Monday, March 30, 2020

कोरोना डायरी #CoronaDiary

जीवन का हिसाब स्पष्ट है - खुश रहोगे तो खुशियां मिलेगी और दुखी रहोगे तो दर्द. यह बात समझने में कई बार हमें ज़िंदगी भर का सफर तय करना पड़ सकता है. लेकिन, इसके लिए ज़िंदगी हमें हर कदम पर मौके देती है, इशारे करती है. बस आपको सचेत रहना है और पूरी समग्रता से उन इशारों को समझना होता है.

यह लिखने में भले आसान हो पर इस पर अमल करना उतना सहज नहीं। हर इंसान का अपना अनुभव और दृश्टिकोण होता है. जिसमें तपकर हम किसी चीज़ के प्रति अपना एक नजरिया बनाते हैं. यह नजरिया उधार का तो बिलकुल भी नहीं हो सकता। कबीर ने कहा या बुद्ध ने कहा यही सोचकर कोई बात नहीं मान लेनी चाहिए। जब तक हम स्वयं उस अनुभूति से साक्षात्कार न कर लें दुनिया भर के दर्शन और साहित्य बेमानी हैं.

आप आँखें बंद करके खुद को टटोलिये कि आप इस जीवन से क्या चाहते हैं? अगर आप देख पायें तो आप खुशकिस्मत हैं क्योंकि दस में से नौ लोगों को तो यह बिलकुल भी नहीं मालूम होता कि वो इस जीवन से क्या चाहते हैं. इन दोनों तरह के लोगों को अलग-अलग तरीके से चीज़ों को समझना होगा। पहले वे लोग जो देख पा रहे हैं कि उन्हें इस जीवन से क्या चाहिए, वो बस उन्हीं पर अपना ध्यान केंद्रित रखें. क्योंकि जीवन बहुत ही विराट है- यहाँ थोड़ा-थोड़ा सब कुछ पा लेना भी आसान नहीं। और थोड़ा-थोड़ा पाकर भी आप बेचैन ही रहेंगे। जो भी पाना हो वो सम्पूर्णता के साथ पाना, तभी आप आनंदित हो सकते हैं. अगर आप स्पष्ट हैं कि आप को जीवन से क्या चाहिए तो आप यह समझ लें कि आपको बस उसी पर केंद्रित रहना है. व्यर्थ के प्रयासों में समय न गंवा दें. मान लीजिये कि आपको एक महाकाव्य रचना है तो बस आपका पूरा ध्यान इसी बिंदु पर होना चाहिए। सोते-जागते आप अपने महाकाव्य को साकार होते दिखे। अगर आपको अपने मन में महाकाव्य के पन्ने नज़र आने लगे तो समझो आपने महाकाव्य रच दिया। यह और भी बातों के लिए उतना ही सटीक है.

दूसरी बात कि आपको अभी भी नहीं मालूम कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए। तो बेहतर है खुद के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त गुज़ारे। अपने आप को समझें। ह्रदय की गहराइयों में उत्तर कर खुद को देखें कि ऐसी कौन सी बात है जो आपको मिल जाए तो आप खुश हो जाएंगे। अगर आप ईमानदारी से खुद का मूल्यांकन करें तो इस बात की कोई भी वजह नहीं कि आप निरुत्तर रहे.

और जब एक बार आप समझ गए कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए तब आगे का रास्ता स्वतः ही निर्मित होना शुरू हो जाता है. इस शोध के लिए यह 21 दिनों का लॉकडाउन बहुत ही कारगर है. यह मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ. जीवन में एक से ज़्यादा बार ऐसा हुआ है कि मैंने आत्महत्या करने का सोचा है. लेकिन, नहीं अब मैं समझ गया हूँ कि मरने से पहले ज़िंदगी एक बार जी ही लेनी चाहिए। इति शुभम!

हीरेंद्र झा

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...