Tuesday, January 21, 2020

सविता बजाज का दर्द

सविता बजाज को जीवन ने खूब तोड़ा. तिरस्कार, धोखा सबकुछ झेलती वो डटी रहीं.. 1947 में जब देश बंटा तो सविता पेशावर से दिल्ली वाया शिमला आ गईं.. बंटवारे के समय वो महज 5 साल की थीं..यह कहते हुए उनकी पलकें आज भी भींग जाती है कि पेशावर छोड़ते समय वो अपने पेट डॉग को साथ नहीं ला सकीं.. क्योंकि उस समय जानवरों को सीमा पार से साथ लाने की इजाजत नहीं थी.. पांच साल की बच्ची के लिये तब यही सबसे बड़ा दर्द था..वो कहती हैं कि मोती छटपटा रहा था, लगातार भौंके जा रहा था.. उसे रस्सी से बांध दिया गया.. वो भी रोती, चिल्लाती रहीं.. लेकिन, वो उसे अपने साथ ला नहीं सकीं..

किसी अपने से अलग होने का दर्द वो तब से झेलती आ रही हैं.. उसके बाद जीवन के हर मोड़ पर अपने किसी प्रिय से बिछड़ना जैसे इनका नसीब बन गया.. 

उनके पास इतनी कहानियाँ हैं कि मैं हैरान होकर सुनता रहा.. आज दिन भर हम साथ थे.. कमर की हड्डी टूटने के बाद वो अब वाकर के सहारे चलती हैं. 



राइटर एसोसियेशन में 10 साल रजिस्ट्रार रहीं.. 1969 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पास करने के बाद अभिनय की दुनिया में रम गईं.. छोटी छोटी कई भूमिकाओं में नज़र आती रहीं..राजेश खन्ना के साथ आनंद में तो श्याम बेनेगल की कई फिल्में समेत उन्होंने बहुत काम किया..'उसकी रोटी' फिल्म के लिए उन्हें अवॉर्ड भी मिला. दूरदर्शन पर डिस्कवरी ऑफ इंडिया समेत कई टीवी धारावाहिकों में दिखीं.. बातों बातों में पता चला वो मुंबई में मेरे घर के पास ही रहती हैं.. फिर मिलने के वादे के साथ उन्हें विदा किया.. उन्होंने धर्मयुग से लेकर माधुरी तक के लिये सैकड़ों लेख भी लिखे हैं.. तमाम सितारों के घर पर वो बेधड़क पहुंच जाती.. सब उन्हें बहुत मान भी देते.. एक एक कर सभी पुराने साथी इस दुनिया को अलविदा कह गये..कहती हैं नये लोगों में अब वो बात नहीं..
माता पिता तीन बड़े भाई भी गुजर चुके हैं.. भाईयों के बच्चों ने इनसे कोई रिश्ता नहीं रखा.. अकेली रहती हैं..शादी के बारे में पूछा तो बुरा चैप्टर बोलकर टाल गईं.. आज भी वो घर पर ज्यादा नहीं रहतीं.. मुंबई के सड़कों, गलियों, दफ्तरों और स्टूडियो में अपने अतीत को तलाशती भटकती रहती हैं..  

बहरहाल, 77 साल की उम्र में भी एक ललक, एक बेचैनी उनमें बाकी है. मैं उनसे मिलने के बाद बहुत देर तक मौन रहा..लगभग सब सितारों से मैं यहां मिल चुका हूँ लेकिन, किसी के बारे में पहली बार विस्तार से लिखने से खुद को न रोक सका.. शुक्रिया..  #हीरेंद्र

*यह मैंने 21 जनवरी 2019 को लिखी थी

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