Thursday, September 19, 2013

एक्सक्यूज मी! सुनकर किनारे हट गया यह सो़च कर कि पीछे वाले को उतरना है शायद..आए दिन मेट्रो में ये घटना सामान्य है..लेकिन, आज आवाज़ कुछ जानी-पहचानी थी!! दोनों की नज़रें एक पल को मिली और उसी एक पल में मैं छः साल पीछे चला गया! जब उससे आखरी बार बात हुई थी...इससे पहले कि कुछ कहता उसने टोक ही दिया- आप? कैसे हैं? खुश हूँ...तुम कहो? अच्छी हूँ! ह्म्म्म...अच्छी नहीं बहुत अच्छी हो आज भी, मैंने छेड़ते हुए कहा..दोनों हँसते हैं..फिर, ध्यान आया कि उसका स्टेशन जा चुका है...पर उसे अफ़सोस नहीं था...लगभग, छः साल बाद आज मिलना हुआ ..फिर, हम लोग काफी देर तक राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर बतियाते रहे...मैंने कहा कि फेसबुक पर तो तुमने मुझे ब्लाक कर रखा है पर रेडियो पर तुम्हारा प्रोग्राम मैं रोज़ सुनता हूँ!! क्या कहती...कहा कि आपका मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर काँटा सा चुभता है..इसलिए ब्लाक कर रखा है| फिर, एक एक कर कई परतें खुलती गयी...मुझे याद है हमारी आखिरी मुलाक़ात..बहुत सारी खटास थी दोनों के मन में...फिर, वक्त की आपाधापी में हम कभी रूबरू हो न सके..रूबरू तो छोडिये, कभी गुफ्तगू भी न हो सका...आज न मालुम क्यों दोनों ने एक दूसरे को सॉरी भी कहा...अब चलती हूँ..बहुत देर हो रही है...मेरा नंबर होगा आपके पास शायद| नहीं तो...फिर, उसने अपना नम्बर बताया..यह कहते हुए कि बदल न सकी , इस उम्मीद में कि कभी तुम कॉल करो शायद ...आप से तुम पर आ गयी थी हमारी ये मुलाक़ात...क्या कहता- बस इतना ही कह सका ...हाँ, ठीक है जाओ...अब बहुत देर हो गयी है...

Monday, July 15, 2013

" भारत निर्माण"

हम सब अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी ईमानदारी से निभाएँ...आओ नया इंडिया बनाएँ.." वे लोग बेशक न कर पा रहे हों " भारत निर्माण", हम ही बना लें एक नया हिन्दुस्तान.."

एक अलग तरह का शून्य

शून्य में उतर जाने के लिए कुछ लोग नशा करते हैं..कुछ समाधि और कुछ योग भी, कुछ सम्भोग भी! पर, कभी काम में डूब कर देखिये..एक अलग तरह का शून्य उभरता है..कुछ नहीं दिखता, कुछ नहीं मालुम पड़ता..आप अपनी ही एक दुनिया में होते हैं..आप सबको मिस करता हूँ..कुछ लोगों की लेखनी नहीं पढ़ पाने का मलाल रहता है..

Monday, May 21, 2012

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा / वसीम बरेलवी

मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा

Saturday, May 19, 2012

जर्मनी के पस्टोर मार्टीन निमोलर की एक कविता याद आती है, जो उन्होने-"फर्स्ट दे कम " के नाम से लिखी है। 

जब नाज़ी कम्यूनिस्टों के पीछे आए,
मैं खामोश रहा
क्योकि, मैं कम्यूनिस्ट नहीं था
जब उन्होंने सोशल डेमोक्रेट्स को जेल में बंद किया
मैं खामोश रहा
क्योकि, मैं सोशल डेमोक्रेट नहीं था
जब वो यूनियन के मजदूरों के पीछे आए
मैं बिलकुल नहीं बोला
क्योकि, मैं मजदूर यूनियन का सदस्य नहीं था
जब वो यहूदियों के लिए आए
मैं खामोश रहा
क्योकि, मैं यहूदी नहीं था
लेकिन,जब वो मेरे पीछे आए
तब, बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
क्योंकि मै अकेला था।
दूर जब तुम थे, स्वयं से दूर मैं तब जा रहा था,

पास तुम आए जमाना पास मेरे आ रहा था

तुम न थे तो कर सकी थी प्यार मिट्टी भी न मुझको,

सृष्टि का हर एक कण मुझ में कमी कुछ पा रहा था,

पर तुम्हें पाकर, न अब कुछ शेष है पाना इसी से

मैं तुम्हीं से, बस तुम्हीं से लौ लगाना चाहता हूं।

मैं तुम्हें, केवल तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥ 

गोपालदास "नीरज"

Monday, February 27, 2012

ये सच है की तुम्हे मैंने अपनी जिंदगी माना
ये भी सच ही है कि- जिंदगी का कोई भरोसा नहीं!!!
बड़ा विरोधाभाष है...खैर...अपना ख्याल रखना ऐ जिंदगी!!!

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...