Friday, July 19, 2019

नागों के बारे में कुछ दिलचस्प बातें! #हीरेंद्र

बचपन से हम सबमें साँपों को लेकर एक अलग तरह की जिज्ञासा होती है. उसमें भी अगर बात नाग की हो तो देह में सिहरन सी दौड़ जाती है. आइये नागों के बारे में एक छोटी सी बात बताऊँ आपको!

पुराणों में आठ प्रकार के नागों का वर्णन मिलता है. ये हैं शेषनाग, वसुकि, तक्षक, कार्कोटक, शंखपाल, गुलिका, पद्म और महापद्म। ये सब अपने रंगों से पहचाने जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि वसुकि मोती की तरह सफ़ेद रंग का तो तक्षक लाल रंग का होता है.

कार्कोटक काले रंग का ऐसा नाग है जिसके सिर पर त्रिशूल सा निशान होता है. पद्मनाग के बारे में बताया गया है कि ये कमल की तरह गुलाबी रंग का होता है और जिसके शरीर पर सफ़ेद धारी जैसे निशान होते हैं. महापद्मा भी सफ़ेद रंग और  त्रिशूल के निशान वाला नाग है. जबकि शंखपाल पीले रंग का है और जिसके सिर पर सफ़ेद निशान होता है. गुलिका लाल रंग का होता है जिसके माथे पर आधे चंद्रमा की तरह आकृति होती है.


वसुकि को नागों का राजा कहा जाता है. समुद्र मंथन के समय मंदार पर्वत से वसुकि को ही देवताओं और असुरों ने रस्सी की तरह इस्तेमाल किया था. शिव जी के गले में यही वसुकि नाग लिपटा होता है. आप समझ सकते हैं शिव जी कितने विराट होंगे, जो वसुकि जैसे विशालकाय नाग को अपने गले में हार की तरह लपेटे हैं. वसुकि ही वो नाग है जिसके माथे पर नागमणि है. 



मनसा देवी जो शिव जी की पुत्री कही जाती हैं, उनके बारे में ऐसी मान्यता है कि वो दरअसल वसुकि की बहन है और ज़ाहिर है वो भी नाग कुल से ही हैं. हिन्दू धर्म के अलावा बौद्ध धर्म में भी वसुकि समेत इन आठों नागों के बारे में बताया गया है. शेषनाग के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वो क्षीरसागर में हैं जिसपर विष्णु भगवान लेटे हुए हैं और शेषनाग ने पूरी पृथ्वी को अपने सिर पर संभाला हुआ है. इन दोनों के अलावा तक्षक और परीक्षित की कहानी भी आप सबने सुनी होगी!

चलते-चलते यह भी बता दूँ कि तमिलनाडु में नागरकोइल (Nagercoil) नामक एक जगह है वहां पर एक प्रसिद्ध नाग राजा मंदिर है. उस मंदिर में ये आठों नाग एक साथ विराजमान हैं जहाँ इनकी पूजा होती है. नागरकोइल से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर कन्याकुमारी है.

हीरेंद्र झा, मुंबई

2 comments:

Reetesh Khare said...

जवाब नहीं हीरेन्द्र! क़ायल हूँ तुम्हारी हरफनमौला लिखाई का। इस लेख की विषय-वस्तु, ऐसा नहीं कि कहीं और न हो, मगर, जिस कुशलता से तुमने गागर में सागर भरा, वह प्रशंसनीय है। लेख परिपूर्ण लगा। सारी ज़रूरी बात पहुँच रही है पाठक के पास। नागरकोइल जब भी जाना हुआ, तुम्हारे लेख का उपसंहार स्मरण रहेग।

Hirendra Jha said...

तुम हमेशा हौसला बढ़ाते हो मित्र। आभार !

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