Monday, May 06, 2019

दु:ख का रंग

दुःख को अगर अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कौन सा रंग चुनेगा?  काला? काला दुःख का नहीं, विश्वास का रंग है. माँ जैसे अपने बेटे के माथे पर काला टीका लगाकर निश्चिंत हो जाती है कि अब मेरे मुन्ने को कुछ नहीं होगा. मतदान के बाद अंगुलियों पर काला निशान भी तो एक भरोसे का ही नाम है. तो फिर दु:ख का रंग कैसा होता होगा? मैंने देखा है एक सुहागन का सफेद दुःख, हरे पत्ते का पीला दुःख, किसी के दामन पर दु:ख के लाल छींटे, गुलाबी दु:ख ही नहीं इंद्रधनुष को भी देख कोई किसी की याद में दु:खी हो सकता है! जैसे हर रंग के सुख.. वैसे ही हर रंग के दु:ख..दु:ख का अपना कोई रंग नहीं.. दु:ख को अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कोरे कागज के रंग चुनेगा, सूनी आंखों का रंग चुनेगा.. रूक गई सांसों का रंग चुनेगा.. बुझे चिराग का रंग चुनेगा.. जलती चिता का रंग चुनेगा.. किसी के इंतज़ार का रंग चुनेगा.. इस सिलसिले का कोई अंतहीन रंग चुनेगा.. #हीरेंद्रकीडायरी

Thursday, April 04, 2019

बैठकर कविता मत लिखना

जिस तरफ कोई न दिखे उस तरफ तुम चलना..
जो सफर को निकलो तो कोई नक्शा साथ मत रखना..

रात को जो जागते हो तो इसमें कोई बात नहीं
लेकिन, ये ध्यान रहे कि दिन में कभी मत सोना..

पूछे जो कोई हाल तो कह देना कि सब अच्छा है..
अपना दर्द कभी किसी से भूलकर भी मत कहना..

चालाकियां करेंगे सभी तुमको इस्तेमाल करते हुए
उनसे दूर भले हो जाना बोझ दिल पर मगर मत रखना..

शाम को ज़ाहिर है तुम्हें उसकी याद आयेगी..
उसको फोन कर लेना, बैठकर कविता मत लिखना :) #हीरेंद्र

Wednesday, April 03, 2019

एक प्रेमी की डायरी

हम दोनों तब बेमतलब सी बातों पर देर तक हँसा करते थे.. फोन उठाने में एक पल की भी देरी होती तो बेचैनी बढ़ जाती.. कोई मैसेज आ जाता तो अपने आप हम मुस्कुरा देते. जो मिलते तो देर तक अपने बदन में उसकी खुश्बू महसूस करते..जो न मिल पाते तो शामें उदास हो जातीं.. और भी बहुत कुछ मीठा मीठा हुआ करता. वे नादानियों के दिन थे.. वे मोहब्बत के दिन थे.. तब हमें एक चाय और एक कोल्ड कॉफी से ज्यादा की दरकार नहीं हुआ करती थी.. सच कितने प्यारे दिन थे वे.. हमारे दिन थे वे! उन्हीं दिनों को ताउम्र जी सकें इसी आस में हमने एक यात्रा शुरू की.. यात्राओं की पहली शर्त यही होती है कि नादान बने रहने से काम नहीं चलने वाला.. आप होशियार होने लगते हैं.. आप कुछ और होने लगते हैं! इन सबके बीच कुछ छूटने लगता है.. कई बार हम समझ भी नहीं पाते कि क्या छूट गया है और क्या छोड़ आये हैं.. #हीरेंद्र #एकप्रेमीकीडायरी

Monday, April 01, 2019

मूर्ख दिवस का जश्न

अपनी कमियों को यूं छुपाया दुनिया ने
मूर्ख दिवस का जश्न मनाया दुनिया ने

सुबह का भूला शाम को वापस लौटा है
इस जुमले को खूब भुनाया दुनिया ने

सफर में निकलो तुम पूरी तैयारी से
गिर जाने पर किसे उठाया दुनिया ने

तेरे बाद बड़ी मुश्किल से संभला था
पूछ पूछ कर खूब रूलाया दुनिया ने

मैं भी धीरे-धीरे सबको भूल गया
और एक दिन मुझे भुलाया दुनिया ने #हीरेंद्र

Sunday, March 31, 2019

रविवारनामा 2

आज कमीज में बटन लगाते हुए माँ की बहुत याद आई. वो चश्मा पहने सुई में धागा डालती माँ कितनी क्यूट लगती थी. अब कभी किसी शर्ट का बटन टूट जाये तो वो महीनों यूं ही पड़ा रहता है. कई बार तो मैं जान बूझकर भी उसे टाले रहता हूँ कि किसी इतवार के दिन जब अकेले होऊंगा तब लगा लूँगा बटन.. कि इसी बहाने फिर से जी लूँगा अपने हिस्से का बचपन #रविवारनामा #हीरेंद्र

Saturday, March 30, 2019

रविवारनामा

रविवार. ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत पल कभी इसी के हिस्से आते रहे हैं! बचपन में इस दिन का एक अलग ही जादू हुआ करता. ये भी गजब था कि हम रविवार को रोज से पहले ही जग जाया करते. नींद अपने आप टूट जाती,जबकि हम कुछ घंटे और सो सकते थे. आज भी छुट्टी के दिन सुबह जल्दी ही आँख खुल जाती है. लेकिन, वो आकर्षण अब कहाँ?

टीवी पर जब रंगोली के सुरीले गीत बजने लगते तो इस बात की तसल्ली हो जाती कि आज मोगली भी आयेगा! रामायण, महाभारत, श्री कृष्णा और चंद्रकांता के दिन थे वो.. अर्जुन जब तीर चलाते और एक तीर से ही सैकड़ों तीर निकलकर दुष्टों का संहार करता तो हम एकटक देखा करते. कभी तीर आग उगलता तो कभी साँप बनकर हवा में उड़ने लगता. कभी कभी तो वो त्रिशुल भी बन जाया करता. अद्भुत था सब!

इतवार तब किस्से और कहानियों का दिन हुआ करता. खाने और खेलने का दिन. धूप-बारिश, सर्दी-गर्मी से बेपरवाह पड़ोसियों की नाक में दम किये रहते. क्रिकेट खेलते, साइकिल चलाते, सीटी बजाते.. चीखते-चिल्लाते उधम मचाते!

तब आज की तरह न तो कमरे की साफ सफाई की चिंता थी और न ही कपड़े धोने की फिक्र. ले देकर बस एक रविवार था.. और सब रविवारमय! स्कूल और होमवर्क की टेंशन भी हम अपने आस-पास नहीं फटकने देते थे..

मस्ती से भरपूर था इतवार, थकन से चूर था इतवार. कि पूरे सप्ताह हमें रहता था इस दिन का इंतज़ार...

ये भी सच है कि आज भी आता है ये रविवार. लेकिन, अब ये संडे है. अब ये सिर्फ एक ब्रेक है.. अंग्रेज़ी में ब्रेक का एक मतलब तोड़ना भी होता है. अकेले रहने वाले इस दिन थोड़ा टूटते भी होंगे? #रविवारनामा #हीरेंद्र

Thursday, February 21, 2019

नज़्म

मैं जिधर से भी गुज़रता हूँ...
एक नज़्म छोड़ता हुआ
आगे बढ़ता जाता हूँ ...
ताकि जब कभी तुम
मुझ तक पहुँचना चाहो
तो रास्ता न भटको...
नज़्म के निशान देख..
मुझ तक पहुंच सको!
जो न आना चाहो
तो भी कोई बात नहीं..
कम से कम
नई नज़्म लिखने की वजह तो बनी रहेगी!
मैं लिखता रहूँगा
इस आस में कि
एक दिन तुम ज़रूर आओगी....

आज इतना ही, शेष मिलने पर

- तुम्हारा ही #हीरेंद्र

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...