जादुई धूप में
पार्क की बेंच पर बैठा....
कुछ महिलाओं को स्वेटर बुनते देख रहा हूँ...
वक्त का रेशा-रेशा
ऊनी गोले के धागे सा
लुढ़क रहा है....
पार्क की बेंच पर बैठा....
कुछ महिलाओं को स्वेटर बुनते देख रहा हूँ...
वक्त का रेशा-रेशा
ऊनी गोले के धागे सा
लुढ़क रहा है....
कुछ बच्चे फुटबॉल खेल रहे...
चोट खाकर भी गेंद मचल रहा है..
फुदक रहा है...
जश्न मना रहा है...
चोट खाकर भी गेंद मचल रहा है..
फुदक रहा है...
जश्न मना रहा है...
कुछ लड़कियां बैटमिंटन थामे...
हर भार को धता बताकर...
शटल को नहीं
बल्कि अपनी
उम्मीदों को उछाल रही हैं...
हर भार को धता बताकर...
शटल को नहीं
बल्कि अपनी
उम्मीदों को उछाल रही हैं...
एक गोरी सी लड़की...
काले लिबास में
अपने बालों को सुखाती...
लटों को सुलझाती...
खुशबू बिखेरती...
समय को रोके बैठी है....
उधर अंकल जी
अखबार पकड़े ऊंघ रहे हैं....
इधर हीरेंद्र
मोबाइल के कीबोर्ड से
खेल रहे हैं...
अखबार पकड़े ऊंघ रहे हैं....
इधर हीरेंद्र
मोबाइल के कीबोर्ड से
खेल रहे हैं...
जादुई धूप में....
हीरेंद्र झा # Hirendra Jha
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