Monday, February 08, 2021

ये रास्ते मुझे पहचानते हैं #हीरेंद्र

कितनी ही बेचैनियों को विक्रम और बैताल के विक्रम की तरह अपनी पीठ पर लादे हुए चल रहा हूँ. जहाँ मुँह खोलता हूँ वहीं वो बैताल मुझे छोड़ कर फिर-फिर उड़ जाता है. मैं भी उसके पीछे-पीछे एक अभिशप्त की तरह हो लेता हूँ. बस यही एक संतोष है कि रास्ते के गड्ढे, ठोकर, धूल, काँटे  ये सब मुझे अब पहचानने लगे हैं. मैं नहीं जानता कि इस पहचान का हासिल आख़िर क्या है? हाँ, इतना ज़रूर जानता हूँ कि जान-पहचान से ही बड़े-बड़े काम बनते हैं. #हीरेंद्रकीडायरी

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विदा 2021

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