मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Tuesday, September 15, 2020
अनमोल आँसू
आँसू अनमोल होता है। इन्हें सस्ते लोगों के सामने नहीं बहने दीजिये। वे ताना मारेंगे, कमजोर कहेंगे, मूर्ख और मंद बुद्धि भी समझेंगे। जब मन छलक उठे तो एकांत में बैठकर जब तक जी करे, रो लीजिये। फिर खुद के ही पीठ थपथपा कर अपने आप को चीयर कीजिये। यह दुनिया इतनी संवेदनशील नहीं कि आपके आँसू का मर्म समझ सके। कुछ लोग कहेंगे कि आप सहानुभूति पाना चाहते हैं, इसलिए रोने का अभिनय करते हैं। ऐसे लोगों के सामने भूल से भी न रोइए। ये भीतर से बेहद कातर और निष्ठुर लोग होते हैं। होता है कभी कभी दिल नहीं मानता, आप किसी पुराने के आगे भावविभोर हो जाते हैं। आप कलेजा फाड़ कर रोना चाहते हैं। फिर भी खुद को संभालिये। यह समाज पुरुषों पर कुछ ज़्यादा ही ज़्यादती करता है नहीं तो :क्या औरतों की तरह रोता है?' जैसे जुमले चलन में नहीं आते। पुरुष हो या स्त्री कलेजा सभी का फटता है। रोना सभी को आता है। जीवन के किसी नितांत निजी अवसाद या घुटन के क्षणों में आँसू बहने ही लगते हैं। आतुर हृदय संयम नहीं रख पाता। जब भी कभी ऐसा मौका आये तो प्रयास यही कीजियेगा कि किसी ओछे इंसान के कांधे पर आप आश्रित न रहें। क्योंकि आँसू अनमोल है, इन्हें सस्ते लोगों के सामने बहने नहीं दीजिये। #हीरेंद्र #जीवनकीपाठशाला
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2 comments:
बेहद भावुक पोस्ट
बिलकुल सही कहा।
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