Sunday, April 12, 2020

जलियांवाला बाग नरसंहार की कहानी, इन तस्वीरों की ज़ुबानी #JallianwalaBaghmassacre


आज वैशाखी है. पंजाब और हरियाणा में इस पर्व की ख़ासी धूम रहती है. नयी फ़सल की आमद का यह जश्न हर साल इसी तारीख यानी 13 अप्रैल को ही मनाया जाता है.  लेकिन, यह तारीख इतिहास में भी अपनी एक अलग भयावहता के लिए अंकित है. जलियांवाला बाग नरसंहार के बारे में किसने नहीं सुना. आज से 101 साल पहले इसी दिन सारी दुनिया ने अंग्रेज़ों का एक क्रूर और अमानवीय चेहरा देखा था.






राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था, जिसके बाद मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और उसका परिणाम 13 अप्रैल 1919 के नरसंहार के रूप में दिखा.

 देश के अधिकांश शहरों में 30 मार्च और 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया. हालांकि इस हड़ताल का सबसे ज़्यादा असर पंजाब में देखने को मिला. 13 अप्रैल को लगभग शाम के साढ़े चार बज रहे थे, जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद क़रीब 25 से 30 हज़ार लोगों पर गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया. वो भी बिना किसी पूर्व चेतावनी के. ये गोलीबारी क़रीब दस मिनट तक बिना सेकंड रुके होती रही. जनरल डायर के आदेश के बाद सैनिकों ने क़रीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं. गोलियां चलाते-चलाते चलाने वाले थक चुके थे और 379 ज़िंदा लोग लाश बन चुके थे. (अनाधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि क़रीब एक हज़ार लोगों की मौत हुई थी और दो हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए थे).




क्या आप जानते हैं 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। साल 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।

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