Thursday, March 26, 2020

#CoronaDiary #Day2

आज का दिन थोड़ा बेहतर गुज़रा और आज मैंने अगले 7 दिनों के लिए अपना रूटीन बना लिया है. उससे पहले आज कुछ काम को लेकर भी कुछ लोगों से बात हुई और इस दौरान यह तय हुआ कि कोरोना के इस लॉक डाउन का लाभ उठाकर कुछ प्रोजेक्ट के काम पूरे कर लिए जायें। संभवतः अब इस दिशा में भी काफी वाट लगने वाला है.

बहरहाल, आज दिन में ओशो के कुछ वीडियो सुने। ग्रेजुएशन के दौरान मैंने ओशो को खूब पढ़ा है और उसका मुझे लाभ  भी हुआ. लेकिन, अरसे से ओशो और उनकी बातें भूला सा था एक बार फिर उन लम्हों को जी रहा हूँ. मैंने अनुभव किया है कि संन्यास मेरा मूल स्वभाव है. इसलिए भी इस राह पर जाने से थोड़ा बचता हूँ. क्योंकि यह बहुत ही आसान है मेरे लिए. और अगर मैं इस राह पर बढ़ चला तो मुझसे जो लोग जुड़े हुए हैं उन्हें परेशानी हो सकती है. इसलिए कहीं न कहीं मन में यह रहता है कि इस संसार में एक संन्यासी की तरह क्यों न रहा जाए? मैं कुछ लिखता भी हूँ तो कई बार उस लिखे में मुझे वो दर्शन और पद्धति महसूस होती है.

जो मेरी अगले 7 दिन की दिनचर्या रहने वाली है. उसकी बात करूँ तो मैंने तय किया है कि अगले 7 दिनों तक मैं लगातार ध्यान की अवस्था में रहूँगा। यानी मेरा पूरा ध्यान मेरी साँस पर टिका होगा। उसके आने और जाने पर. भीतर गहरे तक साँस लूँगा। ज़्यादा से ज़्यादा प्राणवायु मेरे भीतर जाए इसका ख़्याल रखूंगा। साँस के अलावा मैं अगले सात दिनों तक भोजन को लेकर ज़्यादा नहीं सोचने वाला। जितने कम में काम चल जाए बस उतना ही भोजन करूँगा। जीवन के लिए जितना ज़रूरी हो सिर्फ उतना खाऊंगा। जो भी करूँगा एकाग्रचित्त होकर करूँगा। एकाग्रता के लिए सबसे सहज और हितकर मार्ग यही है कि आप अपने साँसों पर ध्यान बनाकर रखें। इसके अलावा कुछ और काम करने पड़े जैसे नहाना, भोजन आदि तो वह भी पूरी एकाग्रता के साथ किया जाए.

इन तीनों बातों के अलावा चौथी बात जिसका मुझे ध्यान रखना है, वो है -मौन. मेरी कोशिश रहेगी कि मैं 24 घटे मन, वचन और विचार से मौन रहूं। कोई आफत ही आ जाए तो दो, चार शब्द बोलकर या कागज़ पर लिख कर काम चल जाए तो यह कर लूँ. यह कठिन है पर इसका अपना ही आनंद है. सिर्फ बोलना ही बंद नहीं करना है बल्कि देखना और सुनना भी न्यूनतम कर देना। ज़्यादातर वक़्त मेरे आँखों पर इस दौरान पट्टी बंधा होगा और मैं पूरी तरह से सिर्फ ध्यान में रहने का प्रयास करूँगा। आखिरी बात यह समय मैं किसी मजबूरी में नहीं करूँगा, बल्कि पूरे आनंद भाव से करने वाला हूँ. मुझे कुछ याद नहीं कि कोरोना की वजह से पूरे देश में बंद की स्तिथि है. मैं घर से बाहर नहीं निकल सकता। कि मैं सबसे दूर यहाँ मुंबई में अकेले हूँ. मुझे बस इतना याद है कि मैं सुख और आनंद में हूँ और इस समय को एक अवसर की तरह देख रहा हूँ. फिर जीवन में मुझे यह सात दिनों का विशेष ध्यान करने का अवसर न मिले तो क्यों न इस समय का लाभ उठा लूँ. कुछ बहुत ज़रूरी कोई फोन आ गया (काम के सिलसिले में) तो उस तरह के फोन मैं ज़रूर उठाऊंगा और कुछ लिखना हुआ तो वो भी करूँगा। लेकिन, अगर ऐसा न हुआ तो वो और भी अच्छा। अपने अनुभव मैं आप सबको ब्लॉग पर बताता रहूँगा।

- हीरेंद्र झा

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...