Wednesday, March 25, 2020

#CoronaDiary Day1

हालांकि मुंबई में शनिवार 21 मार्च से ही कर्फ्यू लग गया था और आज यानी 25 मार्च से तो देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा हो ही चुकी है. कोरोना से बचने का यह सबसे आसान और कारगर उपाय है. ऐसे में पूरा देश इस वक़्त अपने-अपने घरों में है और पूरे २१ दिनों तक उन्हें ऐसे ही रहना है.

घर-परिवार से दूर अकेले मुंबई में अपने एक छोटे से कमरे में हूँ. मैं बिना लाग-लपेट के यह कहना चाहता हूँ कि यह एक बड़ी मुश्किल समय है. मैंने अपने पूरे जीवन में ऐसा समय नहीं देखा। घर-परिवार और अपनों के साथ 21 तो क्या मैं सौ दिन भी बिना किसी परेशानी के घर पर रह सकता हूँ. पर ऐसे अकेले यह मेरे लिए भी एक रहस्य ही होगा जो मैं 21 दिनों तक बचा रह गया.

देश के अलग-अलग हिस्सों से कुछ तस्वीरें आ रही हैं, जिनमें इक्का-दुक्का लोग सड़क पर मास्क पहने घुमते दिख रहे हैं. ज़रूरी सेवा देने वाले जैसे पुलिस, डॉक्टर्स, बैंकर्स और पत्रकार आदि वैसे भी घरों से निकल रहे हैं. यहाँ एक बात मैं जोड़ना चाहूँगा कि मुंबई में मैं जिस सोसायटी में रह रहा हूँ, यहाँ मेन गेट पर ताला लगा दिया गया है और आपातकालीन स्तिथि में ही किसी को बाहर निकलने की इज़ाज़त है. यह नियम बना दिया गया है कि सुबह आठ बजे से लेकर नौ बजे तक मेन गेट खोला जाएगा और आप इसी दौरान अपने खाने-पीने की ज़रूरी चीज़ें लेकर आ सकते हैं. शुक्र है कम से कम यह एक अच्छी बात है.

बहरहाल, खाने-पीने का मैंने कुछ यह सोचा है कि चूड़ा, चना, मूंगफली, चावल-दाल जो सहज और आसानी से बन जाए, उसी में किसी तरह यह दिन बीता देना है. ज़्यादा खाने-पीने के चक्कर में नहीं रहना है. एक वक़्त भी पेट भर कर खा लिया तो अगले दिन तक छुट्टी। तो भोजन को लेकर मैं बहुत ज़्यादा चिंतित नहीं हूँ. मेरी चिंता थोड़ी अलग है.

मन में यह ज़रूर आता है कि जीवन में ऐसा कभी कठिन समय आये तो इंसान को अपने परिवार के साथ होना चाहिए। एकजुट होकर एक दूसरे को सहारा देते हुए हम इस तरह के हालातों से निकल सकते हैं. मेरे साथ वर्तमान में ऐसे हालात हैं कि बुजुर्ग माता-पिता धनबाद में है. उनका पूरा समय घर पर ही बीतता है. मेरी एक दीदी अपने परिवार के साथ वहां है, जो उनका ख़्याल रख रही हैं. बाबूजी रोज़ बिना नागा एक बार कॉल ज़रूर कर लेते हैं और मेरी आवाज़ सुनकर बुलंद हो जाते हैं. पत्नी है जो अपने मायके यानी लखनऊ में रहती है. आठ  साल की प्यारी बिटिया ख़ुशी भी अपनी मम्मी के साथ वहीं रह रही है. मेरे साथ संयोग कुछ ऐसा रहा कि कभी बिटिया के साथ रहने का मौका मुझे नहीं मिला है. वो नानी के घर ही जन्मीं और वहीं देखते-देखते आठ बरस की हो गयी हमारी लाड़ो। उसे फोन पर बात करना पसंद नहीं इसलिए मेरी उससे न के बराबर बातचीत होती है. बीते एक साल में हम चार बार मिले हैं और कुल मिलाकर आठ दस दिन हमने साथ बिताये होंगे। पत्नी का रूटीन कुछ इस तरह का है कि उसके पास बिल्कुल भी फुर्सत नहीं। स्टेट बैंक की नौकरी के बाद जो वक़्त उसे मिलता है उसपर उसकी बीमार माँ और प्यारी बिटिया का अधिकार है. उसकी मम्मी यानी मेरी सास का लीवर काफी हद तक डैमेज हो चुका है और उनकी हालत काफी गंभीर रहती है. कई बार उन्हें इलाज के लिए लखनऊ से लेकर दिल्ली भागना होता है. ऐसे में हम दोनों पति-पत्नी के बीच कई बार सप्ताह भर भी बात नहीं हो पाती। मैं उसे बहुत मिस भी करता हूँ. पर शायद यही नियति है और किसी तरह यहाँ मुंबई में जीने की कोशिश कर रहा हूँ.

सामान्य दिनों में काम में उलझ कर दिन बीत जाया करता है पर ऐसे लॉक डाउन के समय में मेरी बेचैनी का बढ़ना वाजिब ही है. दिन भर घर पर अकेले क्या और कैसे किया जाए, आसान नहीं। न किसी अपने से कोई संवाद ही है और न ही एक पारस्परिक सहयोग वाली बातचीत कि जिसके सहारे आप अपना समय काट सकें। थक-हार कर मेरे पास यही विकल्प है कि - कितने पढूं, फ़िल्में देखूँ और लिखूँ। लिखकर बेचैनी मेरी थोड़ी कम होती रही है.

तो मैंने सोचा क्यों न इस लॉक डाउन में रोज़ अपने ब्लॉग पर #CoronaDiary लिखूं। इसी बहाने अगर मैं ज़िंदा बचा रहा तो आज से दस-बीस साल बाद भी यह समय याद रह जाएगा। तो इस कड़ी में यह दूसरी पोस्ट है. कल भी मैंने कोरोनो पर कुछ लिखा है और आज भूमिका बांधते हुए आप सभी को अपनी मानसिक और व्यावहारिक स्थिति बता दी है.

आज यू tube पर अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा की फिल्म 'छोटी सी बात' फिर से देखी। बेहद मासूम सी फिल्म है. उसके बाद संदीप माहेश्वरी के कुछ वीडियो सुनते हुए बर्तन भी धोये। और अब सोचा सोने से पहले यह पोस्ट लिख ही दूँ. वैसे अभी रात के सिर्फ दस ही बजे हैं. कल भी तीन बजे के बाद ही सोया था और आज भी देर होगी ही. देखते हैं यह दिन अपने आखिरी घंटे में कैसा रहता है. अब रफ़ी के गीत सुन रहा हूँ. पूरी प्लानिंग कर ली है कि कल से मेरा रूटीन क्या रहने वाला है. वो सब कल लिखता हूँ. अगर आप यह पोस्ट पढ़ पा रहे हैं तो यही कहूंगा कि घर पर ही रहे, बाहर न निकले. अपना ख़्याल रखें। हाथ धोते रहे. और यह सब किसलिए? देश ही नहीं मानवता के लिए भी. जी! शुक्रिया।

आपका हीरेंद्र

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