Thursday, January 03, 2019

एक लेखक का अंत #हीरेंद्र झा

शुरू शुरू में जब दोनों मिले तो एक अलग ही तरह की खुमारी थी.

वो आज भी याद करता है कि वो कुछ भी अनर्गल लिख देता और वो लड़की उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ने लगती. तारीफ का असर कुछ ऐसा हुआ कि लड़का लिखने लगा.. लगातार लिखता रहा.. और वो लड़की भी उसे मन से पढ़ती.. मन से सुनती.. मन से सराहती..

लिखने वाले लड़के के लिए यह अहसास नया था.. और उसकी तारीफ सुनने के लिए पढ़ने लगा.. लिखने लगा..

उसने चांद तारों पर लिखा, फूल पत्तियों पर लिखा.. दिल और दरिया पर लिखा.. मिलन और जुदाई पर लिखा..

धीरे धीरे उसने दायरा बढ़ाया और फिर उसने जीवन और दुनिया पर लिखना शुरू किया..

एक लड़की को खुश करने के हुनर से वह दूसरे पाठकों को भी समझने लगा.. वो निखरता गया..

वो लिखने के पेशे से जुड़ा..अब वो क्लाइंट के हिसाब से लिखने लगा.. क्लाइंट पैसे तो दे देता पर तारीफ नहीं किया करता.. वो बेचैन रहने लगा.. वो लिखता रहा पर अब वैसी तारीफ उसकी कोई नहीं करता..

वो लड़की भी अब तक इस लेखक की तारीफ करना छोड़ चुकी थी.. दस साल में ज़ाहिर सी बात है कि लड़का अब ज्यादा बेहतर लिखने लगा.. समय ने उसे एक लेखक के रूप में स्थापित कर दिया..

लेकिन, फिर उसने एक दिन लिखना छोड़ दिया.. जो चीज उसे सबसे ज्यादा खुशी देती थी वो उससे यानी लेखन से दूर होता गया..

वो समझ ही नहीं पाया कि ऐसा क्यों हुआ.. वो बेचैन रहता.. एक दिन उसने निराशा के गहनतम क्षण में उस लड़की को उलाहना देते हुए कहा कि अब तुम मेरे लिखे की तारीफ भी नहीं करती??

लड़की ने तपाक से उत्तर दिया कि अच्छा तो तुम तारीफ पाने के लिए लिखते हो?

उसने इस तरह के जवाब की आशा नहीं की थी..

फिर वो देर तक सोचता रहा कि भला वो क्यों लिखता था.. उसे यह तय करने में कोई मुश्किल नहीं हुई कि वो तो बस उस लड़की की तारीफ सुनने के लिए ही लिखता रहा..

जब वो विस्मय भाव से उसे उसके लिखे का मतलब समझा रही होती.. तो उसे लगता कि उसका लिखना सार्थक हुआ..

लेकिन,  अब वह जान गया है कि वो अनर्गल और निरर्थक ही लिखता रहा है.. अब उसने लिखना छोड़ दिया है.. अब वो पागल हो गया है!#लघुकथा #एकलेखककाअंत #हीरेंद्र

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