'मिशन मंगल' एक बेहतरीन और इंस्पायरिंग फ़िल्म है.. पहले ही प्रयास में भारत के मंगल ग्रह पर पहुंचने की कहानी के साथ यह फ़िल्म कई अन्य विषयों को भी बखूबी ढंग से दिखाती है.. जैसे कि जवान हो रही पीढ़ी के साथ माता-पिता का व्यवहार कैसा हो या फिर किसी तलाकशुदा औरत को मकान मिलने में कितनी परेशानी होती है..वगैरह.. वगैरह.. इस तरह की कई छोटी-छोटी बातें फ़िल्म में इस तरह से पिरो दी गई हैं कि वो आपको हँसाती भी हैं, रुलाती भी हैं और ठहरकर सोचने पर भी मजबूर करती हैं! डॉयलॉग जबर्दस्त है..कुल मिलाकर एक मनोरंजक फ़िल्म..पूरे परिवार के साथ देख आइये.. मेरी रेटिंग 5 में से 5 स्टार.. शुक्रिया.. #हीरेंद्र
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Thursday, August 15, 2019
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विदा 2021
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...
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"हम हैं बच्चे आज के बच्चे हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे हम जानते हैं झूठ और सच हम जानते हैं गुड टच, बैड टच मम्मी, पापा जब...
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साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...
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मुझे याद है बचपन में हमारे मोहल्ले में एक बांसुरी वाला आया करता था। उसके पास एक डंडा हुआ करता जिस पर अलग अलग रंग और आकार के छोटे बड़े कई बांस...