मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Thursday, April 03, 2014
Thursday, March 27, 2014
ये संसद है यहाँ भगवान का भी बस नहीं चलता
ये संसद है यहाँ भगवान का भी बस नहीं चलता
जहाँ पीतल ही पीतल हो वहाँ पारस नहीं चलता
यहाँ पर हारने वाले की जानिब कौन देखेगा
सिकन्दर का इलाक़ा है यहाँ पोरस नहीं चलता
दरिन्दे ही दरिन्दे हों तो किसको कौन देखेगा
जहाँ जंगल ही जंगल हो वहाँ सरकस नहीं चलता
हमारे शहर से गंगा नदी हो कर गुज़रती है
हमारे शहर में महुए से निकला रस नहीं चलता
कहाँ तक साथ देंगी ये उखड़ती टूटती साँसें
बिछड़ कर अपने साथी से कभी सारस नहीं चलता
ये मिट्टी अब मेरे साथी को क्यों जाने नहीं देती
ये मेरे साथ आया था क्यों वापस नहीं चलता...
मुन्नवर राणा जी के साथ मैं
जहाँ पीतल ही पीतल हो वहाँ पारस नहीं चलता
यहाँ पर हारने वाले की जानिब कौन देखेगा
सिकन्दर का इलाक़ा है यहाँ पोरस नहीं चलता
दरिन्दे ही दरिन्दे हों तो किसको कौन देखेगा
जहाँ जंगल ही जंगल हो वहाँ सरकस नहीं चलता
हमारे शहर से गंगा नदी हो कर गुज़रती है
हमारे शहर में महुए से निकला रस नहीं चलता
कहाँ तक साथ देंगी ये उखड़ती टूटती साँसें
बिछड़ कर अपने साथी से कभी सारस नहीं चलता
ये मिट्टी अब मेरे साथी को क्यों जाने नहीं देती
ये मेरे साथ आया था क्यों वापस नहीं चलता...
मुन्नवर राणा जी के साथ मैं
Wednesday, February 05, 2014
एक चिड़िया को प्रेम हो गया! उसे बिल्कुल भी भान न था कि जिस शख्स से वो प्यार कर बैठी है वो कोई चिड़ीमार है! चिड़िया के पास ढेरो सुनहरे पंख थे, ज़ाहिर है चिड़ीमार के पास अब पैसों की कोई कमी नहीं रही! सोने की खान पर बैठी चिड़िया कब सोने के पिंजरे में क़ैद हो गयी उसे अंदाजा ही न हो सका! वो बीमार रहने लगी। उसके पर कतरे जा चुके थे! उसे आभास हो गया कि अब जाना है! अलविदा दुनिया! प्रेम करना और निभा पाना कहाँ सबके बस की बात है? आज जाने दो, अभी थोड़ा वक़्त लगेगा किसी पर दुबारा भरोसा करने में! मैं जल्दी ही आउंगी एक बार फिर से सच्चे प्रेम की तलाश में! उम्मीद करती हूँ अगली बार यूँ टूटकर नहीं बिखरुंगी! क्या कहा कुछ ज्यादा मांग लिया क्या मैंने?
(एक अधूरी प्रेम कथा, इसे किसी घटना से जोड़कर न देखें! - हिरेन्द्र )
(एक अधूरी प्रेम कथा, इसे किसी घटना से जोड़कर न देखें! - हिरेन्द्र )
Thursday, September 19, 2013
मेरे मोबाइल तुम्हे ढेर सारा प्यार
कभी
भी बोल उठती हो तुम..आते-जाते, सिसकते-मुस्काते, सोते-जागते, रास्तों पर,
घर में या बीच सफर में...कभी-कभी ऐसे कांपने लगती हो जैसे कोई भूचाल सा आ
गया हो..कभी-कभी शोर में तुम्हे सुन नहीं पाता, कभी-कभी अनसुना कर देता हूँ
तो कभी अनदेखा भी..कभी ख़ामोशी से कोई सन्देश ले आती हो...कभी खुशी तो कभी
परेशानी भी दे जाती हो! तुम्हारा होना अब आदत है मेरी...और हाँ, जब उसका
नाम तेरे गाल पर पढ़ता हूँ तो तेरी मिलकियत सुहाने लगती है...ऐसे,ही मेरी
ज़िन्दगी में संगीत और समर्पण के रंग भरते रहना...मेरे मोबाइल तुम्हे ढेर
सारा प्यार - हिरेन्द्र
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विदा 2021
साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...

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"हम हैं बच्चे आज के बच्चे हमें न समझो तुम अक़्ल के कच्चे हम जानते हैं झूठ और सच हम जानते हैं गुड टच, बैड टच मम्मी, पापा जब...
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मुझे याद है बचपन में हमारे मोहल्ले में एक बांसुरी वाला आया करता था। उसके पास एक डंडा हुआ करता जिस पर अलग अलग रंग और आकार के छोटे बड़े कई बांस...