो दर्शनीय है लेकिन, आज बात सिर्फ विवेकानंद की. आप जानते हैं भारत के आखिरी छोड़ पर बसा है कन्याकुमारी. जहाँ तीन समुद्रों (हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी) का संगम है. 
वहीं समुद्र किनारे देवी कन्याकुमारी का एक भव्य मंदिर है. जहाँ मर्द सिर्फ खुले बदन ही प्रवेश कर सकते हैं. बहरहाल, समुद्र के भीतर पूरब दिशा की तरफ जिधर बंगाल की खाड़ी है वहां विवेकानंद रॉक है.
 और उस रॉक के ठीक सामने कुमारी देवी का मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि कुमारी देवी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए यहीं तपस्या की थी. शिव प्रकट भी हुए. लेकिन, ऐसा कहा जाता है कि तब सारा ब्रह्माण्ड एक राक्षस के आतंक से परेशान था (उसका नाम याद नहीं आ रहा मुझे अभी) और उस राक्षस को यह वरदान था कि उसकी मौत सिर्फ एक ऐसी कन्या से हो सकती है जो कुमारी हो और जिसे ईश्वर की सभी सिद्धियां प्राप्त हो. ऐसे में शिव उस कुमारी से विवाह नहीं करते और बाद में वही देवी कुमारी के हाथों उस आततायी राक्षस का वध होता है. तो विवेकानद रॉक के ठीक सामने देवी ने जहाँ तपस्या की थी, वहां उनके पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं. वहां भी अब एक मंदिर बना दिया गया है. 
विवेकानंद जब 24 दिसंबर 1892 को कन्याकुमारी गए तो वहीं देवी कुमारी के चरण के निशान देखने वो समंदर के अंदर बने उस चट्टान पर भी गए. जिसे आज विवेकानंद रॉक कहा जाता है. विवेकानंद तीन दिनों (25 से 27 दिसंबर 1892) तक वहां समाधि में लीन रहे और कहते हैं जीवन का उद्देश्य और अर्थ उन्हें यहीं समझ आया. 
आज उस रॉक के ऊपर एक विशालकाय भवन है जिसमें विवेकानंद की एक भव्य जीवंत प्रतिमा है, जिसकी तस्वीर खींचने की इज़ाज़त किसी को नहीं। इस भवन के नीचे एक ध्यान केंद्र है. जहाँ न के बराबर रौशनी है. पीछे दीवार पर ॐ लिखा हुआ ज़रूर नज़र आता है , जहाँ दुनिया भर से लोग ध्यान करने के लिए आते हैं. मैं भी उस कक्ष में तीन घंटे तक ध्यान में बैठ गया था. अद्भुत है वहां सब.
 विवेकानंद रॉक के ठीक समानांतर एक भव्य प्रतिमा और है. यह प्रतिमा है थिरुवलुवर की. जो एक बड़े तमिल लेखक रहे हैं. लेखकों को सम्मान देना हमें तमिल लोगों से सीखनी चाहिए। 
आखिरी बात जब मैं फेरी से विवेकानंद रॉक की तरफ जा रहा था तो मैं उस पवित्र स्थान के सम्मोहन में इस कदर खो चुका था कि मैंने स्वामी विवेकानंद को वहीं समुद्र में फेरी के साथ तैरते हुए भी देखा। यह यात्रा मुझे ताउम्र याद रहेगी। धन्यवाद। #हीरेंद्र
SwamiVivekananda: Kanyakumari: HirendraJha

1 comment:

निराली निम्मी said...

बहुत बढ़िया। ऐसा लगा जैसे यात्रा में हम साथ ही थे 🤗

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