Monday, June 15, 2020

फेसबुक पर ज्ञान की बारिश, बेशर्मों ने कहा तैरना चाहिए था

फेसबुक पर हो रही ज्ञान की बारिश, बेशर्मों ने कहा तैरना चाहिए था

मुंबई, हीरेंद्र झा। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत से देश सदमे में है और इस सदमे की झलक कम से कम सोशल मीडिया पर काफी मात्रा में दिख रही है। प्रथम साक्ष्य की माने तो सुशांत ने आत्महत्या कर ली है। रविवार सुबह उनका पार्थिव शरीर उनके बांद्रा वाले घर के बेडरूम में झूलता हुआ मिला। ख़बर आते ही इस पर अलग अलग तरह की प्रतिक्रिया आने लगी। लेकिन, सोशल मीडिया इस मुद्दे पर शोकाकुल तो दिखा लेकिन वो प्रवचन मोड में नज़र आया। किसी ने कहा कि उसे किसी दोस्त से फोन पर बात करनी चाहिए थी। किसी ने लिखा जीवन में कुछ रिश्ते ऐसे होने चाहिए जिससे आप जब चाहो अपना दर्द साझा कर सको। किसी ने यहाँ तक कह दिया कि आप परेशान हैं तो सीधे मुझे कॉल कीजिये, हम सुनेंगे आपको। कोई सुशांत को कायर कह रहा, कोई भगोड़ा। ज़ाहिर है काम तो सुशांत ने गलत ही किया है पर इसे बहुत गहराई से समझने की ज़रूरत है। मनोवैज्ञानिकों की माने तो इंसान कई बार इस कदर अवसाद में डूब जाता है कि किसी भी नाज़ुक मौके पर वो आत्महत्या कर सकता है। जानकार कहते हैं कि इस भावावेश भरे लम्हें में अगर कोई कांधा आपको मिल जाये तो आप इससे बच सकते हैं। जो बिना आपको जज किये, आपके साथ मजबूती से खड़ा हो। यह इतना भी आसान नहीं। ज्ञान देना आसान है, पर जिस पर बीतती है वही जानता है। आज परिवार तक में जिस तरह से रिश्ते टूटने लगे हैं ऐसे में बाहरी दुनिया में कोई हमराज़ मिले यह आसान नहीं। हर इंसान का परिवेश, उसकी सोच और ज़रूरतें अलग होती हैं। उसके इमोशन नितांत ही निजी होते हैं। कई बार झिझक में भी वो किसी से अपना दर्द शेयर नहीं कर पाता। करता भी है तो कई बार उसका मज़ाक बनाकर, कमजोर साबित कर दर्द पर मिट्टी डाल दी जाती है। ऐसा हमेशा से होता आया है। कहते हैं न कि एक विजेता के सौ बाप होते हैं, पर एक हारा हुआ व्यक्ति अनाथ होता है। हमें अपने आस पास की दुनिया के लिए कहीं ज़्यादा संवेदनशील होने की ज़रूरत है। कितने ही दर्द और भावनाओं की नियति है कि वो अनसुनी ही रह जाती हैं। इन्हें सुनने के लिए आत्मिक रूप से आपका जगा हुआ होना पहली शर्त है। फिर दिखावे की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। लोग खुल कर आपसे अपनी बात शेयर कर पायेंगे। जो लोग आत्महत्या की सोच रहे हैं उनसे बस यही कहना चाहूँगा कि जीवन अनमोल है। बकौल ज़ौक़ तो वे घबरा के कहते हैं कि मर जायेंगे, मर कर भी चैन न मिला तो किधर जायेंगे!"

Sunday, May 31, 2020

अलविदा वाजिद

संगीतकार साजिद-वाजिद की यह जोड़ी आज टूट गयी। वाजिद के निधन की ख़बर से आज मन उदास है। हम जैसे नये लोगों से भी वो बेहद प्यार और सम्मान से मिलते थे। उनकी आत्मा को शांति मिले, यही प्रार्थना।




Tuesday, April 28, 2020

#एकप्रेमीकीडायरी #हीरेंद्र

ज़िंदगी से होने को तो बहुत सारी वाज़िब शिकायतें हैं मेरे पास पर साँस लेने की सिर्फ़ एक वजह आज भी तुम ही हो। जैसे चाय की इन चुस्कियों में तेरी स्मृतियों का स्वाद घुला है, वैसे ही खिलते-महकते ये फूल मुझे तुम्हारी निर्मल मुस्कान की याद दिलाये संभाले रहती हैं। मैंने पिछले एक महीने में तुमको जितना याद किया है, इतने पर रामायण काल में परमपिता ब्रह्मा स्वयं प्रकट हो जाया करते थे। आज भी अगर वे आ जाएं और मुझे कुछ वरदान देने का मन बनाएं तो मैं उनसे बस यही माँगू कि मेरे चित्त से तुम्हारी छवि कभी धूमिल न होने पाए। सुना तुमने उन्होंने तथास्तु कहा है। क्या कहा? मैं बौरा गया हूँ। हो सकता है.. क्योंकि किसी के प्रेम में बौरा जाने की पूरी संभावना होती है। इसके अलावा कोई और विकल्प भी तो नहीं! #एकप्रेमीकीडायरी #हीरेंद्र

Monday, April 27, 2020

एक प्रेमी की डायरी 😊 #हीरेंद्र

तुमको याद करते हुए जब मेरा मन खुद से ही बात कर रहा होता है ...
तो मैंने यह अनुभव किया है, कि मेरा ये मन, कई बार मुझे ही सुनने से इंकार कर देता है...

हाँ, जब ज़िक्र तुम्हारा आ जाए तो यह इकलौता सा मेरा दिल भी मेरी नहीं सुनता।

 हवा, मौसम, चाँद, सितारे, बादल, पेड़, ये फूल... कोई भी मेरी नहीं सुनता।

 जिसे मैं अपना हमराज़ समझता हूँ, वो समंदर भी मुँह फेर कर मुझे पहचानने से इंकार कर देता है.

 तुम यहाँ नहीं होती, पर ये सब तुम्हारी तरफ़दारी में लग जाते हैं.
यूँ लगता है मानो, कि इस पूरी प्रकृति को तुमने मेरी पहरेदारी में लगा रखा है...

 कभी-कभी तो मैं भी खुद को एक कटघरे में खड़ा पाता हूँ.

सुनो...मुझे इनमें से किसी पर भी भरोसा नहीं।
तुम भी इनका ऐतबार मत करना।

मैं जानता हूँ कि एक चिड़िया की चोंच तक से उसकी उदासी पहचान लेने वाली तुम...इतनी निष्ठुर नहीं, कि मेरी संवेदनाएँ तुम तक न पहुँचती हों...

 #हीरेंद्र #एकप्रेमीकीडायरी

Sunday, April 12, 2020

जलियांवाला बाग नरसंहार की कहानी, इन तस्वीरों की ज़ुबानी #JallianwalaBaghmassacre


आज वैशाखी है. पंजाब और हरियाणा में इस पर्व की ख़ासी धूम रहती है. नयी फ़सल की आमद का यह जश्न हर साल इसी तारीख यानी 13 अप्रैल को ही मनाया जाता है.  लेकिन, यह तारीख इतिहास में भी अपनी एक अलग भयावहता के लिए अंकित है. जलियांवाला बाग नरसंहार के बारे में किसने नहीं सुना. आज से 101 साल पहले इसी दिन सारी दुनिया ने अंग्रेज़ों का एक क्रूर और अमानवीय चेहरा देखा था.






राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था, जिसके बाद मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और उसका परिणाम 13 अप्रैल 1919 के नरसंहार के रूप में दिखा.

 देश के अधिकांश शहरों में 30 मार्च और 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया. हालांकि इस हड़ताल का सबसे ज़्यादा असर पंजाब में देखने को मिला. 13 अप्रैल को लगभग शाम के साढ़े चार बज रहे थे, जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद क़रीब 25 से 30 हज़ार लोगों पर गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया. वो भी बिना किसी पूर्व चेतावनी के. ये गोलीबारी क़रीब दस मिनट तक बिना सेकंड रुके होती रही. जनरल डायर के आदेश के बाद सैनिकों ने क़रीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं. गोलियां चलाते-चलाते चलाने वाले थक चुके थे और 379 ज़िंदा लोग लाश बन चुके थे. (अनाधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि क़रीब एक हज़ार लोगों की मौत हुई थी और दो हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए थे).




क्या आप जानते हैं 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। साल 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।

Monday, March 30, 2020

कोरोना डायरी #CoronaDiary

जीवन का हिसाब स्पष्ट है - खुश रहोगे तो खुशियां मिलेगी और दुखी रहोगे तो दर्द. यह बात समझने में कई बार हमें ज़िंदगी भर का सफर तय करना पड़ सकता है. लेकिन, इसके लिए ज़िंदगी हमें हर कदम पर मौके देती है, इशारे करती है. बस आपको सचेत रहना है और पूरी समग्रता से उन इशारों को समझना होता है.

यह लिखने में भले आसान हो पर इस पर अमल करना उतना सहज नहीं। हर इंसान का अपना अनुभव और दृश्टिकोण होता है. जिसमें तपकर हम किसी चीज़ के प्रति अपना एक नजरिया बनाते हैं. यह नजरिया उधार का तो बिलकुल भी नहीं हो सकता। कबीर ने कहा या बुद्ध ने कहा यही सोचकर कोई बात नहीं मान लेनी चाहिए। जब तक हम स्वयं उस अनुभूति से साक्षात्कार न कर लें दुनिया भर के दर्शन और साहित्य बेमानी हैं.

आप आँखें बंद करके खुद को टटोलिये कि आप इस जीवन से क्या चाहते हैं? अगर आप देख पायें तो आप खुशकिस्मत हैं क्योंकि दस में से नौ लोगों को तो यह बिलकुल भी नहीं मालूम होता कि वो इस जीवन से क्या चाहते हैं. इन दोनों तरह के लोगों को अलग-अलग तरीके से चीज़ों को समझना होगा। पहले वे लोग जो देख पा रहे हैं कि उन्हें इस जीवन से क्या चाहिए, वो बस उन्हीं पर अपना ध्यान केंद्रित रखें. क्योंकि जीवन बहुत ही विराट है- यहाँ थोड़ा-थोड़ा सब कुछ पा लेना भी आसान नहीं। और थोड़ा-थोड़ा पाकर भी आप बेचैन ही रहेंगे। जो भी पाना हो वो सम्पूर्णता के साथ पाना, तभी आप आनंदित हो सकते हैं. अगर आप स्पष्ट हैं कि आप को जीवन से क्या चाहिए तो आप यह समझ लें कि आपको बस उसी पर केंद्रित रहना है. व्यर्थ के प्रयासों में समय न गंवा दें. मान लीजिये कि आपको एक महाकाव्य रचना है तो बस आपका पूरा ध्यान इसी बिंदु पर होना चाहिए। सोते-जागते आप अपने महाकाव्य को साकार होते दिखे। अगर आपको अपने मन में महाकाव्य के पन्ने नज़र आने लगे तो समझो आपने महाकाव्य रच दिया। यह और भी बातों के लिए उतना ही सटीक है.

दूसरी बात कि आपको अभी भी नहीं मालूम कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए। तो बेहतर है खुद के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त गुज़ारे। अपने आप को समझें। ह्रदय की गहराइयों में उत्तर कर खुद को देखें कि ऐसी कौन सी बात है जो आपको मिल जाए तो आप खुश हो जाएंगे। अगर आप ईमानदारी से खुद का मूल्यांकन करें तो इस बात की कोई भी वजह नहीं कि आप निरुत्तर रहे.

और जब एक बार आप समझ गए कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए तब आगे का रास्ता स्वतः ही निर्मित होना शुरू हो जाता है. इस शोध के लिए यह 21 दिनों का लॉकडाउन बहुत ही कारगर है. यह मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ. जीवन में एक से ज़्यादा बार ऐसा हुआ है कि मैंने आत्महत्या करने का सोचा है. लेकिन, नहीं अब मैं समझ गया हूँ कि मरने से पहले ज़िंदगी एक बार जी ही लेनी चाहिए। इति शुभम!

हीरेंद्र झा

विदा 2021

साल 2021 को अगर 364 पन्नों की एक किताब मान लूँ तो ज़्यादातर पन्ने ख़ुशगवार, शानदार और अपनों के प्यार से महकते मालूम होते हैं। हिसाब-किताब अगर ...