हीरेंद्र झा, मुंबई
मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Friday, July 19, 2019
नागों के बारे में कुछ दिलचस्प बातें! #हीरेंद्र
हीरेंद्र झा, मुंबई
Friday, July 12, 2019
Movie Review: Super 30
हाल के पांच, सात वर्षों में मुझे ध्यान नहीं पड़ता कि किसी फिल्म ने इस कदर छुआ हो.. रितिक रौशन दिल जीत लेते हैं. ये फिल्म हमें बार बार इमोशनल कर जाती है, एक बेहतर इंसान बनाती है..दूसरों के बारे में सोचना सिखाती है.. एक उम्मीद देती है..एक भरोसा जगाती है..
ये फिल्म आप अपने परिवार के साथ देख सकते हैं और मैं गारंटी के साथ यह कह सकता हूँ कि आप निराश नहीं होंगे.. ठीक है.. थैंक्यू

Friday, June 28, 2019
एक छोटी सी कविता
वो आये तो खुशी आई
जैसे मिलने ज़िंदगी आई
इश्क के अंगूर खट्टे थे
दोस्ती से चाशनी आई
जवानी में रहे हैरान बहुत
गई उम्र तो आशिकी आई
रंग सारे देख लिए उसने
बालों में तब सफेदी आई
जब भी सफर में थकने लगा
ख्यालों में फिर बेटी आई #हीरेंद्र
Tuesday, June 25, 2019
कबीर सिंह मूवी
कबीर सिंह फिल्म में कबीर का किरदार निभाने वाले शाहिद कपूर जहाँ और जब मन आये मूतने लगता है.. मैं इस फिल्म को 'गुड' या 'बेड' के खांचे में रख कर नहीं देखता.. लेकिन, यह फिल्म जरूर देखी जानी चाहिये.. और देखने के बाद इस फिल्म से उपजे भावों पर मूत करके आगे बढ़ जाना चाहिए.. कबीर सिंह हीरो नहीं है.. लेकिन, कबीर सिंह इस समाज का एक घिनौना सच है.. कबीर सिंह जिसे प्यार समझता है दरअसल वो उसकी सनक है.. जिसमें वो खुद के सिवा किसी और को नहीं देखना चाहता!! #हीरेंद्र
Saturday, June 22, 2019
दार्जिलिंग #एक यादगार यात्रा
'घूम' जहाँ हम रुके थे वहां कई बौद्ध मठ हैं.
टॉय ट्रेन यहाँ की लाइफलाइन है. किराया महंगा है लेकिन इस ट्रेन में सफर करते हुए पहाड़ियों से गुजरना स्वर्गलोग के सैर करने की तरह है.
मिरिक के चाय बागान बेहद मनमोहक हैं. वहां के पारंपरिक परिधान में हम सब खूब जंच रहे थे.
दार्जिलिंग का माल रोड भी रौनक से भरा रहा.
गेस्ट हाउस से निकलते समय हमें वहां पारम्परिक तरीके से स्टॉल पहनकर सम्मान किया गया.
वहां से लौटते हुए हम नेपाल भी छू आये.
कुल मिलाकर ख़ुशी, शालिनी और एक करीबी दोस्त संग यादगार रही हमारी यात्रा।
Tuesday, May 07, 2019
मैं ही आने वाला कल!!
मैं पायल, मैं झूमर, मैं महबूबा का काजल
मैं पागल, मैं बादल, मैं प्यासों का गंगाजल ..
मैं अम्बर, मैं सागर, मैं ही अम्मा का आँचल..
मैं हूँ बल, मैं ही दल , मैं ही किसान का बैल और हल ..
मैं ही गीत, मैं ही प्रीत, मैं ही रेशम से लिखी गज़ल..
मैं हूँ पल, मैं हूँ फल , मैं ही आने वाला कल!!- हीरेंद्र
(7 मई 2012)
Monday, May 06, 2019
दु:ख का रंग
दुःख को अगर अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कौन सा रंग चुनेगा? काला? काला दुःख का नहीं, विश्वास का रंग है. माँ जैसे अपने बेटे के माथे पर काला टीका लगाकर निश्चिंत हो जाती है कि अब मेरे मुन्ने को कुछ नहीं होगा. मतदान के बाद अंगुलियों पर काला निशान भी तो एक भरोसे का ही नाम है. तो फिर दु:ख का रंग कैसा होता होगा? मैंने देखा है एक सुहागन का सफेद दुःख, हरे पत्ते का पीला दुःख, किसी के दामन पर दु:ख के लाल छींटे, गुलाबी दु:ख ही नहीं इंद्रधनुष को भी देख कोई किसी की याद में दु:खी हो सकता है! जैसे हर रंग के सुख.. वैसे ही हर रंग के दु:ख..दु:ख का अपना कोई रंग नहीं.. दु:ख को अपने लिये कोई रंग चुनना हो तो वो कोरे कागज के रंग चुनेगा, सूनी आंखों का रंग चुनेगा.. रूक गई सांसों का रंग चुनेगा.. बुझे चिराग का रंग चुनेगा.. जलती चिता का रंग चुनेगा.. किसी के इंतज़ार का रंग चुनेगा.. इस सिलसिले का कोई अंतहीन रंग चुनेगा.. #हीरेंद्रकीडायरी
विदा 2021
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...

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"हम हैं बच्चे आज के बच्चे हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे हम जानते हैं झूठ और सच हम जानते हैं गुड टच, बैड टच मम्मी, पापा जब...
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साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...
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मुझे याद है बचपन में हमारे मोहल्ले में एक बांसुरी वाला आया करता था। उसके पास एक डंडा हुआ करता जिस पर अलग अलग रंग और आकार के छोटे बड़े कई बांस...