हर बात वो मुझसे छिपाती रही
सुबह आती रही शाम जाती रही
उलझनें ऐसे में क्या सुलझती भला
उसकी आँखें ही जब उलझाती रही
मेरा गीत क़ैद रहा मेरे कंठ में
और ज़िंदगी मुझे गुनगुनाती रही
हम मिलेंगे ज़रूर ये वादा देकर
मेरे सब्र को वो आजमाती रही
हम इंतज़ार में उसके बैठे रहे
वो ख़ुदा को आवाज़ लगाती रही। #हीरेंद्र
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