आयुष्मान खुराना की फिल्म 'ड्रीम गर्ल' हँसते-हँसाते हुए समाज का एक ऐसा बेबस चेहरा दिखा जाती है जो हमें डराती भी है और सोचने पर भी मजबूर कर देती है.. कहानी बताती है कि आज के दौर में हर आदमी इतना अकेला है कि उसे किसी अनदेखे, अनजाने से भी इस कदर प्यार हो सकता है जिसके लिये वो अपना धर्म तक बदल ले..कलाई की नस काट ले.. स्त्री पुरूष का भेद भूलकर प्रेम संबंधों के एक नये रंग को उघाड़ने के लिये बेचैन हो जाये! क्यों? क्योंकि फोन के उस पार एक आवाज है.. एक ऐसी आवाज जो उसे ये भरोसा दे रही है कि वो उसके साथ है.. वो आवाज जो उसे ये तसल्ली दे रही है कि हाँ कोई है जो तुम्हें सुन रहा/रही है.. कोई है जिससे तुम सब कह सकते हो? इसी नाटकीय त्रासदी पर बनी यह फिल्म कहीं कहीं बोर भी करती है, लेकिन कुल मिलाकर देखने लायक बन पड़ी है.. आयुष्मान खुराना हर बार की तरह आपका दिल जीत लेंगे..ऐसा कहा जा सकता है कि आयुष्मान इस फिल्म के हीरो ही नहीं बल्कि हीरोइन भी हैं.. मेरी फेवरेट अभिनेत्री नुशरत भरूचा के हाथ कुछ ख़ास है नहीं इस फिल्म में.. राइटर-डायरेक्टर राज शांडिल्य ने फिल्म लिखी तो अच्छी है पर मुझे ऐसा लगा कि कहीं-कहीं डायरेक्शन में वो थोड़े कमजोर रह गये.. हालांकि, डॉयलॉग कमाल के हैं..मेरे हिसाब से एक मनोरंजक फिल्म.. मेरी रेटिंग साढ़े तीन स्टार.. थैंक्यू.. #हीरेंद्र
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
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विदा 2021
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...
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"हम हैं बच्चे आज के बच्चे हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे हम जानते हैं झूठ और सच हम जानते हैं गुड टच, बैड टच मम्मी, पापा जब...
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मुझे याद है बचपन में हमारे मोहल्ले में एक बांसुरी वाला आया करता था। उसके पास एक डंडा हुआ करता जिस पर अलग अलग रंग और आकार के छोटे बड़े कई बांस...
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