Saturday, July 27, 2019

'अभागा सावन' - हीरेंद्र

एक कवि ने अब सावन पर लिखना बंद कर दिया है. लिखे भी क्यों जब इन बादलों से ज़्यादा पानी उसकी आँखों में है? बचपन में वो लिखा करता था बादलों के नाम ढेरों प्रेमपत्र और फिर उनकी नाव बनाकर वो बहा देता था किसी अंजाने पते पर. इस उम्मीद में कि एक दिन ज़रूर आएगा उसके इन चिट्ठियों का जवाब!

सुना है कि इस मौसम में कभी वो बेलपत्रों पर ॐ नमः शिवाय का मंत्र भी लिखा करता तो  कभी किसी की हथेली में लगी मेहँदी में ढूंढता था अपना लिखा नाम. जिन हरी काँच की चूड़ियों ने कभी उसका मन खनकाया था वो अब टूटकर उसके कलेजे में कहीं धँस सी गई है. अब उसके लिए सावन का मतलब सिर्फ बारिश होने का एक मौसम भर है.

अब उसके मन में कोई मोर नहीं नाचता. सावन के झूलों का तो पता नहीं लेकिन, अब वो झूलता रहता है अतीत के उन अँधेरों में जहाँ अब उसे कोयल की कूक भी झूठी लगती है.  इतना अभागा ये सावन कभी न था. क्योंकि एक कवि ने अब सावन पर लिखना बंद कर दिया है. #अभागासावन #हीरेंद्र

2 comments:

shikha said...

Amazingly written!!! Abhaaga saavan ...wow!

Hirendra Jha said...

शुक्रिया शिखा..

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