मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Monday, February 08, 2021
ये रास्ते मुझे पहचानते हैं #हीरेंद्र
कितनी ही बेचैनियों को विक्रम और बैताल के विक्रम की तरह अपनी पीठ पर लादे हुए चल रहा हूँ. जहाँ मुँह खोलता हूँ वहीं वो बैताल मुझे छोड़ कर फिर-फिर उड़ जाता है. मैं भी उसके पीछे-पीछे एक अभिशप्त की तरह हो लेता हूँ. बस यही एक संतोष है कि रास्ते के गड्ढे, ठोकर, धूल, काँटे ये सब मुझे अब पहचानने लगे हैं. मैं नहीं जानता कि इस पहचान का हासिल आख़िर क्या है? हाँ, इतना ज़रूर जानता हूँ कि जान-पहचान से ही बड़े-बड़े काम बनते हैं. #हीरेंद्रकीडायरी
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