Friday, February 04, 2011

बशीर बद्र

भोपाल के डा. बशीर बद्र उर्दू के एक ऐसे शायर हैं जिनकी सहज भाषा और गहरी सोच
उन्हें गजल प्रेमियों के बीच एक ऐसे स्थान पर ले गई है जिसकी बराबरी कर पाना
मुश्किल है ।

"दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त्त हो जायें तो शर्मन्द् न हों"

कभी कभी लोगों के दिल को पढ़ पाना कितना कठिन होता है । ऐसे ही लोगों के बारे में
बशीर साहब कहते हैं

"बहुत से लोग दिल को इस तरह महफूज रखते हैं
कोई बारिश हो ये कागज जरा भी नम नहीं होता"

और जब उनकी कलम से प्यार की रसभरी फुहार टूटती है तो देखिये ना नशा किस तरह
उतरता है

"कौन आया रास्त्त्त्ते आईनाखाने हो गए
रात रौशन हो गई दिन भी सुहाने हो गए"

"मेरी पलकों पर ये आँसू प्यर की तौहीन हैं
उसकी आँखों से गिरे, मोती के दाने हो गए"

और चलते चलते उनकी बेहद मशहूर पंक्तियाँ

"हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चरागों की तरह आखें जलें, जब शाम हो जाए

मैं खुद भी एहतियातन उस गली से कम गुजरता हूँ
कोई मासूम क्य्य्य्यों मेरे लिये बदनाम हो जाए

मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिन्द् आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए"

आँसुओं में धुली खुशी की तरह, रिश्ते होते हैं शायरी की तरह
जब कभी बादलों में घिरता है, चाँद लगता है आदमी की तरह
सब नजर का फरेब है वर्ना, कोई होता नहीं किसी की तरह
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं, ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं
मैं शाह राह नहीं रास्त्त्त्ते का पत्थर हूँ, यहाँ सवार भी पैदल उतर कर चलते हैं
उन्हें कभी नहीं बताना मैं उनकी आँखें हूँ, वो लोग फूल समझकर मुझे मसलते हैं
ये एक पेड़ है आ इस से मिलकर रों लें हम, यहाँ से तेरे मेरे रास्ते बदलते हैं
कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से, कहीं भी जाऊँ मेरे साथ साथ चलते हैं

बशीर बद्र जी की ये एक बेहद मशहूर गजल है ये ! इसके चंद शेर आप सब की खिदमत
में हाजिर हैं
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
ये गजल का लहजा नया नया न कहा हुआ ना सुना हुआ ।
जिसे ले गई है अभी हवा, वो वर्क्क्क्क था दिल की किताब का
कहीं आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं आँसुओ से लिखा हुआ ।
वर्क - पन्ना
कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा, नदी के पास खड़ा हुआ ।
मौज - हवा
वो ही शहर हैं वो ही रास्ते, वो ही घर है और वो ही लान भी
मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख्त अनार का क्या हुआ ।

कुछ नये शेर जोड़ रहा हूँ जो मुझे पसन्द हैं :
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ज़िन्दगी तूनें मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फ़ैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।
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जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता ।
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कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले लगोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो ।
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इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
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वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहनें तो दूसरा ही लगे ।
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनानें में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलानें में।
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पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखो को अभी ख्वाब छुपानें नहीं आते ।
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तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था.
फ़िर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।
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मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ
चुभनें लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।

बद्र साहब की एक निहायत खूबसूरत गजल पेश है जिसे जगजीत सिंह ने गाया भी है ।

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफा हो जाएगा ।
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्त्त हो जाएगा ।
कितनी सच्चाई से, मुझसे जिंदगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा ।
मैं खुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों
जहर भी इसमें अगर होगा, तो दवा हो जाएगा ।
सब उसी के हैं, हवा, खुशबू, जमीन- ओ- आस्माँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।

Wednesday, February 02, 2011

माँ

खट्टी चटनी जैसी माँ / निदा फ़ाज़ली
बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे ,
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ ।
चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली ,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी माँ ।
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां ।
बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ ।

अहमद फ़राज़

Farz karo k,
Tum se sunder na hum ne koi dekha ho,

Farz karo k'
Ankh tumhari bin kajal bhi piyari ho,

Farz karo k'
Piyar tumhara mera jeevan bhar ho,

Farz karo k,

Dekh ke tum ko hum ne bhi dil hara ho,

Farz karo k,
Piyar main tere hum ko neend na ati ho,

Farz karo k,
Soorat teri din main bhi tarpati ho,

Farz karo k,
Bin tere na ik pal mujh ko rehna ho,

Farz karo k,
Ye sab mujhko such much tum se kehna ho............?
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Tuesday, February 01, 2011

सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला

तुम हमारे हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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नहीं मालूम क्यों यहाँ आया
ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते ।
उठा तो पर न सँभलने पाया
गिरा व रह गया आँसू पीते ।

ताब बेताब हु‌ई हठ भी हटी
नाम अभिमान का भी छोड़ दिया ।
देखा तो थी माया की डोर कटी
सुना व' कहते हैं, हाँ खूब किया ।

पर अहो पास छोड़ आते ही
वह सब भूत फिर सवार हु‌ए ।
मुझे गफलत में ज़रा पाते ही
फिर वही पहले के से वार हु‌ए ।

एक भी हाथ सँभाला न गया
और कमज़ोरों का बस क्या है ।
कहा - निर्दय, कहाँ है तेरी दया,
मुझे दुख देने में जस क्या है ।

रात को सोते य' सपना देखा
कि व' कहते हैं "तुम हमारे हो
भला अब तो मुझे अपना देखा,
कौन कहता है कि तुम हारे हो ।

अब अगर को‌ई भी सताये तुम्हें
तो मेरी याद वहीं कर लेना
नज़र क्यों काल ही न आये तुम्हें
प्रेम के भाव तुर्त भर लेना" ।
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Sunday, January 30, 2011

जिंगल

I'll present an outline of how to write a jingle and tips for writing effective ones.
Know the product: What are you trying to sell? A service? A product? A company? Do you want to focus on radio jingles? TV commercial jingles?
Drill the name: The jingle must mention and repeat the specific name of the product or company and what it does.
Set your slogan to a tune: There is much evidence to show that we remember tunes better than mere words. That's why a jingle is generally much easier to remember than just a slogan.
Use assonance (repetition of vowel sounds -- 'eat cheap') and alliteration (repetition of consonant sounds -- 'Lemon-lime'): This makes your jingle fun to sing!
Choose strong words: Select action verbs, clear nouns and adjectives that stand out. Avoid overused, dull words. For example, a 'nice, fast car' becomes a 'smooth, speedy ride.'
Use puns: Use a play on words to help the consumer remember the product.

Use repetition: Hearing a name in relation to a product lodges it in the memory. The Use rhymes: This technique is very helpful.
Use hyperbole: Exaggerate in a funny or memorable way.
Use similes and metaphors
Use a combination: Chances are, you will use several of these advertising techniques together.
Keep it simple: Review and revise;
Keep it smooth: As you revise, clean up any sloppy wording. Repeat it to make sure it flows and isn't awkward in any way.
Jingles are the backbone of advertising! Though you can't plagiarize, you can get inspiration from the jingles you love.
Required Tools:
Thesaurus
Computer
Caution:
Keep it simple.
Emphasize the product name.
Quick Tips:
People like humorous jingles.
Develop a catchy tune.

courtesy:-howtodothings.com

Saturday, January 29, 2011

शहीद दिवस

saabarmati ke sant tu ne kar diya kamaal
gandhiji aaj hee nahi balki sada humaari smirityon mein rah kar humein prerit karte raheinge...

" hey bapu tu laut aa,humein hai teri zarurat!
aaj ke insaan se acchi thi tere teeno bandar ki surat'

Wednesday, January 19, 2011

जिंदगी आ रहा हूँ मैं

dar dar phirte aakhir khushiyan mere ghar bhi aayi
dam dam dam dam damru baaje gunj uthi sahnaii

tabhi tho masti mein gaa raha hoon main!
zindgi aa raha hoon main!

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...