Friday, July 26, 2019

एक छोटी सी कविता

आते हैं रात में भी दिन के ही ख़्वाब मुझको
काँटे भी चल के आये देने गुलाब मुझको
आँखों में बच गया है थोड़ा सा अब भी पानी
नहीं चाहिए जी छोड़ो कोई हिसाब मुझको
जल रहा हूँ मैं तभी से क्या बताऊँ ये किसी से
कोई कह के हाँ गया था इक दिन तेज़ाब मुझको
बस यही है एक ख़्वाहिश न चाहूँ इससे ज़्यादा
गुज़रुं जिधर से दुनिया करे आदाब मुझको #हीरेंद्र

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