Thursday, February 21, 2019

नज़्म

मैं जिधर से भी गुज़रता हूँ...
एक नज़्म छोड़ता हुआ
आगे बढ़ता जाता हूँ ...
ताकि जब कभी तुम
मुझ तक पहुँचना चाहो
तो रास्ता न भटको...
नज़्म के निशान देख..
मुझ तक पहुंच सको!
जो न आना चाहो
तो भी कोई बात नहीं..
कम से कम
नई नज़्म लिखने की वजह तो बनी रहेगी!
मैं लिखता रहूँगा
इस आस में कि
एक दिन तुम ज़रूर आओगी....

आज इतना ही, शेष मिलने पर

- तुम्हारा ही #हीरेंद्र

Wednesday, January 16, 2019

Personality Development

*How can I improve myself within a month?*

*20 ideas -:*

    1. Detoxify your speech. Reduce the use of negative  words. Be polite.
    2. Read everyday. Doesn’t matter what. Choose whatever interests you.
    3. Promise yourself that you will never talk rudely to your parents. They never deserve it.
    4. Observe people around you. Imbibe their virtues.
    5. Spend some time with nature everyday.
    6. Feed the stray animals. Yes, it feels good to feed the hungry.
    7. No ego. No ego. No ego. Just learn, learn and learn.
    8. Do not hesitate to clarify a doubt. “He who asks a question remains fool for 5 minutes. He who does not ask remains a fool forever”.
    9. Whatever you do, do it with full involvement. That’s meditation.
    10. Keep distance from people who give you negative vibes but never hold grudges.
    11. Stop comparing yourself with others. If you won’t stop, you will never know your own potential.
    12. The biggest failure in life is the failure to try. Always remember this.
    13. “I cried as I had no shoes until I saw a man who had no feet”. Never complain.
    14. Plan your day. It will take a few minutes but will save your days.
    15. Everyday, for a few minutes, sit in silence. I mean sit with yourself. Just yourself. Magic will flow.
    16. In a healthy body resides a healthy mind. Do not litter it with junk.
    17. Keep your body hydrated at all times. Practice drinking 8–10 glasses of water.
    18. Make a habit to eat at least one serving of raw vegetable salad on a daily basis.
    19. Take care of your health. He who has health has hope and he who has hope has everything.
    20. Life is short. Life is simple. Do not complicate it. Don’t forget to smile.

Keep reading this daily at least once...😊🙏🏻

Friday, January 04, 2019

एक मृतक की डायरी -2 #हीरेंद्र झा

मुझे यह समझने में बहुत समय लगा कि कुछ लोगों में E. Q (Emotional Quotient) 'भावनात्मकता' की मात्रा ज्यादा होती है तो कुछ लोगों में  I. Q (Intelligence Quotient)  यानी 'बुद्धिमता' का जोर ज्यादा चलता है.

ये दो रवैये वाले लोग पूरी ज़िन्दगी एक दूसरे पर एक दूसरे को ना समझने का आरोप मढ़ते हुए ताउम्र अवसाद में गुजार देते हैं. ये वास्तव में समस्या को पहचान ही नहीं पाते और समाधान तलाशा करते हैं..

नतीजा कलह, अशांति और नाकामयाबी..

जरूरत है  EQ और  IQ के अंतर को सहजता से स्वीकारना.. किसी को बदलना उसके डीएनए को बदलने की तरह होता है..

तो  EQ या IQ को बढ़ाना और एक संतुलन बना पाना, एक परिचित बिंदु तलाश लेना.. उस रिश्ते को भी बचा लेता है! 

याद रहे औरों से संबंध मधुर होंगे तभी जीवन सुखी और सफल हो सकता है..वर्ना छटपटा तो हम पिछले जनम से रहे हैं.. #एकमृतककीडायरी से #हीरेंद्र

Thursday, January 03, 2019

एक लेखक का अंत #हीरेंद्र झा

शुरू शुरू में जब दोनों मिले तो एक अलग ही तरह की खुमारी थी.

वो आज भी याद करता है कि वो कुछ भी अनर्गल लिख देता और वो लड़की उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ने लगती. तारीफ का असर कुछ ऐसा हुआ कि लड़का लिखने लगा.. लगातार लिखता रहा.. और वो लड़की भी उसे मन से पढ़ती.. मन से सुनती.. मन से सराहती..

लिखने वाले लड़के के लिए यह अहसास नया था.. और उसकी तारीफ सुनने के लिए पढ़ने लगा.. लिखने लगा..

उसने चांद तारों पर लिखा, फूल पत्तियों पर लिखा.. दिल और दरिया पर लिखा.. मिलन और जुदाई पर लिखा..

धीरे धीरे उसने दायरा बढ़ाया और फिर उसने जीवन और दुनिया पर लिखना शुरू किया..

एक लड़की को खुश करने के हुनर से वह दूसरे पाठकों को भी समझने लगा.. वो निखरता गया..

वो लिखने के पेशे से जुड़ा..अब वो क्लाइंट के हिसाब से लिखने लगा.. क्लाइंट पैसे तो दे देता पर तारीफ नहीं किया करता.. वो बेचैन रहने लगा.. वो लिखता रहा पर अब वैसी तारीफ उसकी कोई नहीं करता..

वो लड़की भी अब तक इस लेखक की तारीफ करना छोड़ चुकी थी.. दस साल में ज़ाहिर सी बात है कि लड़का अब ज्यादा बेहतर लिखने लगा.. समय ने उसे एक लेखक के रूप में स्थापित कर दिया..

लेकिन, फिर उसने एक दिन लिखना छोड़ दिया.. जो चीज उसे सबसे ज्यादा खुशी देती थी वो उससे यानी लेखन से दूर होता गया..

वो समझ ही नहीं पाया कि ऐसा क्यों हुआ.. वो बेचैन रहता.. एक दिन उसने निराशा के गहनतम क्षण में उस लड़की को उलाहना देते हुए कहा कि अब तुम मेरे लिखे की तारीफ भी नहीं करती??

लड़की ने तपाक से उत्तर दिया कि अच्छा तो तुम तारीफ पाने के लिए लिखते हो?

उसने इस तरह के जवाब की आशा नहीं की थी..

फिर वो देर तक सोचता रहा कि भला वो क्यों लिखता था.. उसे यह तय करने में कोई मुश्किल नहीं हुई कि वो तो बस उस लड़की की तारीफ सुनने के लिए ही लिखता रहा..

जब वो विस्मय भाव से उसे उसके लिखे का मतलब समझा रही होती.. तो उसे लगता कि उसका लिखना सार्थक हुआ..

लेकिन,  अब वह जान गया है कि वो अनर्गल और निरर्थक ही लिखता रहा है.. अब उसने लिखना छोड़ दिया है.. अब वो पागल हो गया है!#लघुकथा #एकलेखककाअंत #हीरेंद्र

Monday, December 31, 2018

2018 के फ़िल्मों के नाम की कहानी





प्यारी 'परी',

मैंने किसी से सुना कि आज तुम्हारे भाई की शादी है. तो सबसे पहले तुम्हें तुम्हारे 'वीरे दी वेडिंग' के मौके पर बहुत बहुत 'बधाई हो'.. आज सुबह से ही मुझे 'हिचकी' आ रही थी और बार-बार अपना 'पास्ट' भी याद आ रहा है.
याद है सब हमें 'लैला मजनूं' कहा करते थे और तुम्हारा निक नेम लेकर तुम्हें छेड़ते कि 'हैप्पी फिर भाग जायेगी' और मेरे दोस्त मुझे 'भैय्या जी सुपरहिट ' कहकर चिढ़ाते! मैं भी अपना 'दिल जंगली' किये 'फन्ने ख़ान ' बना फिरता.

लेकिन, 'ऑक्टूबर' का महीना आते ही जैसे कोई 'परमाणु' बम फूट पड़ा. '1921' के एक पुराने केस में तुम्हारे '102 नॉट आउट ' दादाजी को जब 'मुल्क' ने 'मंटो' के साथ मिलकर 'नमस्ते इंगलैंड' कहने का दोषी पाया तो मैं समझ ही न सका कि क्या करूँ? 'यूनियन लीडर' से लेकर 'साहेब बीबी और गैंगस्टर ' तक उस 'निर्दोष' के पीछे पड़ गये. तुम्हारे घर पर 'रेड' पड़ा. हर तरफ से 'अंधाधुन' हमले होने लगे. वो तो भला हो 'संजू' और 'भावेश जोशी' का जिन्होंने अपने 'पल्टन' के साथ 'केदारनाथ' से आकर मोर्चा संभाल लिया. दो साल की बच्ची 'पीहू' की गवाही भी काम आई जिससे फिर किसी की 'मनमर्जियां' नहीं चल सकी. आखिरकार ये साबित हो ही गया कि 'नमस्ते इंगलैंड' कहने का दोषी वास्तव में वो 'बाइस्कोप वाला' था.

मुझे लगा कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा. लेकिन, पता नहीं हमारी लव स्टोरी कैसे 'हेट स्टोरी' बन गई. पता नहीं मैं तुम्हें क्यों नहीं समझा पाया कि 'सोनू के टीटू की स्वीटी ' से मेरा कोई रिश्ता नहीं. वो तो उस दिन 'नानू की जानू' की ज़िद पर मैं 'बाज़ार' जाकर 'पैडमैन' से उसके लिए 'सुई धागा' लेकर गया था. लेकिन, वो तो मुझे अपना 'लवयात्री ' मान बैठी.

तुम तो नाराज़ हुई तुम्हारा 'मुक्काबाज' भाई भी 'बागी' निकला. जो 'गोल्ड' मैंने तुमसे शादी के लिये इतने अरमानों से जमा किये थे उस 'नवाबजादे' को लगता है कि वो मैंने चुराये हैं. वो मुझे 'ठग्स ऑफ हिंदुस्तान ' गिरोह का आदमी समझने लगा है.

मेरी हालत इन दिनों बिल्कुल ही 'बत्ती गुल मीटर चालू' की तरह हो गई है. कुछ लोग तो अब गोल्ड के लिये मुझे 'ब्लैकमेल' भी कर रहे हैं. 'पद्मावत' फ़िल्म के विरोध की तरह ही बिना बात मेरे पीछे पड़े हैं.

क्या कहूँ. कम लिखे को ज्यादा समझना. तुम 'राज़ी' खुशी से रहो मैं इसी में संतुष्ट हूँ. लेकिन, याद रहे मेरा दिल आज भी सिर्फ तेरे लिये ही 'धड़क' ता है. मुझे यकीन है कि अगर 'सत्यमेव जयते ' का नारा सच्चा है तो एक दिन मैं जरूर साबित कर दूँगा कि तुम्हारा ये 'जीनियस', तुम्हारा ये 'सूरमा' ज़ीरो नहीं है.

मेरे इस प्रेमपत्र को ये न समझना कि मैं वोडका पीकर डायरी लिख रहा हूँ.'कुछ भींगे अल्फाज़ ' हैं जो हो सकता है तुम्हें मेरी 'ऐय्यारी' भी लगे! तुम्हारा ये 'दासदेव' अब 'काशी' के रास्ते 'कालाकांडी' जा रहा है. ज़िंदगी के 'रेस' में शायद हमारा 'कारवां' यही तक था.

तुम्हारा 'सिंबा'

इस साल बड़ी और छोटी मिलाकर बॉलीवुड में लगभग 98 फ़िल्में रिलीज़ हुई हैं. मेरी इस चिट्ठी में 60 से ज़्यादा फ़िल्मों के नाम शामिल हैं. उम्मीद है आप सबको ये चिट्ठी पसंद आएगी। #आपकाहीरेंद्र #विदा2018

Sunday, September 23, 2018

बचपन को समझें

चढ़ गया ऊपर रे, अटरिया पे लोटन कबूतर रे!! सरकाय लियो खटिया जाड़ा लगे, सैयां के साथ मडैया में, बड़ा मजा आया रजैया में, चोली के पीछे क्या है ...

जब मैं आठ, दस, बारह साल का था तो इसी तरह के गाने सुनता हुआ बड़ा हो रहा था. उस दौर में ऐसी ही फिल्में और गाने बना करते. कुल्फी वाला ठेले पर चोंगा लगाये यही सब बजाता घुमा करता. या फिर कहीं सरस्वती पूजा या विश्वकर्मा पूजा या ऐसे ही किसी अवसर पर ये गीत सुनने को मिलते. शायद यही वजह रही होगी कि मैं कभी हिंदी फिल्मों के गीतों से एक दीवाने की तरह न जुड पाया. जब अक्ल बढ़ी और साधन सहज हुए तब गीतों को नए सिरे से चुन-चुन कर सुना, जाना, पसंद भी किया. उसी दौर में हमारे अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री एक घटिया प्रसाद यादव हुआ करते थे. बिहार दिनों दिन गर्त में जा रहा था. हर तरफ एक निराशा और दहशत का माहौल था. बाबरी मस्जिद का टूटना भी याद है. नौ साल का था तब. मसलन ये कि उस दौर की राजनीति, फिल्मों और समाज ने एक बढ़ते हुए बच्चे को भटकाने की पूरी कोशिश की लेकिन वो बच्चा उन सबसे लड़ते हुए थोड़ा बहुत बचा रह गया. कहीं न कहीं एक ऐसा समाज हमें मिला जो घोर रूप से जातिवादी, भौतिकवादी और भ्रष्ट रहा है. इसका असर हमारे व्यक्तित्व पर भी पड़ा ही होगा. आज मैं तय कर पाता हूँ, गलत क्या था और सही क्या. पर आठ, दस साल की उम्र में कहाँ इतनी  समझ थी. बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ इस विषय पर. लिखूंगा भी. आज बस ये कहना है कि बच्चों को समझिए, उनके साथ वक्त गुजारिये. वो आपको किताबों के पन्ने पलटते हुए देख सकें, वो आपको खुल कर हँसते हुए देख सकें, आपको गाते-गुनगुनाते देख सकें, आपका आत्मविश्वास, आपकी नरमी, आपकी संवेदना उन्हें  छू पाए...तभी, सिर्फ तभी आप बचा पाएंगे इस समाज को, दुनिया को, बचपन को!! उन्हें हर तरह की फिल्में दिखाइए, किताबें दीजिए. नम्बर लाने के दवाब से मुक्त रखिए. ज़िन्दगी को पढ़ना ज्यादा ज़रुरी है. सपने देखने का हौसला दीजिए वगैरह, वगैरह...चार दिन बाद आज थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा कुछ बात की जाए, आप सबसे. #आज इतना ही

#हीरेंद्र

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...